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इंदिरा की याद पर विवाद: ओछी मानसिकता का प्रतीक

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इंदिरा जी की पुण्यतिथि और सरदार पटेल जयंती 31अक्टूवर पर विशेष लेख

                               -सुसंस्कृति परिहार

सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती और इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि एक ही दिवस पड़ती वह है 31अक्टूवर।यह दिन  देश के दो महानायकों के स्मरण का दिन है। आज़ाद भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का राष्ट्रीय आंदोलन से लेकर आज़ादी के बाद भी योगदान अविस्मरणीय है। पटेल जी के योगदान और दृढ़ व्यक्तित्व को देखते हुए इन्हें “भारत का लौह पुरुष” तथा “भारत के बिस्मार्क” के रूप में भी जाना जाता है। सन 2018 में, गुजरात में विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति “स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी” पटेल जी को समर्पित की गई है जो कि देश की एकता में उनके योगदान को इंगित करती है। वहीं  इंदिरा गांधी ने बचपन में पिता जवाहरलाल और मांं कमला नेहरू के धरना आंदोलन से प्रभावित होकर वानर सेना बनाई जो अंग्रेज अफसरों और सैनिकों को परेशान करती थी और आज़ाद भारत के नारे लगाती थी। आज़ादी के बाद उन्होंने पिता के साथ राजनीति का ज्ञान  हासिल किया। विदेश नीति को समझा।उनका यह ज्ञान जब वे भारत की प्रधानमंत्री  बनी तब काम आया।उनका सबसे बड़ा अवदान उनकी विदेश नीति थी उससे तब दुनिया देखकर चौंकी जब देश की पूर्वी सीमा से पाकिस्तान की सेनाओं को खदेड़ कर एक नए राष्ट्र बांग्ला देश का उदय किया।एक कुशल योद्धा की तरह वे अपने इरादे में विजयी रहीं और हमारी पूर्वी सीमा सुरक्षित हुई। इंदिरा जी की समझाइश के बाद ही कश्मीर एक पूर्ण राज्य बना पहले शेख अब्दुल्ला प्रधानमंत्री कहलाते थे उन्होंने वहां मुख्यमंत्री बनाने का सिलसिला शुरू किया। तिरंगा फहराया।

गृहमंत्री पटेल ने जहां आज़ाद भारत में फैली 362से ज्यादा रियासतों को भारत का हिस्सा बनाया वहीं इंदिरा गांधी ने सिक्किम जैसे स्वतंत्र राष्ट्र को बिना लड़े समझौता करके भारत के एक राज्य में परिणत किया। जिससे हमारी उत्तर की सीमा भी सुरक्षित हुई।तभी से उन्हें   लौह महिला(आयरन लेडी ) जैसे नाम से देश और विदेश के पत्रकार लेखकों ने नवाज़ा था।जबकि सरदार पटेल को सरदार नाम, बारडोली सत्याग्रह के बाद मिला, जब बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए उन्हें पहले बारडोली का सरदार कहा गया। बाद में सरदार उनके नाम के साथ ही जुड़ गया। खेड़ा और बारडोली में सत्याग्रह की बदौलत अंग्रेजों से मिली जीत से उन्हें पहले महिलाओं ने लौह पुरुष कहा बाद में महात्मा गांधी ने भी उस नाम से उन्हें सम्बोधित किया।

आजकल सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर  एकता दिवस मनाया जाता है. भारत की राजनीति में यह दिन 2 मायनों में बेहद अहम है. पहला 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती पड़ती है तो दूसरा इसी दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी।जिसे बलिदान दिवस के रुप में भारत सरकार मनाती रही अब सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही उनकी पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रुप में मनाती है। विदित हो श्रीमती इंदिरा गांधी ने पंजाब को खालिस्तान ना बनने देने  के लिए स्वर्ण मंदिर में फ़ौज भेजकर खालिस्तान बनाने वालों को परास्त किया था। बाद में स्वर्ण मंदिर में सेना भेजकर अपवित्र करने की सजा उनके ही सिख अंगरक्षकों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया था। बाद में राजीव गांधी ने इस गलती की क्षमा मांगी और तब से पंजाब शांत है। उनके बलिदान से पंजाब हमारा है और सदा रहेगा।

2014 में संघ चालित सरकार केंद्रीय सत्ता में आने पर उनकी शहादत  को कोई महत्व ना देकर 31 अक्टूबर को  सिर्फ देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने का ऐलान किया था। तब से यह एकता दिवस हर साल मनाया जाता है। लेकिन सरकार देश पर 17साल शासन करने वाली इकलौती महिला प्रधानमंत्री की पुण्यतिथि पर कोई सरकारी आयोजन नहीं करती।इतनी कटुता का भाव देश की संस्कृति में कहीं नहीं मिलता। यहां तो रावण की पूजा का भी विधान है कहा जाता है मोक्ष मिल जाने के बाद वह पूज्य हो जाता है। सरदार बल्लभभाई पटेल की विशाल प्रतिमा बनाकर इंदिरा जी का कद बौना करने की भरपूर कोशिश हो रही है किंतु आयरन लेडी इंदिरा को देश और दुनिया बराबर याद करती है।

विदित हो गांधी जी की हत्या के बाद गृहमंत्री की हैसियत से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगवाया था वे इन फासीवादी ताकतों को भली भांति पहचान गए थे ।काश वह प्रतिबंध लगा रहता है तो इस तरह की नफ़रती ताकतें आज सत्ता तक पहुंच देश को गर्त में ना पहुंचा पाती। गांधी को रावण दिखाने वाले संघीय अखबार ने गांधी के दस सिरों में एक सिर सरदार बल्लभभाई पटेल का भी दिखाया था गुजरात में वोट की राजनीति ने आज उनकी विशाल प्रतिमा खड़ी कर अपने किस चरित्र का परिचय दिया है कहने की ज़रूरत नहीं। उन्हें संघी भी कहा जा रहा है।इधर इंदिरा गांधी भी जब चंडाल चौकड़ी से घिर जाती है तो आपातकाल लगाकर सत्तारूढ़ होने की कोशिश करती हैं किंतु कामयाब नहीं होती। लेकिन बाद में जागरुक जनता फिर उन्हें प्रधानमंत्री बनाती है।यह उनकी कर्मठता और देशवासियों की सेवा का ही परिणाम था।

कुल मिलाकर यह सच्चाई है कि दोनों नेता देश के महत्वपूर्ण नेताओं में शुमार है सरकार भले इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद ना करें पर उनका बलिदान ,देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर देना आज़ादी के आंदोलन से कमतर नहीं।देश के दोनों लाड़ले अनमोल रत्न है।

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