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*चन्द्रयान, सूर्य यान और चुनाव यान,भाग -1*

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*रजनीश भारती*

रूस, अमेरिका, चीन, आदि देशों ने कई दशक पहले ही चन्द्रयान मिशन  सफलतापूर्वक पूरा कर लिया मगर उन देशों के किसी राष्ट्रीय नेता ने उसका श्रेय नहीं लिया बल्कि सबने अपने देश के वैज्ञानिकों को ही श्रेय दिया। रूस ने तो 64 साल पहले 14 सितम्बर 1959 को ही चाँद पर पहला चन्द्रयान भेज दिया था फिर भी किसी रूसी नेता ने उसका श्रेय नहीं लिया। इसी तरह अमेरिका का दावा है कि उसने चाँद पर आदमी को भेज दिया। परन्तु किसी अमेरिकी नेता ने इसका श्रेय नहीं लिया। मगर भारत के महान वैज्ञानिकों के कई दशकों के लम्बे प्रयास के बाद बीते 23अगस्त 2023 को चन्द्रयान मिशन सफल हुआ तो शोषकवर्ग की सरकार परस्त मीडिया इस सफलता का सारा श्रेय मोदी को देना शुरू कर दिया। जिससे गाँव की भोली भाली अनपढ़ जनता समझने लगी कि मोदी जी चाँद पर पहुँच गये। चाँद पर तिरंगा झंडा गाड़ दिया। उन्हें लगता है कि अब तक दुनिया में और कोई यह कारनामा नहीं कर पाया। 

दरअसल जब देश की जनता टीवी पर चन्द्रयान की लैण्डिंग देख रही थी तो चन्द्रयान की लैण्डिंग होने के तुरन्त बाद अपने चिरपरिचित अन्दाज में मोदी का चेहरा स्क्रीन पर आ जाता है। बुद्धिजीवियों ने सोचा “दाल-भात में मूसरचंद” की क्या जरूरत थी। मगर भोले भाले कुछ लोग सोचने लगे कि मोदी ही चन्द्रयान पर बैठकर चाँद पर पहुंचे हैं। कुछ लम्पटों ने इसका श्रेय सनातन धर्मशास्त्रों को देना शुरू किया मगर शोषक वर्गों की पूरी मीडिया दो भागों में बँट गयी एक सरकार परस्त मीडिया जो पूरा श्रेय मोदी को दे रही थी तो विपक्ष की मीडिया नेहरू को श्रेय दे रही थी। 

  इस मिशन में वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम थी मगर उनमें से उन्हीं दो तीन वैज्ञानिको को प्रचारित किया गया जो सरकार की मंशा के अनुरूप चन्द्रयान की लांचिंग के पहले नारियल फोड़ने में विश्वास करते हैं।

जरा सोचिये, चीन के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम चाँद बना कर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। इतनी महान खोज के बावजूद चीन कभी इतराता नहीं, और शी जिनपिंग ने कभी उसका श्रेय नहीं लिया।

अब सूर्य यान को देखिए, 

सूर्य यान मिशन भी कई देशों में हो चुका है। दरअसल प्राचीनकाल में मनुष्य ने आग की खोज किया। बाद में उसने नदियों के बहाव से चक्कर पैदा करके पनचक्की चला दिया। इससे नदियों के किनारे छोटे-छोटे कल कारखानों का विकास हुआ। ये कारखाने पदार्थ की स्थितिज ऊर्जा से चल रहे थे। इसमें कोई प्रदूषण नहीं था। मगर अरबों लीटर पानी बह जाने पर थोड़ा सा उत्पादन होता था और नदी सूखने या बहाव कम होने पर काम रुक जाता था। आग और पानी के संयोग से सत्रहवीं सदी में भाप शक्ति की खोज हुई। इस प्रकार थोड़े पानी और थोड़े कोयले से बहुत सा उत्पादन सम्भव हुआ। मगर इसमें बहुत ज्यादा धुआँ पैदा होता है और हवा दूषित हो जाती है। 

  इसके बाद परमाणु रिएक्टर के जरिए परमाणु ऊर्जा पैदा की गयी इसमें धुआं तो नहीं निकलता है लेकिन काफी मात्रा में रेडियो एक्टिव कचरा निकलता है। ये बात हम सब जानते हैं कि रेडियो एक्टिव कचरा बहुत खतरनाक और नुकसान दायक होता है। सोलर पैनल और बैटरी लगाकर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया गया परन्तु इसमें भी बैट्री से  प्रदूषण होता है।

 लम्बे समय से वैज्ञानिक इस तरह की कोशिश में लगे थे कि जिस तरह से सूर्य ऊर्जा देता है मगर उसमें से कोई धुआँ अथवा रेडियोऐक्टिव कचरा नहीं निकलता उसी तरह हम भी ऊर्जा पैदा करने की ऐसी तकनीक बना सकते हैं जिसमें कोई धुआँ अथवा कचरा नहीं निकलेगा। इससे वातावरण स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी। 

 अब चीन ने कृत्रिम सूरज बनाकर उस कल्पना को साकार कर लिया है। यह प्राकृतिक सूरज से 10 गुना अधिक गर्मी देता है। इसमें न्यूक्लियर फ़्यूजन से एनर्जी तो मिलती है मगर रेडियो एक्टिव कचरा नहीं निकलता। इतना बड़ा कारनामा चीन के वैज्ञानिकों ने किया मगर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसका कोई श्रेय नहीं लिया। मगर मोदी ने चन्द्रयान की लैण्ड के बाद हुए सूर्य यान की लांचिंग का भी श्रेय हड़पने की पूरी कोशिश किया है, मगर इस बार भोली भाली जनता सोच रही है कि मोदी जी इतने गर्म सूरज को कैसे निगल पायेंगे? 

 मगर टाइमिंग देखिये, सूर्य यान चार महीने बाद उस वक्त सूर्य की कक्षा में स्थापित होगा जिस वक्त लोकसभा का चुनाव प्रचार अपने चरम पर होगा। ठीक उसी समय मोदी जी सूर्य यान को सूर्य की कक्षा में स्थापित करने का मास्टर स्ट्रोक लगायेंगे। तब भक्त गायेंगे कि “बुढ़ौती में रवि भक्ष लियो, तब लोकसभा चुनाव भयो उजियारो।” 

  बुलेट ट्रेन की 72 हजार किलोमीटर लम्बी लाईन बिछाकर चीन के सभी शहरों को जोड़ दिया गया परन्तु इसका श्रेय चीन के किसी राष्ट्राधयक्ष ने नहीं लिया। मगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी महाराज भारत में बुलेट ट्रेन चलाने के नाम पर दो बार जनता से वोट लेकर प्रधान मंत्री बन कर जनता को जमकर लूटवा चुके हैं। इस समय जितना धन भारत की सभी राजनीतिक पार्टियों का  मिला कर होगा उससे ज्यादा धन अकेले भाजपा के पास इकट्ठा हो गया है। इनके पास काला धन कितना है इसका अन्दाजा किसी के पास नहीं है। मगर कर्नाटक चुनाव में कालेधन की सारी ताकत लगाकर भाजपा फेल हो गयी तो उसके थिंक टैंकों ने तय कर लिया होगा कि अब सिर्फ दंगा-फसाद अंधराष्ट्रवाद और कालेधन की ताकत से ही चुनाव नहीं जीता जा सकता। तब वे वैज्ञानिक आविष्कारों को भी मोदी का चेहरा चमकाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। भाजपा ने गाय, गोबर, गोमूत्र, गंगा के सेवन से मोदी का चेहरा पूरी तरह नहीं चमका पाया तो चन्द्रयान की सफलता का सारा श्रेय मोदी को देकर मोदी का चेहरा और अधिक चमका कर 2024 का लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है। 

  कुछ लोगों का कहना है कि – चाँद और सूरज के बारे में 40-50 साल पहले ही गंभीर अध्ययन करके विदेशी वैज्ञानिकों ने कई तकनीकों का विकास कर लिया है, तो फिर हमें भी वही लकीर पीटने की क्या जरूरत है? यह सवाल उठाना एक हद तक ठीक हो सकता है। मगर कुछ बेहतर खोज करने की संभावनाओं को नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए। गालिब के शब्दों में-

  क्या फर्ज है कि सबको मिले एक सा जवाब, 

आओ न हम भी सैर करें कोहे तूर की। 

 हाँ, यह कहा जा सकता है कि नाले की गैस से चाय, आलू से सोना, बिना ईंजन का पुष्पक विमान, आदमी के बच्चे के 30 किलो के धड़ पर हाथी का चार कुन्टल का सिर जोड़ देने जैसी सैकड़ों तकनीकों के रहते इस तरह के छोटे-मोटे मिशन की जरूरत तो कत्तई नहीं थी। मगर चुनाव जो न कराये। 

भाग -2

रूस, अमेरिका, चीन, आदि देशों ने कई दशक पहले ही चन्द्रयान मिशन  सफलतापूर्वक पूरा कर लिया मगर उन देशों के किसी राष्ट्रीय नेता ने उसका श्रेय नहीं लिया बल्कि सबने अपने देश के वैज्ञानिकों को ही श्रेय दिया। रूस ने तो 64 साल पहले 14 सितम्बर 1959 को ही चाँद पर पहला चन्द्रयान भेज दिया था फिर भी किसी रूसी नेता ने उसका श्रेय नहीं लिया। इसी तरह अमेरिका का दावा है कि उसने चाँद पर आदमी को भेज दिया। परन्तु किसी अमेरिकी नेता ने इसका श्रेय नहीं लिया। मगर भारत के महान वैज्ञानिकों के कई दशकों के लम्बे प्रयास के बाद बीते 23अगस्त 2023 को चन्द्रयान मिशन सफल हुआ तो शोषकवर्ग की सरकार परस्त मीडिया इस सफलता का सारा श्रेय मोदी को देना शुरू कर दिया। जिससे गाँव की भोली भाली अनपढ़ जनता समझने लगी कि मोदी जी चाँद पर पहुँच गये। चाँद पर तिरंगा झंडा गाड़ दिया। उन्हें लगता है कि अब तक दुनिया में और कोई यह कारनामा नहीं कर पाया। 

दरअसल जब देश की जनता टीवी पर चन्द्रयान की लैण्डिंग देख रही थी तो चन्द्रयान की लैण्डिंग होने के तुरन्त बाद अपने चिरपरिचित अन्दाज में मोदी का चेहरा स्क्रीन पर आ जाता है। बुद्धिजीवियों ने सोचा “दाल-भात में मूसरचंद” की क्या जरूरत थी। मगर भोले भाले कुछ लोग सोचने लगे कि मोदी ही चन्द्रयान पर बैठकर चाँद पर पहुंचे हैं। कुछ लम्पटों ने इसका श्रेय सनातन धर्मशास्त्रों को देना शुरू किया मगर शोषक वर्गों की पूरी मीडिया दो भागों में बँट गयी एक सरकार परस्त मीडिया जो पूरा श्रेय मोदी को दे रही थी तो विपक्ष की मीडिया नेहरू को श्रेय दे रही थी। 

  इस मिशन में वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम थी मगर उनमें से उन्हीं दो तीन वैज्ञानिको को प्रचारित किया गया जो सरकार की मंशा के अनुरूप चन्द्रयान की लांचिंग के पहले नारियल फोड़ने में विश्वास करते हैं।

जरा सोचिये, चीन के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम चाँद बना कर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। इतनी महान खोज के बावजूद चीन कभी इतराता नहीं, और शी जिनपिंग ने कभी उसका श्रेय नहीं लिया।

अब सूर्य यान को देखिए, 

सूर्य यान मिशन भी कई देशों में हो चुका है। दरअसल प्राचीनकाल में मनुष्य ने आग की खोज किया। बाद में उसने नदियों के बहाव से चक्कर पैदा करके पनचक्की चला दिया। इससे नदियों के किनारे छोटे-छोटे कल कारखानों का विकास हुआ। ये कारखाने पदार्थ की स्थितिज ऊर्जा से चल रहे थे। इसमें कोई प्रदूषण नहीं था। मगर अरबों लीटर पानी बह जाने पर थोड़ा सा उत्पादन होता था और नदी सूखने या बहाव कम होने पर काम रुक जाता था। आग और पानी के संयोग से सत्रहवीं सदी में भाप शक्ति की खोज हुई। इस प्रकार थोड़े पानी और थोड़े कोयले से बहुत सा उत्पादन सम्भव हुआ। मगर इसमें बहुत ज्यादा धुआँ पैदा होता है और हवा दूषित हो जाती है। 

  इसके बाद परमाणु रिएक्टर के जरिए परमाणु ऊर्जा पैदा की गयी इसमें धुआं तो नहीं निकलता है लेकिन काफी मात्रा में रेडियो एक्टिव कचरा निकलता है। ये बात हम सब जानते हैं कि रेडियो एक्टिव कचरा बहुत खतरनाक और नुकसान दायक होता है। सोलर पैनल और बैटरी लगाकर सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया गया परन्तु इसमें भी बैट्री से  प्रदूषण होता है।

 लम्बे समय से वैज्ञानिक इस तरह की कोशिश में लगे थे कि जिस तरह से सूर्य ऊर्जा देता है मगर उसमें से कोई धुआँ अथवा रेडियोऐक्टिव कचरा नहीं निकलता उसी तरह हम भी ऊर्जा पैदा करने की ऐसी तकनीक बना सकते हैं जिसमें कोई धुआँ अथवा कचरा नहीं निकलेगा। इससे वातावरण स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी। 

 अब चीन ने कृत्रिम सूरज बनाकर उस कल्पना को साकार कर लिया है। यह प्राकृतिक सूरज से 10 गुना अधिक गर्मी देता है। इसमें न्यूक्लियर फ़्यूजन से एनर्जी तो मिलती है मगर रेडियो एक्टिव कचरा नहीं निकलता। इतना बड़ा कारनामा चीन के वैज्ञानिकों ने किया मगर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसका कोई श्रेय नहीं लिया। मगर मोदी ने चन्द्रयान की लैण्ड के बाद हुए सूर्य यान की लांचिंग का भी श्रेय हड़पने की पूरी कोशिश किया है, मगर इस बार भोली भाली जनता सोच रही है कि मोदी जी इतने गर्म सूरज को कैसे निगल पायेंगे? 

 मगर टाइमिंग देखिये, सूर्य यान चार महीने बाद उस वक्त सूर्य की कक्षा में स्थापित होगा जिस वक्त लोकसभा का चुनाव प्रचार अपने चरम पर होगा। ठीक उसी समय मोदी जी सूर्य यान को सूर्य की कक्षा में स्थापित करने का मास्टर स्ट्रोक लगायेंगे। तब भक्त गायेंगे कि “बुढ़ौती में रवि भक्ष लियो, तब लोकसभा चुनाव भयो उजियारो।” 

  बुलेट ट्रेन की 72 हजार किलोमीटर लम्बी लाईन बिछाकर चीन के सभी शहरों को जोड़ दिया गया परन्तु इसका श्रेय चीन के किसी राष्ट्राधयक्ष ने नहीं लिया। मगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी महाराज भारत में बुलेट ट्रेन चलाने के नाम पर दो बार जनता से वोट लेकर प्रधान मंत्री बन कर जनता को जमकर लूटवा चुके हैं। इस समय जितना धन भारत की सभी राजनीतिक पार्टियों का  मिला कर होगा उससे ज्यादा धन अकेले भाजपा के पास इकट्ठा हो गया है। इनके पास काला धन कितना है इसका अन्दाजा किसी के पास नहीं है। मगर कर्नाटक चुनाव में कालेधन की सारी ताकत लगाकर भाजपा फेल हो गयी तो उसके थिंक टैंकों ने तय कर लिया होगा कि अब सिर्फ दंगा-फसाद अंधराष्ट्रवाद और कालेधन की ताकत से ही चुनाव नहीं जीता जा सकता। तब वे वैज्ञानिक आविष्कारों को भी मोदी का चेहरा चमकाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। भाजपा ने गाय, गोबर, गोमूत्र, गंगा के सेवन से मोदी का चेहरा पूरी तरह नहीं चमका पाया तो चन्द्रयान की सफलता का सारा श्रेय मोदी को देकर मोदी का चेहरा और अधिक चमका कर 2024 का लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है। 

  कुछ लोगों का कहना है कि – चाँद और सूरज के बारे में 40-50 साल पहले ही गंभीर अध्ययन करके विदेशी वैज्ञानिकों ने कई तकनीकों का विकास कर लिया है, तो फिर हमें भी वही लकीर पीटने की क्या जरूरत है? यह सवाल उठाना एक हद तक ठीक हो सकता है। मगर कुछ बेहतर खोज करने की संभावनाओं को नजरअन्दाज नहीं किया जाना चाहिए। गालिब के शब्दों में-

  क्या फर्ज है कि सबको मिले एक सा जवाब, 

आओ न हम भी सैर करें कोहे तूर की। 

 हाँ, यह कहा जा सकता है कि नाले की गैस से चाय, आलू से सोना, बिना ईंजन का पुष्पक विमान, आदमी के बच्चे के 30 किलो के धड़ पर हाथी का चार कुन्टल का सिर जोड़ देने जैसी सैकड़ों तकनीकों के रहते इस तरह के छोटे-मोटे मिशन की जरूरत तो कत्तई नहीं थी। मगर चुनाव जो न कराये। 

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