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चुनावी राज्यों में प्रेस के दमन को उजागर करती ‘फ्री स्पीच कलेक्टिव’ की पड़ताल

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 पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ में दो चरणों में; 7 और 17 नवंबर को, मिजोरम में 7 नवंबर को, मध्य प्रदेश में 17 को, राजस्थान में 23 को और तेलंगाना में 30 को चुनाव हो रहे हैं। जहां मतदाताओं के सामने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य सेवा, महिला सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के कारण विस्थापन, कृषि ऋण और पेंशन जैसे तमाम मुद्दे हैं, आश्चर्यजनक रूप से प्रशासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को लेकर चुप्पी है। ऐसे में ‘फ्री स्पीच कलेक्टिव’ नामक संस्था ने इन राज्यों में प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पड़ताल की है।

चुनावों की पूर्व संध्या पर यानि छह नवंबर को जारी रिपोर्ट “फ्री स्पीच इन स्टेट्स : बिट्वीन इलेक्टोरल रेटोरिक एण्ड ग्राउन्ड रियल्टी” पिछले पांच वर्षों में इन प्रदेशों में पत्रकारों, सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्याओं, उन पर हुए हमलों, उनकी गिरफ्तारियों का ब्यौरा देती है। रिपोर्ट के अनुसार सेन्सरशिप तरह-तरह से लागू थी या तो सरकारी नीति के रूप में या फिर कानूनी डंडे से और पत्रकारों पर राजद्रोह से लेकर मानहानि तक, वैमनस्य फैलाने आदि के मामले दर्ज किए गए और कई बार थोक में विभिन्न थानों में एफआईआर दर्ज किए गए।

उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के गुना और शिवपुरी में सात एफआईआर दर्ज कर रिपोर्टर जालम सिंह की गिरफ़्तारी की गई और वह दो महीने से अधिक जेल में हैं। रिपोर्ट के अनुसार ऐसे मामलों का पत्रकारिता पर भयावह प्रभाव पड़ता है और ऐसे दमन से एक ओर जहां पत्रकार आप ही खुद को सेंसर करने लगते हैं, दूसरी तरफ शासन-प्रशासन से ऐसे कोई सवाल नहीं पूछे जाते, जो पत्रकारिता की जान होते हैं। इसकी परिणिती जबरन चुप्पी में होती है।  

गीता सेषु, लक्ष्मी मूर्ति, मालिनी सुब्रमण्यम और सरिता राममूर्ति की तैयार रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान आई कोविड-19 महामारी में किए अभूतपूर्व राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से भी मीडिया प्रभावित हुआ। मध्य प्रदेश के 95 फीसदी जिलों में अखबारों का प्रकाशन ठप हो गया था।

महामारी की खबरें कवर करने के लिए पत्रकारों को इस दौरान भी बहुत कुछ झेलना पड़ा। उदाहरण के लिए मई 2020 में तेलंगाना के नारायणकुंड में लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन कर 500 समर्थकों के साथ एक विधायक के जन्मदिन की पार्टी की खबर देने को लेकर एक पत्रकार शनिगरपू परमेश्वर का घर ही बुलडोजर से ढहा दिया गया।   

छत्तीसगढ़, जो गिने-चुने राज्यों में से था जहां महामारी में मारे गए पत्रकारों के परिवारों को पांच लाख का मुआवजा दिया गया, वहां रेत खनन और अन्य स्थानीय भ्रष्टाचार के मामलों की रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारों पर कानूनी डंडा चलाया गया।

सरकारी आश्वासनों और पत्रकार सुरक्षा विधेयक पारित होने के बावजूद जमीन पर पत्रकार झूठे मामलों के शिकार हो ही रहे हैं। अकेले सरगुजा डिवीजन, जिसमें छह जिले आते हैं, 22 पत्रकारों को रिपोर्टिंग के कारण गिरफ़्तारी या मामले दर्ज होने की कार्रवाई झेलनी पड़ी है।  

रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट बंदी आम बात है जबकि यह लोगों की ज़िंदगियों को बुरी तरह प्रभावित करती है। अनुराधा भसीन मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए यह बंदी की जाती है। केवल राजस्थान में 72 बार इंटरनेट बंदी की गई है, जिनमें अधिकांश विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश के लिए की गई है।

मिजोरम में सूचना तक पहुंच बाधित है और पत्रकारों को खासकर सीमाई इलाकों में सरकार और सीमा सुरक्षा बल की तरफ से कई पाबंदियों का सामना करना पड़ता है।

पत्रकारों के साथ सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं को भी कातिलाना हमलों का सामना करना पड़ा है। तेलंगाना में एक सूचना अधिकार कार्यकर्ता की हत्या कर लाश पानी से भरी खदान में फेंक दी गई।

वैसे तो देश भर में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में लगातार गिरावट आ रही है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के इंडेक्स के अनुसार भारत 161वें क्रमांक पर और कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के ग्लोबल इम्प्यूनिटी इंडेक्स में 11वें स्थान पर है।

दूसरी तरफ हेट स्पीच को खुली छूट है (उदाहरण दिसंबर 2020-जनवरी 2021 में मध्य प्रदेश के उज्जैन, मंदसौर और इंदौर जिलों में सांप्रदायिक भाषणों और झड़पों की लहर)। जबकि पत्रकारों के अलावा कलाकारों, शिक्षाविदों, स्टैन्ड अप कॉमेडियनों, लेखकों, फ़िल्मकारों, नागरिकों और बुद्धिजीवियों को, जो सोशल मीडिया या कार्यक्रमों में अपनी बात रखना चाहते हैं उन्हें मुकदमों से लेकर गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने 2019 घोषणा पत्र में मीडिया एवं प्रेस की आजादी को मुद्दा बनाया था। हालांकि कांग्रेस शासित राज्यों में भी हालात कोई बहुत जुदा नहीं हैं। संक्षेप में पिछले पांच वर्षों में हालात इस प्रकार रहे:

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में पिछले पांच वर्षों में 11 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से कुछ को एक से अधिक बार गिरफ्तार किया गया। सात पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। कम से कम बारह पत्रकारों को उनके खिलाफ मामला दर्ज करने को लेकर धमकाया गया।

मध्य प्रदेश

दो पत्रकारों (चक्रेश जैन और सुनील तिवारी) की हत्या हुई। एक पत्रकार और एक स्टैन्ड अप कॉमेडियन मुन्नवर फारुकी की टीम सदस्यों समेत गिरफ़्तारी हुई। पत्रकारों के खिलाफ कोविड महामारी के दौरान रिपोर्टिंग को लेकर दर्ज मामलों समेत कुल 14 मामले दर्ज किए गए। 

पत्रकारों के अलावा अकादमिक सेन्सरशिप की प्रयोगशाला बने मध्य प्रदेश में एक डॉक्टर (फरहत खान) पर किताब “कलेक्टिव वॉयलेंस एण्ड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम” को लेकर मामला दर्ज किया गया और उन्हें गिरफ्तार किया गया। वीर दास के यूट्यूब वीडियो “आई कम फ्रॉम टू इंडियास” पर ऐतराज जताया गया और उनके कार्यक्रम मध्य प्रदेश में न होने देने की धमकी दी गई।

गृहमंत्री और सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने समलैंगी जोड़े के करवा चौथ मनाने वाले विज्ञापन से लेकर मंगलसूत्र के एक विज्ञापन पर ऐतराज उठाया। वेब सीरीज “अ सूटेबल बॉय” (नेटफ्लिक्स) और “तांडव” (प्राइम ऐमज़ान) को लेकर छह एफआईआर दर्ज की गईं। “विकास परियोजनाओं” का विरोध करने पर आदिवासियों को गिरफ़्तारी से लेकर “जिला बदर” की कार्रवाई का सामना करना पड़ा।

मिजोरम

एक पत्रकार पर हमला हुआ। एक को धमकाया गया। दो पत्रकारों को सेन्सरशिप झेलनी पड़ी। स्थानीय पत्रकारों के अनुसार सेल्फ सेन्सरशिप यहां आम बात बन गई है और पत्रकारों के राजनीतिक आधार पर विभाजन का भी प्रेस स्वतंत्रता पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

राजस्थान

दो सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं (जगदीश गोलिया और राज सिंह गुर्जर) की हत्या हुई जबकि छह अन्य पर हमले हुए। मानहानि और राजद्रोह का एक-एक मामला दर्ज हुआ। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के 72 मामलों में से 60 इंटरनेट बंदी के मामले शामिल हैं जो देश में सर्वाधिक हैं। 

तेलंगाना

दो पत्रकारों व सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं (ममिदी करूनाकर रेड्डी और रामकृषनैया) की हत्या हुई। चार पत्रकारों की गिरफ़्तारी हुई और तीन पर हमले हुए। जनवरी 2022 में एक चौंकाने वाली घटना में तेलंगाना राष्ट्र समिति सरकार और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के संदर्भ में “नकारात्मक कवरेज” को लेकर 40 पत्रकारों को 12 घंटे तक हिरासत में रखा गया।

राइट्स एंड रिस्क अनैलिसिस ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार 2022 में सात महिला पत्रकारों समेत 194 पत्रकारों को देश भर में सरकारी एजंसियों, गैर सरकारी राजनीतिक तत्वों और अपराधियों आदि ने निशान बनाया। तेलंगाना 40 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर था। पहले नंबर पर जम्मू कश्मीर था जहां ऐसे 48 मामले हुए थे।

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