*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
गहलौत को मोदी जी ने अच्छी तरह औकात बता दी। जनाब बड़े जादूगर बने फिरते हैं। कोई दूसरा कहे न कहे, खुद अपने को जादूगर कहते हैं। जरा सा राजस्थान में सरकार में पांच साल पूरे क्या कर लिए, जनाब खुद को बड़ा भारी जादूगर ही कहने लगे। माना कि पिछले चुनाव में बहुमत नहीं मिलने के बाद भी गहलोत साहब ने सरकार बना भी ली और फिर राजस्थान में मोदी भक्तों के मध्य प्रदेश दांव से, सरकार बचा भी ली। और राम-राम कर के गहलोत साहब ने सीएम की कुर्सी पर पांच साल पूरे भी कर लिए। माना कि मोदी जी की सरकार के रहते हुए, पब्लिक के बाहर बैठाने के फैसले के बाद भी, मोदी जी की पार्टी को पांच साल सरकार से बाहर बैठाए रखना और डबल इंजन के जमाने में अपनी सिंगल इंजन सरकार को पांच साल चलाते रहना, किसी चमत्कार से कम नहीं है। पर जादूगरी…इसमें जादूगरी वाली बात कहां है? पब्लिक की मेहरबानी से सरकार बन गयी और भाई लोगों ने जैसे-तैसे कर के पांच साल खींच लिए, इसे भी अगर जादूगरी कहेंगे, तो उसे क्या कहेंगे जो मोदीजी करते हैं?
जादूगरी तो वो थी, जो मोदी जी ने मध्य प्रदेश में दिखाई। वहां भी तो राजस्थान की ही तरह, पब्लिक ने मोदी जी की पार्टी को सरकार से बाहर बैठाया था। मगर मोदी जी ने पब्लिक का फैसला ही पलट दिया और सरकार से बाहर बैठायी गयी अपनी पार्टी को, सरकार के अंदर और सरकार में बैठे कमलनाथ को सरकार से बाहर करा दिया। और यह चमत्कार कोई बाई चांस या लप्पे में नहीं हो गया। यह चमत्कार मोदी जी ने बार-बार कर के दिखाया है। मध्य प्रदेश से पहले, कर्नाटक में और मध्य प्रदेश के बाद, महाराष्ट्र में फिर वही चमत्कार। मोदी जी का चमत्कार, बार-बार। लगातार। हर बार। यह होता है चमत्कार और ऐसा चमत्कार करने वाले को कहते हैं जादूगर। ये क्या कि एक टुच्चा सा चमत्कार दिखाया नहीं और मांग करने लगे कि जनाब को जादूगर माना जाए।
वैसे भी एक ट्रिक से, वह चाहे कितनी ही कामयाब क्यों न हो, कोई जादूगर नहीं हो जाता है। जादूगर के पिटारे में कम से कम पांच-दस अच्छी-अच्छी ट्रिकें तो होनी ही चाहिए। इससे कम ट्रिक वाला जादूगर, किस बात का जादूगर होगा। इसलिए, अगर आज देश में कोई असली जादूगर है, तो नरेंद्र मोदी हैं। पब्लिक के वोट डालने के बाद भी, उसके चुनाव को बदलने का जादू तो करते ही हैं, कभी अति-प्रचार से तो कभी पुलवामा या बालाकोट से, वोट डालने से पहले पब्लिक का दिमाग घुमाने का जादू, उससे भी अच्छा करते हैं। और अपने विरोधियों को देश का विरोधी बनाने का जादू भी। जो भी करते हैं, उससे ठीक उल्टा भाषण में दिखाने का चमत्कार भी। सच को झूठ और झूठ को सच, भ्रष्ट को अपनी पार्टी में लाकर राजा हरिश्चंद्र और ईमानदार को भ्रष्ट बनाने का जादू भी। अडानी की सेवा को राष्ट्र सेवा और अडानी की हेराफेरी के विरोध को राष्ट्र का विरोध बताने का जादू भी। ऐसे असली जादूगर के रहते हुए, किसी गहलोत-वहलोत को जादूगर कौन मानता है जी!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*