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*एसईसीएल ने स्वीकारा : भूविस्थापितों की आर्थिक नाकेबंदी से 5.39 करोड़ का नुकसान*

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कोरबा। एसईसीएल ने स्वीकार किया है कि 11- 12 सितम्बर को छत्तीसगढ़ किसान सभा द्वारा आयोजित दो दिनों की आर्थिक नाकेबंदी से उसे 5.39 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है। कुसमुंडा क्षेत्र के खान प्रबंधक संजय मिश्रा द्वारा उच्चाधिकारियों को प्रेषित पत्र क्रमांक 2256 दिनांक 21.09.2023 में इस बात को माना है। यह स्वीकारोक्ति कोरबा जिले में भूविस्थापितों द्वारा रोजगार और पुनर्वास की मांग पर किए जा रहे आंदोलन के जोर पकड़ने का भी प्रमाण है। कोल प्रबंधन अपने खिलाफ लगातार हो रहे आंदोलन से परेशान है और इसे रोकने के लिए अब उसने अदालत की शरण ली है।

कुसमुंडा महाप्रबंधक ने आर्थिक नाकेबंदी से हुए नुकसान का हवाला देते हुए माकपा, किसान सभा और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ  के चार कार्यकर्ताओं के खिलाफ कटघोरा व्यवहार न्यायालय में वाद दायर किया हैं। इसके साथ ही उसने छत्तीसगढ़ शासन को भी प्रतिवादी बनाया है और अदालत से आंदोलनकारियों की गतिविधियों पर और आंदोलनों पर स्थाई रोक लगाने का आदेश जारी करने की मांग की है। 

अपने वाद में महाप्रबंधक संजय मिश्रा ने कहा है कि एसईसीएल केंद्रीय सरकार का सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, जो पिछले 30-35 वर्षों से कोयले का खनन और परिवहन कर रहा है। वह समय -समय पर खदान विस्तार हेतु राज्य शासन की मदद से भूमि का अधिग्रहण करता है और कोल इंडिया द्वारा निर्धारित नीतियों और प्रावधानों के अनुसार भू विस्थापितों को सुविधाएं प्रदान करता है और भू -अर्जन अधिकारी द्वारा जिसकी अनुशंसा की जाती है, उसे रोजगार देता है। लेकिन कुछ असामाजिक तत्व अपात्र लोगों को लाभ और रोजगार दिलाने हेतु प्रबंधन पर अनुचित दबाव डालने के लिए लगातार आंदोलन कर रहे हैं, जिससे एसईसीएल को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए आंदोलनों  पर रोक लगाई जानी चाहिए। ‘असामाजिक तत्व’ से एसईसीएल का सीधा इशारा प्रतिवादियों की ओर है, जिसमें माकपा नेता प्रशांत झा भी शामिल है।

माकपा नेता प्रशांत झा ने इस वाद को भू विस्थापितों के आंदोलन को प्रबंधन द्वारा कुचलने की साजिश बताया है। उन्होंने प्रबंधन द्वारा आंदोलनकारी नेताओं को ‘असामाजिक तत्व’ कहे जाने पर भी कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि संगठन बनाने और अपनी जायज मांगों पर संघर्ष करने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है। माकपा नेता ने कहा कि एसईसीएल क्या यह बताएगी कि जिन लोगों को आंदोलन के चलते रोजगार देने को वह मजबूर हुई है, क्या वे सभी प्रकरण गलत है? भूविस्थापितों के आंदोलन के लिए एसईसीएल को जिम्मेदार बताते हुए उन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि जिन किसानों ने ‘राष्ट्र के विकास यज्ञ’ में अपनी जमीन और अपनी आजीविका के अंतिम सहारे को होम कर दिया, कोल इंडिया उन्हें रोजगार देने से मना कर रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में कोल इंडिया की रोजगार विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन और तेज किया जाएगा और अदालती कार्यवाहियों की धमकी से माकपा और किसान सभा के कार्यकर्ता डरने वाले नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि एसईसीएल के जो अधिकारी  किसानों का भविष्य बर्बाद करना चाहते हैं, उनका भविष्य भूविस्थापितों का आंदोलन तय करेगा।

उल्लेखनीय है कि कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय के सामने पिछले दो सालों से भूविस्थापित किसान लंबित रोजगार प्रकरणों का निराकरण करने की मांग पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं। लेकिन आज तक प्रबंधन ने उनसे सकारात्मक बातचीत करने की पहलकदमी तक नहीं की है। इस आंदोलन को खत्म करने के लिए अब प्रबंधन द्वारा अदालत का सहारा लेने से इस आंदोलन के और उग्र होने का ही अंदेशा है।

*प्रशांत झा*

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