शशिकांत गुप्ते
किसी भी खेल में हार,या जीत तो होते ही रहती है। इसीलिए खेल को खेल की भावना से खेलना और देखना चाहिए।
भावनामय होकर कोई भी खेल खेलने और देखेंने से दुःख होता है।
विपक्षी की जीत देख कर मन में जलन होती है,इसीलिए पटाखे जलाने से भी वंचित रहना पड़ता है।
प्रायः खेल के प्रेमी खेल को भावनावश होकर देखते हैं।
मनोविज्ञान (Psychology) के अनुसार ज्यादा भावनावश होने वालों का मानसिक शोषण होना स्वाभाविक है।
भावनाओं के वशीभूत होने से लोग बार बार चढ़ने वाली काठ की हांडी पर ही विश्वास कर लेते हैं। भावनाओं के वशीभूत लोग यथार्थ में झांकने का साहस कर नहीं पाते हैं।
भावनाओं के वशीभूत लोग स्वप्न लोक में ही विवरण करते रहते हैं।
ख्वाब में ही पिछले दस वर्षो से पंद्रह लाख के ब्याज का लुफ्त उठा रहे हैं? स्वप्न में ही अच्छे दिनों को महसूस करतें हैं? स्वप्न में ही अमृतकाल का आनंद उठाते हैं?
भक्ति में डूबा व्यक्ति यह चौपाई बार बार रटता है।
सिय राम मय सब जग जानी
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी
इसीतरह भावनाओं में डूबा व्यक्ति, व्यक्ति पूजा में लीन होकर,सिर्फ और सिर्फ स्तुति गान ही गाता रहता हैं। जिस व्यक्ति की पूजा की जाती है,उस व्यक्ति में अहंकार आना स्वाभाविक है।
अंहकार एक ऐसा दुर्गुण है,जो व्यक्ति में भ्रम पैदा करता है।
अहंकारी व्यक्ति अपने अंदर के अवगुणों पर अहंकार का आवरण ओढ़ लेता है। अहंकार के आनंद में डूबे व्यक्ति के लिए आनंद बक्षी रचित निम्न पंक्तियां एकदम सटीक है।
सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के उसूलों से
कि खुशबू आ नहीं सकती, कभी कागज़ के फूलों से
भावनाओं को त्याग कर स्वच्छंद मानसिकता का आनंद उठाना चाहिए।
मानसिक आनंद मन को प्रफुल्लित रखता है। ऐसे व्यक्ति थोड़ी सी असफलता से निराश नहीं होते है। ऐसे लोगों में आत्म विश्वास होता है। ऐसे लोगों का सच हमेशा सकारात्मक होता है।
ऐसे व्यक्ति को कभी भी झूठ नहीं बोलना पड़ता है।
अहंकारी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के पूर्व अपना शृंगार करता है। अहंकारी व्यक्ति अपने परिधान को दिन भर बदलते रहता है।
आत्म विश्वास का उदाहरण हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधीजी हैं।
उनका पहराव सर्व विदित है।
चर्चा का मूल मुद्दा है। भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए,जीवन यथार्थ को अंगीकृत करना।
यही आत्म बल है।
ऐसे लोग खेल को खेल की भावना से देखते हैं और खेलते हैं।
शशिकांत गुप्ते इंदौर