भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खुशी की बात है कि जिस तरह से इन दिनों हर तरफ त्योहारों की छटा छाई हुई है, भारतीय उपभोक्ताओं का विश्वास भी अब अर्थव्यवस्था के प्रति बढ़ रहा है। उपभोक्ताओं की भावनाओं से संबंधित रिजर्व बैंक की एक नई रिपोर्ट इन दिनों खूब चर्चा में है, जिसमें बताया गया है कि अब भारतीय समाज से कोरोना का आर्थिक दुष्प्रभाव पूर्णतः खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। केंद्रीय बैंक की इस रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़े सितंबर में हुए एक सर्वे पर आधारित हैं। इस रिपोर्ट के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि सितंबर में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स (सीसीआई) 92.2 पर दर्ज हुआ, लगभग इसी स्तर से कुछ पर यह इंडेक्स वर्ष 2019 में था। यानी देश की आर्थिक नीतियों की चाल सही दिशा की ओर अग्रसर है।
रिजर्व बैंक द्वारा किया जाने वाला यह सर्वे मुख्यतः पांच आर्थिक तथ्यों पर भारतीयों के विचार व भावनाओं को जानने की कोशिश करता है। इसमें अर्थव्यवस्था की स्थिति, रोजगार का वर्तमान स्तर, महंगाई व उसका प्रभाव, व्यक्तिगत आर्थिक आय में बढ़ोतरी या गिरावट तथा विभिन्न प्रकार के खर्चों का विश्लेषण सम्मिलित होता है। इस सर्वे का एक अन्य पक्ष यह भी है कि यह वर्तमान स्थिति के विश्लेषण के साथ-साथ भविष्य के प्रति भारतीयों के आर्थिक विकास के नजरिये को भी जानने की कोशिश करता है। कोरोना की आर्थिक मार पड़ने के बाद वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2022 तक सीसीआई गिरकर तकरीबन 40 अंक के स्तर पर चला गया था। मगर ये आंकड़े बताते हैं कि विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला मुल्क तीन वर्षों में ही आर्थिक गिरावट के दौर से बाहर निकल आया है।
इन सबके बावजूद भारतीय समाज का आम व्यक्ति रोजगार में बढ़ोतरी के संबंध में बहुत ज्यादा सकारात्मक नहीं है। रिजर्व बैंक के इसी सर्वे में लगभग दो तिहाई से अधिक लोगों ने माना है कि रोजगार की उपलब्धता के संबंध में अब भी स्थिति लगभग एक वर्ष पहले जैसी ही है और तकरीबन 10 प्रतिशत से अधिक लोगों ने रोजगार की बढ़ोतरी के संबंध में अपनी राय ही नहीं दी है। आगामी वर्ष के लिए रोजगारों में बढ़ोतरी के संबंध में तकरीबन 30 प्रतिशत लोगों ने अपनी राय रखने से मना कर दिया। 25 प्रतिशत से अधिक लोगों ने माना कि एक वर्ष बाद रोजगारों के स्तर में भारतीय अर्थव्यवस्था में कमी देखने को मिलेगी। वहीं 18 प्रतिशत लोगों ने माना कि एक वर्ष बाद की स्थिति ऐसी ही रहेगी। आम भारतीय रोजगारों की बढ़ोतरी के संबंध में ज्यादा आशान्वित नहीं है, इसके दो कारण हो सकते हैं। एक तो सरकारी क्षेत्र में रोजगारों की उपलब्धता बहुत कम है, दूसरे निजी क्षेत्र में हमेशा अस्थिरता ही ज्यादा देखने को मिलती है।
पिछले तीन दशकों में भारत में बेरोजगारी की दर कभी भी पांच प्रतिशत से नीचे नहीं रही, परंतु इस अवधि में मुल्क की आबादी 50 करोड़ के आसपास बढ़ी। यानी बेरोजगारों की संख्या भारत में प्रतिवर्ष बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इसी कारण भारत ‘रोजगार विहीन आर्थिक विकास’ वाले मुल्क के रूप में जाना जाता है।
भारत को इस समस्या से निजात मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर ही दिला सकता है। लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का देश के निर्यात में दो प्रतिशत से भी कम हिस्सा है, जबकि हमसे कम आबादी वाले वियतनाम का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का निर्यात में अंशदान तुलनात्मक रूप से बहुत ज्यादा है। एशिया में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में भारत का मुकाबला अब चीन से ही नहीं, अपितु कई छोटी-छोटी अर्थव्यवस्थाओं से भी है। थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलयेशिया, ताइवान, फिलीपींस, कोरिया और बांग्लादेश भी बड़ी तेजी से आगे निकल रहे हैं, क्योंकि इन सभी देशों के उत्पादों की लागत भारतीय उत्पादों से तकरीबन 20 से 30 प्रतिशत तक कम है।
इसके अलावा, एक लंबे अरसे से सेवा क्षेत्र आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, परंतु इसके द्वारा रोजगारों का सृजन समाज के सभी तबकों तक नहीं पहुंच रहा है। शायद इसीलिए बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है।