डा.अंकित जायसवाल
इंडिया, अपने देश को यह नाम ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर 2500 साल पुराना बताया जा सकता है, जब यूनानी इतिहासकार होरोडोट्स इसे इंडिया कहता है। हालांकि ये नाम तत्कालीन समय में केवल सिंधु नदी घाटी क्षेत्र का ही बोध कराती थी जबकि मौर्यकाल में आने वाले मेगस्थनीज ने सिंधु के पार भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में इसे “इंडिया” कहा है।
ठीक 2500 साल पहले की ही बात है जब ईरानी शासक डेरियस प्रथम के “हमदान” अभिलेख में हिदुस अर्थात हिंदुओं की चर्चा है जो सिंधु घाटी नदी प्रदेश के ही निवासी थे। यानी कि ये दोनों नाम इंडिया और हिंदुस्तान इस सिंधु नदी से ही पड़े हैं।
ऐसे ही प्राचीन चीनी यात्रियों के विवरणों में भी सिंन्धु से ही व्युत्पन्न नाम शेन-दू, तिएन-चू, इन-तू आदि आता है।
लेकिन पढ़े जाने वाले हमारे प्राचीन शिलालेखीय साक्ष्य जो मोटे तौर पर अशोक से शुरू होते हैं,उनमें अपने देश का नाम जम्बूद्वीप मिलता है(अशोक का प्रथम पृथक शिलालेख)। अगर भारतीय साहित्य की बात की जाय तो एक प्रदेश के रूप में “भारत” नाम पाणिनि की अष्टध्यायी में आता है जिसका रचनाकाल इतिहासकारों ने पांचवी सदी ई0 पू0 आसपास अनुमान किया है, फिर भी भारत यहाँ कई जनपदों जैसे एक जनपद है न कि पूरा जम्बूद्वीप यानी अखण्ड भारत।
शिलालेखीय साक्ष्यों में हमारे पास पहली शताब्दी ई0 पू0 का हाथीगुफ़ा अभिलेख है जिसे कलिंग राजा खारवेल ने लिखवाया था। यहाँ भी “भारतवर्ष” एक प्रादेशिक क्षेत्र है न कि सम्पूर्ण भारतवर्ष, जैसा कि आज हम इसे जानते हैं।
यहाँ ये सब इसलिए बताया जा रहा क्योंकि ncert की एक उच्चस्तरीय समिति ने अपने देश का नाम इंडिया के जगह केवल भारत करने की सिफारिश की है।
इस समिति का कहना है कि ncert की किताबों में प्राचीन भारत पढ़ाते समय हम भारत को अंधकारमय, विज्ञान और प्रगति से अछूता दिखाते हैं। इसलिए अब पाठ्यपुस्तकों में प्राचीन इतिहास की जगह “शास्त्रीय-इतिहास” कहके पढ़ाया जाय, जिससे हमारी नई पीढ़ी को भारतीय ज्ञान प्रणाली(शायद प्राचीन विश्वगुरु होने के दावे के आधार पर) को जान सके। इस समिति का यह भी कहना है कि भारत सदियों पुराना नाम है जो हमारे 7000 वर्ष पुराने विष्णु पुराण जैसे ग्रँथों में आया है(यहाँ विष्णुपुराण को किस तरीके से 7000 वर्ष प्राचीन बताया गया है मेरे समझ के बाहर की चीज है)।
ख़ैर, यह तो नॉर्मल बात है कि सरकारी या किसी भी संस्था की मजबूरी है कि वह सत्ता के विचारधारा के अनुसार चले। यह बात एकदम सही है कि बच्चों को जो हमारे भविष्य हैं, उन्हें अपने देश की पुरानी गौरवशाली इतिहास बताया जाय, लेकिन समय की माँग है कि उन्हें इससे भी अधिक आधुनिक शिक्षा और बातों से लैस किया जाय। कोई भी जब अंग्रेजी में पढ़ता है तो उसे इंडिया ही जानना होगा न कि भारत, क्योंकि भारत शब्द के लिए वहाँ इंडिया ही मिलेगा। इससे मेरा भी बहुत बड़ा नुकसान हुआ है कि मैं अंग्रेजी में उतना ठीक नहीं हूँ कि इतिहास पर मूल अंग्रेजी में लिखी किताबों ठीक ढँग से पढ़ सकूँ।
इसलिए जरूरी हो जाता है कि बदलाव तो हों, और होने भी चाहिए मगर इसपे बिना कोई राजनीति किये ठीक सोच-विचारकर, क्योंकि फ़िलहाल तो यही लग रहा कि इंडिया नाम इसलिए हटाया जा रहा क्योंकि देश के मुख्य विपक्षी दल ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर एक नया गठबंधन तैयार किया है जिसका नाम है:- भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन; Indian National Developmental Inclusive Alliance अर्थात INDIA.
तर्क यह भी दिया जाता है कि इंडिया नाम से गुलामी का अहसास होता है क्योंकि अंग्रेजी औपनिवेशिक काल में अपना देश इसी नाम से प्रसिद्ध था, जो उस औपनिवेशिक-विदेशी, थोपी गयी संस्कृति से जुड़ी है। जबकि भारत नाम हमारी अपनी संस्कृति से जुड़ाव रखती है, क्योंकि अपने देशी शिलालेखीय और साहित्यिक साक्ष्यों में अपने देश के लिए भारत नाम है न कि इंडिया। भारत नाम को देश की सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़ा गया है।
भारत अर्थात भारतमाता को हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यहाँ के लोगों के सन्दर्भ में प्रयोग किया है यानी भारतमाता मूलतः यहाँ के लोग ही हैं न कि यहाँ का भौगोलिक स्वरूप। यहाँ के लोगों की तरक्की और खुशहाली ज्यादा महत्वपूर्ण है जो अभी भी दो भागों में बटें हैं और इनमें सबसे बड़ी आबादी उनकी है जो अभी भी तुलनात्मक रूप से पिछड़े और कम शिक्षित हैं। आधुनिक सुविधाओं से दूर, ये लोग एक तरह से भारत को ज्यादा जानते हैं न कि इंडिया को। यह भारत वाकई वंचित वर्गों में बसता है। अतः कहा जा सकता है कि जबतक आम लोगों को विकास से असल पथ पर न लाया जा सके तबतक नामकरण अथवा नाम-बदलने की बातें बेमानी होंगी।
साभार-:- आज के दैनिक हिंदुस्तान में सम्पादकीय पढ़ने के बाद उपजा ज्ञान, जिसे अपने इतिहास-अध्ययन की जानकारियों के आधार पर लिखा हूँ।
डा.अंकित जायसवाल