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फिलिस्तीन समस्या का एकमात्र समाधान दो-राष्ट्र

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अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन द्वारा चर्चा का आयोजन

बेंजामिन नेतनहायु के नेतृत्व वाली चरम दक्षिणपंथी सरकार द्वारा उठाए गए आक्रामक कदम ही मौजूदा फिलिस्तीन- इजरायल संकट के लिए जिम्मेदार हैं। फिलिस्तीनी भूमि पर बेरोकटोक कब्जा करना, अल अक्सा मस्जिद पर हमले और इजरायली सशस्त्र बलों और फिलिस्तीनी भूमि पर अनधिकृत बसने वालों की निजी सेनाओं द्वारा फिलिस्तीनियों की हर रोज हत्या करना ही वर्तमान संकट की पृष्ठभूमि में है। 1967 से पहले की सीमाओं वाले फिलिस्तीन राज्य की स्थापना और पूर्वी येरुशलम को फिलिस्तीन की राजधानी के रूप में स्थापित करे बगैर क्षेत्र में शांति नहीं हो सकती। यह विचार अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन द्वारा मध्य-पूर्व में जारी वर्तमान संकट पर आयोजित चर्चा में बोलते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जया मेहता ने व्यक्त किए।

चर्चा सत्र की अध्यक्षता करते हुए सोशलिस्ट पार्टी के रामस्वरूप मंत्री ने कहा कि फिलिस्तीन के मुद्दे पर वर्तमान सरकार द्वारा इजराइल सरकार का समर्थन करना हमारी विदेश नीति के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत है। भारत ने गत 75 वर्षों में लगातार फिलिस्तीन की जनता और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन का समर्थन किया है और इस नीति से विचलन का कोई कारण नहीं है।

बैंक कर्मचारी नेता जी.  आर.  निमगाँवकर ने कहा कि फिलिस्तीनियों ने यहूदियों को बसने के लिए स्थान दिया लेकिन अब स्थिति यह है कि इसराइल पूरे फिलिस्तीन पर कब्ज़ा करना चाहता है।

सीपीम के कैलाश लिम्बोदिया ने कहा कि इजरायल के नागरिक खुद अपने शासकों का विरोध कर रहे हैं। वे भी शांति और समाधान चाहते हैं। इजराइल सरकार फिलिस्तीन की जनता से गुलामों स व्यवहार करती है और उनकी आजादी की इच्छा प्रबल है। हम भी यहूदियों के विरोधी नही लेकिन उनके शासकों के विरोधी है।

समाजवादी नेता शशिकांत गुप्ते ने कहा कि भारत की वर्तमान सरकार इस समस्या को भी हिन्दू-मुस्लिम के नजरिए से देख रही है, खेदजनक है।

प्रगतिशील लेखक संघ के अभय नेमा ने कहा कि मोदी सरकार की विदेश नीति ढुलमुल और घरेलू मज़बूरीयों से प्रभावित है। वैसे तो इजरायल के हिमायती बनते है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल के पक्ष में वोट देने की हिम्मत नहीं है। प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री अलग-अलग बयान देते है। हमारे देश का मीडिया भी देश के स्थापित नीति से अलग अजेंडा चलाता है।

सीपीआई के अजय लागू ने कहा कि अरब और इजराइल की पनपती दोस्ती, हमास के ताज़ा हमलों की वजह है।

पत्रकार जावेद आलम ने कहा कि फिलिस्तीन का संघर्ष मानवता, नैतिकता और  आजादी के लिए है। इजराइल सरकार की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है।

इंटक के प्रदेश अध्यक्ष श्यामसुंदर यादव ने भी चर्चा में भाग लिया।

विषय प्रवर्तन करते हुए राज्य महासचिव अरविन्द पोरवाल ने कहा कि इजराइल गाजा पट्टी पर एक बार फिर से कब्जा करने की मंशा जाहीर कर चुका है, उसने गाजा पट्टी खाली करने की चेतावनी दी है । इससे युद्ध और बढ़ेगा तथा फैलेगा। यह विश्व शांति के लिए  गंभीर खतरा होगा और संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के सभी प्रयासों को भी नुकसान पहुंचेगा। इसलिए, कार्रवाई बंद करने के लिए इजरायली राज्य पर भारत सरकार सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा दबाव डाला जाना चाहिए।

संचालन करते हुए जिला महासचिव विवेक मेहता ने प्रस्ताव रखा कि एप्सो तत्काल युद्धविराम के लिए दुनिया भर में उठ रही लाखों आवाजों के साथ है और मानता है कि स्थायी समाधान तभी पाया जा सकता है जब इज़राइल को फिलिस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाए।

सुनील चंद्रन ने आभार प्रदर्शन करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर जन चेतना के प्रयास करने की आवश्यकता है।

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