~ नीलम ज्योति
युटुब पर कुछ अर्धज्ञानियों ने एक गीत डाला है, रावण के सम्मान में, जिसकी धुन पर कई रील चलते हैं। उस गाने के अनुसार रावण ने कभी माता सीता को छुआ नहीं : किंतु वे लोग ये नहीं बताते कि या शायद जानते ही नहीं कि रावण ने अपने भतीजे नलकुबेर की वधु रंभा तक का बलात्कार किया था।
जिस वीभत्स घटना के बाद नलकुबेर ने उसे शाप देते हुए कहा था, “यदि वह किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध छुएगा तो उसका मस्तक फट जाएगा।”
रावण को साध्वी वेदवती का शाप भी था, जिनके अमर्यादित शीलभंग का प्रयास उसने किया था। उसने जिन राज्यों को जीता, वहां की स्त्रियों के साथ हर तरह से अन्याय ही किया। लेकिन उसे अब पूजवाने की हर कोशिश हो रही है.
अब बात करें उसके बाहुबल कि तो, उसने वरुण देव की अनुपस्थिति में वरुण लोक धूर्तता से जीता। यमराज ने तो उसे लगभग मार ही दिया था, किंतु ब्रह्मा जी ने अपने वरदान का हवाला देकर उसकी प्राण रक्षा की, जिसके बाद यम-धर्म, परमपिता के सम्मान में उसके बंदी बने।
वानरराज वाली का किस्सा पता ही होगा. वे रावण को बगलों में दबाए घूमते रहे और सहस्त्रबाहु ने तो उसे अपने अँधेरे कारागार में महीनों बंद रखा था। यदि, उसके दादा पुलत्स्य ने प्रयास न किए होते तो वह महिष्मती के कारागार में पड़ा-पड़ा माफीवीर बन चुका होता।
वह परमविद्वान था, यह बात भी अर्धसत्य है. उसे अपने जन्म के कारण बहुत छोटेपन से महान ऋषि पुलत्स्य और विश्रवा का साथ मिला हुआ था. ज्ञान अर्जना के लिए उसे विशेष मेहनत नहीं करनी पड़ी। इसके बावजूद उसकी विद्वाता, ब्रह्मर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त्य, महाराज मांधाता आदि के सामने फीकी थी।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण है उसका अहंकार. यदि वह सचमुच परमज्ञानी होता तो कभी भी महादेव को कैलास सहित उठा ले जाने की मूर्खता न करता. अपने आराध्य के सामने शक्तिप्रदर्शन न करता. उसने ऐसा किया, जो उसकी मूर्खता, उद्दण्ता और अहंकार का जीवित प्रमाण है।
वह परम स्वार्थी भी था, इतना स्वार्थी कि अपनी अना के लिए उसने अपने बेटों की जानबूझ कर बलि चढ़ने दी। जो लोग कहते हैं, वह अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने वाला भाई है, उन्हें बता दें, जिस रावण ने अपनी बहन के नाम पर सीताहरण किया था, उसी ने अपने हाथों ने बहन सूर्पनखा के प्रिय पति को मार डाला था. उसे विधवा बना दिया था।
जो भाई उसका हित चाहते थे, उसके यश और दीर्घायु की कामना करते थे, उसने उन्हें भरी सभा में अपमानित किया। एक को देश निकाला और दूसरे को युद्ध में मृत्यु पाने के लिए भेज दिया.
क्यों? केवल अपनी कुंठा और अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए. इसलिए, क्योंकि उन दोनों ने रावण को आईना दिखा दिया था।
रावण ने न अपनी पत्नी का सम्मान किया, न भाइयों का, न पुत्रों का, न बहन का, न दादा, पिता, न सेना का, न शासन का और न ही अपने आराध्य देव का।
उसने अपने पूरे जीवनकाल में केवल संबंधों का दोहन किया है, अपने निजी इच्छाओं की पूर्ति के लिए। उसके लिए केवल और केवल वह खुद महत्वपूर्ण था, बाकी सब निकृष्ट, और नश्वर।
रावण कभी, किसी युग में भी वंदनीय नहीं हो सकता, न बाहुबल के लिए, न नैतिकता के लिए, न संबंधों को निभाने के लिए और न ही विद्वता के लिए। वह एक ऐसा विचार है, जो हर युग में, हर कालखंड में दहन के ही योग्य था और दहन के ही योग्य रहेगा।