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ग्वालियर – चम्बल: कांग्रेस के गढ़ भेदना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं

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अब ग्वालियर-चंबल को साधने के लिए भाजपा ने नरेन्द्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया है. वहीं, सिंधिया केन्द्रीय मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी इसी इलाके में आते हैं. इन नेताओं को जिम्मेदारी देकर पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश में है. गौरतलब है कि हालिया विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल की जंग बेहद रोचक मानी जा रही है. क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के बड़े झत्रप इसी अंचल से आते हैं. खास बात यह है कि 2020 में हुए दलबदल में सबसे ज्यादा इसी अंचल के विधायकों ने पाला बदला था.

यहां भाजपा जितनी मजबूत है कांग्रेस भी उतनी ही दमदार है. लेकिन अंचल की पांच विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो कांग्रेस के गढ़ में तब्दील हो चुकी हैं. जिन्हें भेदना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. बताया जाता है कि ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस के 5 ऐसे अभेद गढ़ है जिनको फतेह करना भाजपा के लिए सपना बना हुआ है. 1990 से लेकर 2018 तक इन सियासी किलों पर भाजपा को शिकस्त मिली है, खुद एक बार शिवराज सिंह चौहान को यहां हार का सामना कर पड़ा है, यही वजह है कि इन किलों पर चढ़ाई करने के लिए इस बार भाजपा के अमित शाह खुद सियासी बिछात बिछाएंगे, क्योकि इन गढ़ों पर जीत के सहारे ही भाजपा 2023 में कामयाबी का रास्ता बनाएगी.

भाजपा के लिए ग्वालियर चंबल के इन 5 मजबूत सियासी गढ़ फतेह करना सबसे बड़ी चुनौती है, शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश भाजपा में वन मैन आर्मी माना जाता है, लेकिन मामा शिवराज विधानसभा चुनाव में इन अभेद किलो मे से एक किले राघौगढ़ पर शिकस्त झेल चुके हैं, ऐसे में इन किलों को भेदना भाजपा के लिए कहीं मुश्किल तो कही नामुकिन बना हुआ है. यही वजह है कि भाजपा अपने दिग्गजों को यहां मोर्चे पर तैनात करेगी. जिनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर नरोत्तम मिश्रा तक मोर्चा संभालेंगे. इसके अलावा केंद्रीय नेतृत्व भी यहां एक्टिव होगा.

राघौगढ़ का किला जीतना आज भी भाजपा के लिए सपना बना हुआ है. राघौगढ़ सीट दिग्विजय सिंह के परिवार की सीट मानी जाती है. यह कांग्रेस का ऐसा अभेद गढ़ हैं. जहां मुख्यमंत्री शिवराज को भी हार का सामना करना पड़ा था. 1990 से यहां कांग्रेस लगातार जीतती आ रही है. 1990 और 1993 में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह यहां से विधायक चुने गए. वहीं 1998 और 2003 दिग्विजय सिंह जीते. 2008 में कांग्रेस के दादाभाई मूल सिंह जीते.

2013 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह ने इस सीट पर अपनी विरासत बेटे जयवर्धन सिंह को सौंप दी. जिसके बाद 2013 और 2018 में जयवर्धन सिंह यहां से जीते . भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ मानी जाती है. लहार विधानसभा कांग्रेस का वो किला है, जिसे भाजपा बीते 33 सालों से भेद नहीं पाई है, इस सीट पर कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ. गोविंद सिंह अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं.

गोविंद सिंह ने लहार सीट पर सन 1990 से 2018 तक के सभी 7 विधानसभा चुनाव लगातार जीते हैं. वर्तमान में वह नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं.शिवपुरी जिले की पिछोर विधानसभा सीट कांग्रेस भी कांग्रेस का अभेद किला बनी हुई है. इस सीट पर कांग्रेस के केपी सिंह बीते 30 सालों से अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 6 चुनाव में केपी सिंह ने लगातार यहां से जीत दर्ज करते हुए आ रहे हैं.

भाजपा कड़ी मशक्कत के बाद भी इस सीट पर जीत का सपना संजोए हुए हैं, केपी सिंह ने इस सीट पर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही उमा भारती के भाई स्वामी प्रसाद लौधी और समधी प्रीतम लोधी को भी हराया है. केपी सिंह ने पिछोर सीट पर 1993 से 2018 तक के लगातार छह विधानसभा चुनाव जीते हैं. 2008 में भितरवार सीट के अस्तित्व में आने के बाद से भाजपा के लिए इसे जीतना सपना बना हुआ है. इस सीट पर कांग्रेस के लाखन सिंह यादव जमे हुए हैं.

बीते एक दशक में शिवराज लहर और शिवराज मोदी लहर के बावजूद यहां पर भाजपा भितरवार में कांग्रेस के लाखन सिंह यादव को शिकस्त नहीं दे पाई है, 2013 और 2018 में इस सीट पर कद्दावर नेता अनूप मिश्रा शिकस्त झेल चुके हैं. 2008 से लाखन सिंह यादव ने लगातार तीनों चुनाव जीते हैं.ग्वालियर जिले की डबरा विधानसभा सीट पर पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस का कब्जा है.

2008 , 2013 और 2018 के तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इमरती देवी जीत दर्ज कर कब्जा जमाया है. 2020 के उपचुनाव में भी डाबरा सीट कांग्रेस के खाते में गई. कांग्रेस के सुरेश राजे ने भाजपा के टिकट पर उतरी इमरती देवी को हराया. आंकड़ो पर गौर करें तो डबरा सीट पर 2008, 2013, 2018 में कांग्रेस की इमरती देवी जीती. 2020 उपचुनाव में कांग्रेस के सुरेश राजे जीते है.

इन किलो के मजबूत इतिहास को समझने के बाद इन सीटों पर इस बार भाजपा चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की नजर है. भाजपा के आला नेताओं ने मंथन किया है, जिसमे तय हुआ है कि बूथ लेवल पर इन सीटों पर पार्टी को मजबूत किया जाना शुरू किया है. इस बार इन सीटों पर उम्मीदवार भी अमित शाह की मोहर लगने के बाद ही तय होंगे.

ग्वालियर सांसद विवेक नारायण शेजवलकर का कहना है कि पार्टी की नजर में सभी सीटे प्रमुख है, लेकिन जहां पार्टी हारी है, उन पर विशेष फोकस कर काम किया जा रहा है. यही नहीं इन पांच किलों पर लगातार जीत हासिल करने वाली कांग्रेस कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद उत्साह से भरी है. कांग्रेस का दावा है कि इन गढ़ों पर कब्जा तो बरकरार रहेगा साथ ही अब कांग्रेस भाजपा के गढ़ों को भी जीतेगी.

कांग्रेसियों का दावा है कि माहौल भाजपा सरकार के खिलाफ है, लिहाजा कांग्रेस को ऐतिहासिक सफलता मिलेगी.इस बार ग्वालियर चंबल अंचल में अपने गढ़ बरकरार रखना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगा. तो वहीं इन गढ़ों को फतेह करना भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गया है. कौन किस पर भारी पड़ेगा. कौन किसका किले ढहाएगा. यह 2023 के चुनावी रण में देखने को भी मिलेगा.

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