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इन चुनावों में जनविरोधी शासक वर्ग बदहवास

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,मुनेश त्यागी

     पांच राज्यों में हो रहे चुनावों में वहां की जनता और देश की जनता का बड़ा हिस्सा यह उम्मीद लगाए बैठा था कि इन चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का शासक वर्ग, अपनी पिछली नौ साल की उपलब्धियों को लेकर जनता के सामने आएगा और वह जनता को अवगत कराएगा कि उसने ये काम जनहित में किए हैं। चुनाव खत्म होने को हैं मगर ये आशाएं सिर्फ आशाएं ही बनकर रह गई हैं।

      मगर इन चुनावों में तो उल्टा ही हो गया है। “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” वाली कहावत जनता के सामने सही साबित हो रही है, क्योंकि इन चुनावों में मोदी और उसकी सरकार, कोई सकारात्मक एजेंडा लेकर या अपनी उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच नहीं गई है। जनता सरकार के इस रवैया से एकदम आश्चर्य में है। वह सोच रही है कि आखिर इस सरकार को क्या हो गया कि सरकार अपनी नौ साल की उपलब्धियों को इन राज्यों की जनता को क्यों नहीं बता रही है?

      दरअसल हकीकत यह है कि इन राज्यों में भारतीय जनता के पास में कुछ भी सकारात्मक नहीं  है। जहां वह सरकार में थी वहां भी और जहां वह विपक्ष में थी वहां पर भी, वह कोई सकारात्मक एजेंडा लेकर जनता के सामने नहीं गई है। हकीकत यह है कि उसने इन राज्यों में जनता के लिए कुछ किया ही नहीं है। इन राज्यों में मोदी की पार्टी के पास जनता को देने के लिए कोई मुद्दा नहीं है।

      राष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी कोई उपलब्धियां नहीं हैं जिन्हें लेकर वह जनता के सामने जाती और हकीकत यह भी है कि उसने जो कुछ भी किया है वह अपने चंद पूंजीपति दोस्तों के हितों को आगे बढ़ने का ही काम किया है। उसने जनता के लिए, किसानों मजदूरों नौजवानों छात्रों और महिलाओं के लिए कोई ऐसा काम नहीं किया है कि जिसे लेकर वह जनता के सामने जाती और वहां चुनाव के समय में इन मुद्दों को जनता के सामने रखती और उसे वोट मांगती।

      मगर यहां तो उल्टा ही हुआ। मोदी सरकार इन राज्यों में भी कांग्रेस को पानी पी पीकर कोस रही है। वह नेहरू को इसके लिए जिम्मेदार बता रही है कि नेहरू की नीतियों के कारण इस देश का विकास बाधित हो रहा है। आज भी वह इसी रट को लगाये हुए है। जनता सरकार की इन चुनावी नीतियों से एकदम अचंभित है, उसे यह विश्वास ही नहीं हो रहा है कि सरकार नौ साल की अपनी उपलब्धियां को बताने को तैयार ही नहीं है।

      इन राज्यों में हो रहे चुनावों में मोदी के भाषणों को सुनकर हंसी आती है। अब तो लोग मोदी के भाषणों पर मखौल ही उड़ाने लगे हैं। वे इन चुनाव में अपनी उपलब्धियों का कोई उल्लेख नहीं कर रहे हैं, अपनी पार्टी और सरकार की उपलब्धियों को जनता के सामने रखकर, उससे वोट नहीं मांग रहे हैं, बल्कि उल्टे वे कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, उसकी नीतियों को विकास में बड़ा बता रहे हैं और उनका बड़ा हमला नेहरू, सोनिया और राहुल गांधी पर ही आकर रुक गया है।

       अब यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर मोदी और उनकी सरकार इन राज्यों में जनता को अपनी राज्य सरकारों द्वारा किए गए कार्यों का विवरण क्यों नहीं दे रही है, उसे अपनी उपलब्धियां के बारे में क्यों नहीं बता रही है और इन उपलब्धियां के आधार पर वह वोट क्यों नहीं मांग रही है? जहां वह विपक्ष में है, वहां पर भी वह अपना जनहितकारी एजेंडा जनता के सामने नहीं रख रही है और जनता को नहीं बता रही है कि देखिए हमने आपके लिए यह संघर्ष किया है, ये नीतियां रखी, मगर सरकार ने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की।

      अब तो इन चुनावों में उल्टा ही देखने को मिल रहा है। जहां केंद्र की मोदी सरकार को इन चुनाव का एजेंडा सेट करना चाहिए था, वहां पर अब कांग्रेस ही और राहुल गांधी ही इन चुनावों का एजेंडा तय कर रहे हैं और यह भी देखने में आ रहा है कि भाजपा भी राहुल गांधी और कांग्रेस की द्वारा तय किए गए एजेंडे की नकल कर रही है और उनकी नीतियों को लागू करने की ही बात कर रही है, जैसे उसके पास जनता को देने के लिए कुछ है ही नही।

      इन चुनाव को देखकर यह बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी के पास जनता को देने के लिए कुछ भी नहीं है, जनता को बताने के लिए कुछ भी नहीं है, क्योंकि उसकी सारी नीतियां किसानों, मजदूरों और आम जनता के हितों को आगे बढ़ाने की नहीं रही हैं। उसने जनता के बुनियादी अधिकारों पर हमले किये हैं, उसने किसानों, मजदूरों, नौजवानों की जिंदगी में बेहतरी का कोई काम नहीं किया हैं और कोई एजेंडा पेश नहीं किया है।

       उसने जनता के सामने जो सबसे बड़ी समस्याएं मुंह बाये खड़ी हैं ,,,,जैसे गरीबी, भुखमरी, महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी,,,, इन्हें दूर करने का कोई काम नहीं किया है और जनता आज भाजपा की नीतियों से बिल्कुल हताश और परेशान है और बड़े इत्मीनान के साथ और बड़ी आसानी से यह कहा जा सकता है कि  मोदी सरकार और उनकी पार्टी के पास जनता को देने के लिए कुछ भी नहीं है, इसीलिए भारत का शासक वर्ग आज हताश और निराशा है क्योंकि जनता उसकी बातों और चुनावी दांवों और नारों में नहीं आ रही है।

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