बाबूलाल धनिया
कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठ बिहार का एक प्रमुख त्यौहार माना जाता है। क्योकि आज के दिन बिहार की तमाम महिलाए इन बांस के बर्तनों में पूजा सामग्री रख किसी जलाशय में छठ माता की पूजा करती है और गीत गाती हैं।
पर यह तमाम पर्व त्यौहार सदियों से हमारे एकता और भाईचारा के साझी बिरासत बने हुए है। क्योकि त्यौहार भले किसी के हों पर उनसे खुशहाली सभी के घर मे आती है।
चित्र में छठ माता की पूजा सामग्री बेच रहा एक मुस्लिम व्यापारी दिख रहा है।यह ब्यापारी कब से इस इंतजार में रहा होगा कि “छठ पूजा का त्यौहार आए और उसके लिए खुशहाली लाए?”
पर हम मध्यप्रदेश के है जहां छठ पूजा तो नही होती पर हमारे गाँव मे दीपावली कों जिस रुई की बाती से दीप जलाए जाते है उसे घर घर पहुचाने का काम मुस्लिम महिलाए ही करती है।
और यह अभी से नही सदियों पुरानी परम्परा है। हमारे गाँव मे वह बिरादरी नही है तो पड़ोसी गाँव की एक बुजुर्ग महिला आती हैं जिन्हें सब लोग कुरेसिया मौसी कहते है।उसके बदले में उन्हें हर घर से अनाज दिया जाता है जो क्विंटलों हो जाता है।
क्यो कि अक्सर त्यौहार कृषि आश्रित समाज की देन है जिसमे सभी की खुशहाली निहित है।
कितने अच्छे भाई चारा और एकता के प्रतीक होते है हमारे त्यौहार?