इन दिनों देशभर में सैम मानेकशॉ के नाम की खूब चर्चा हो रही है। दरअसल, भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ पर बनी फिल्म ‘सैम बहादुर’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित पीरियड ड्रामा में विक्की ने 1971 में पाकिस्तान को धूल चटाने वाले सैन्य अधिकारी मानेकशॉ की मुख्य भूमिका निभाई है। इस फिल्म में विक्की कौशल के अलावा सान्या मल्होत्रा और फातिमा सना शेख और मोहम्मद जीशान अय्यूब जैसे अकलाकर भी अहम किरदारों में नजर आने वाले हैं।
आखिर कौन हैं सैम मानेकशॉ? 1971 युद्ध में देश के पहले फील्ड मार्शल की क्या भूमिका थी?
बचपन से ही सैनिक बनने का सपना
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर जिले में हुआ था। उनके पिता होर्मसजी मानेकशॉ एक डॉक्टर थे। उनका पूरा नाम सैम होरमूजजी फ्रांमजी जमशेदजी मानेकशॉ था, लेकिन दोस्त, पत्नी, नाती और उनके अफसर या मातहत या तो उन्हें सैम कह कर पुकारते थे या ‘सैम बहादुर’।
पूर्व सैन्य अधिकारी ने उत्तराखंड के नैनीताल से अपनी प्रारंभिक पढ़ाई की और इसके बाद हिंदू सभा कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा हासिल की। अपने पिता के खिलाफ जाकर 1932 में मानेकशॉ ने भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया और दाे साल बाद 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में भर्ती हुए। छोटी सी उम्र में ही उन्हें युद्ध में शामिल होना पड़ा था।
द्वितीय विश्व युद्ध में आंतों, जिगर और गुर्दों में लगीं सात गोलियां
सैम को सबसे पहले शोहरत मिली साल 1942 में। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने अपनी मशीनगन की सात गोलियां उनकी आंतों, जिगर और गुर्दों में उतार दीं। उनकी जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह ने एक साक्षात्कार में बताया, ‘उनके कमांडर मेजर जनरल कोवान ने उसी समय अपना मिलिट्री क्रॉस उतार कर कर उनके सीने पर इसलिए लगा दिया क्योंकि मृत फौजी को मिलिट्री क्रॉस नहीं दिया जाता था।’
जब मानेकशॉ घायल हुए थे तो आदेश दिया गया था कि सभी घायलों को उसी अवस्था में छोड़ दिया जाए क्योंकि अगर उन्हें वापस लाया लाया जाता तो पीछे हटती बटालियन की गति धीमी पड़ जाती। लेकिन उनका अर्दली सूबेदार शेर सिंह उन्हें अपने कंधे पर उठा कर पीछे लाया।
सैम की हालत इतनी खराब थी कि डॉक्टरों ने उन पर अपना समय बरबाद करना उचित नहीं समझा। तब सूबेदार शेर सिंह ने डॉक्टरों की तरफ अपनी भरी हुई राइफल तानते हुए कहा था, ‘हम अपने अफसर को जापानियों से लड़ते हुए अपने कंधे पर उठा कर लाए हैं। हम नहीं चाहेंगे कि वह हमारे सामने इसलिए मर जाएं क्योंकि आपने उनका इलाज नहीं किया। आप उनका इलाज करिए नहीं तो मैं आप पर गोली चला दूंगा।’
डॉक्टर ने अनमने मन से उनके शरीर में घुसी गोलियां निकालीं और उनकी आंत का क्षतिग्रस्त हिस्सा काट दिया। आश्चर्यजनक रूप से सैम बच गए। पहले उन्हें मांडले ले जाया गया, फिर रंगून और फिर वापस भारत। साल 1946 में लेफ्टिनेंट कर्नल सैम मानेकशॉ को सेना मुख्यालय दिल्ली में तैनात किया गया।
इंदिरा से बोले- ‘आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकतीं…’
1962 में चीन से युद्ध के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण ने सीमा क्षेत्रों का दौरा किया था। प्रधानमंत्री नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी भी उनके साथ थीं। सैम के एडीसी ब्रिगेडियर बहराम पंताखी अपनी किताब सैम मानेकशॉ- द मैन एंड हिज टाइम्स में लिखते हैं, ‘सैम ने इंदिरा से कहा था कि आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकतीं क्योंकि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है। इंदिरा को तब यह बात बुरी भी लगी थी लेकिन सौभाग्य से इंदिरा और मानेकशॉ के रिश्ते इसकी वजह से खराब नहीं हुए थे।’
1971 युद्ध से पहले सैम के जवाब से हैरान हो गई थीं इंदिरा
इतिहास के पन्नों में दर्ज देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सैम मानेकशॉ का यह किस्सा का काफी चर्चित है। दरअसल, 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह मार्च में ही पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दें। हालांकि, सैम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया क्योंकि भारतीय सेना हमले के लिए तैयार नहीं थी। इंदिरा गांधी इससे नाराज भी हुईं। मानेकशॉ ने पूछा, ‘आप युद्ध जीतना चाहती हैं या नहीं’। जवाब हां में मिला मिला। इस पर मानेकशॉ ने कहा, ‘मुझे छह महीने का समय दीजिए। मैं गारंटी देता हूं कि जीत आपकी होगी’।
इंदिरा गांधी ने सेना के प्रशिक्षण के लिए कुछ समय दिया और 1971 में सैम के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध किया।
फील्ड मार्शल की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय जनरल
सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर के दौरान कई सम्मान प्राप्त हुए। 59 की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। एक साल बाद 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से सेवा-निवृत्त हो गए। सेवा-निवृत्ति लेने के बाद वह वेलिंगटन चले गए। वेलिंगटन में ही वर्ष 2008 में उनका निधन हो गया। अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें
एक दिलेर युद्ध नायक के बारे में जानने का जरिया है ‘सैम बहादुर’
सैम बहादुर! ये नाम है विक्की कौशल की आज रिलीज हुई फिल्म का। और… यह फिल्म देश के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जिंदगी पर आधारित है। फिल्म के बारे में जानने से पहले सैम बहादुर के बारे में जान लेते हैं। उनका संक्षिप्त परिचय ये है कि पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश की स्थापना कराने और भारत को मजबूत बनाने में इंदिरा गांधी के साथ-साथ उनकी अहम भूमिका रही। इंदिरा गांधी ने राजनीतिक धुरी पर मजबूत निर्णय लिया तो सैम मानेकशॉ ने सेना के सबसे आला अफसर के रूप में इंदिरा गांधी के इस निर्णय को सफल कर इतिहास रच दिया। उन्होंने इंदिरा गांधी को युद्ध से पहले पर्चे पर लिखकर बता दिया था कि ये जंग कब शुरू होगी। 1971 के इस युद्ध से पहले भी उन्होंने कई मौकों पर वीरता का परिचय दिया। वे सेवा में तब से रहे, जब भारत और पाकिस्तान एक मुल्क हुआ करते थे और अंग्रेजों का राज था। द्वितीय विश्व युद्ध, 1962 के भारत-चीन युद्ध से लेकर अपने चालीस वर्ष के सेवाकाल में उन्होंने कई बड़ी लड़ाइयों में देश को जीत दिलाई।
शुरुआत: बचपन से शुरू हुआ सिलसिला
अब आते हैं फिल्म पर। इस फिल्म में विक्की कौशल ने सैम मानेकशॉ का किरदार अदा किया है। ‘राजी’ फेम निर्देशक मेघना गुलजार ने ‘सैम बहादुर’ का निर्देशन किया है। शुरुआत सैम बहादुर के बचपन के उस दौर से होती है, जब वे पालने में झूल रहे होते हैं। माता-पिता ने नाम रखा होता है साइरस, लेकिन वे अपने बच्चे के इस नाम पर चिंतित हो उठते हैं, क्योंकि बीती रात इसी नाम का एक चोर मोहल्ले में पकड़ा जाता है। इसके बाद सैम बहादुर को सीधे सैनिक के रूप में दिखाया गया है, जो वर्दी पहने और सीना ताने नजर आते हैं। सैम बहादुर द्वितीय विश्व युद्ध का हिस्सा बनते हैं। बर्मा जाते हैं। 1962 की लड़ाई लड़ते हैं। कई जंग में हिस्सा लेते हैं, जिन्हें आप फिल्म में देखेंगे।
एक्टिंग: विक्की कौशल के अभिनय का शीर्ष
फिल्म में सैम बहादुर का किरदार विक्की कौशल ने अदा किया। अगर इस फिल्म को विक्की कौशल की अदाकारी का शीर्ष बिंदु कहें तो गलत नहीं होगा। उन्होंने कमाल का अभिनय किया है। सैम मानेकशॉ के किरदार में वे पूरी तरह रम गए हैं। सैन्य अधिकारी वाला रौब, दूरदर्शिता, निर्णय क्षमता, चाल-ढाल और बातचीत करने का अंदाज, हर मामले में विक्की कौशल ने करिश्मा दिखाया है। पर्दे पर उन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस किरदार के लिए उन्होंने कितना डूबकर मेहतन की होगी। उन्होंने अपनी पूरी जान झोंककर सैम मानकेशॉ की भूमिका को निभाया है, बिल्कुल वैसे जैसे सैम मानेकशॉ ने जान झोंककर देश के गौरव को बचाया।
हंसने के भी पर्याप्त अवसर
अगर आपको लग रहा है कि यह फिल्म सेना, राजनीति, युद्ध जैसे विषयों पर है तो थोड़ी बोरिंग होगी, तो यह आपका महज पूर्वानुमान है। युद्ध जैसे हालातों के बीच भी इस फिल्म में कई ऐसे मौके आते हैं, जब आप खुलकर हंस पाते हैं। फिल्म देखते हुए आप कल्पना कर सकते हैं कि सैम मानकेशॉ का सेंस ऑफ ह्यूमर कितना कमाल का रहा होगा! इस फिल्म में सिर्फ युद्ध और सेना का अनुशासन ही नहीं है, बल्कि गंभीर स्थितियों के बीच भी कई हंसने वाले दृश्य हैं। पर्दे पर एक जगह वे पीएम इंदिरा गांधी तक से ‘स्वीटी’ कहते नजर आते हैं। इसी तरह बर्मा युद्ध के दौरान शरीर में नौ गोलियां लगने के बाद भी वे मुस्कुराते हैं।
क्यों देखने जाएं?
जब आपके पास स्पाई यूनिवर्स की ‘टाइगर 3’ और आज ही रिलीज हुई एक और बड़े सितारे की फिल्म देखने का विकल्प उपलब्ध है, जिसके शो भी सवेरे जल्दी शुरू हो चुके हों तो आप ‘सैम बहादुर’ देखने क्यों जाएं? तो जवाब है- अगर आपको सेना और युद्ध आधारित फिल्में पसंद हैं, इतिहास में रुचि है, देशभक्ति के विषय पसंद हैं तो आंख बंद करके ये फिल्म देखने चले जाइए। यह फिल्म देश के अतीत को लेकर आपकी जानकारी को भी समृद्ध करेगी। परिवार के साथ देखने जाने लायक फिल्म है और बच्चों को एक युद्ध नायक के बारे में बताने का बेहतर मौका है, इससे चूकिए मत।
क्यों न जाएं
किसी दूसरी फिल्मों से तुलना करना सैम बहादुर की वीरता और विक्की कौशल के अभिनय के साथ नाइंसाफी होगी, लेकिन अगर वजह बतानी ही पड़े तो यह ध्यान रखें कि अगर आपको खालिस मसाला और ड्रामा फिल्में ही रुचती हों तो शायद ये फिल्म आपको कम पसंद आए।
विक्की कौशल ने दर्शकों को बांधे रखा
पूरी फिल्म में ऐसा लगता है कि अकेले विक्की कौशल ने अपने कंधे पर दर्शकों को बांधे रखने की जिम्मेदारी संभाली हुई है। उनके अलावा बाकी स्टारकास्ट पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। विक्की कौशल के अलावा फिल्म में सान्या मल्होत्रा (सैम बहादुर की पत्नी का रोल), फातिमा सना शेख (इंदिरा गांधी), नीरज काबी (पंडित नेहरू) और मोहम्मद जीशान अय्यूब (याह्या खान) जैसे सितारे भी हैं। पंडित नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और यहां तक कि इंदिरा गांधी का जो कद राजनीति की दुनिया में रहा है, वह फिल्म में तो नहीं दिखा है और न ही कहीं तेवर देखने को मिले हैं।
विक्की कौशल ने ढक दीं सारी खामियां
फिल्म में युद्ध के दृश्यों को भी बहुत बारीकी से नहीं दिखाया गया है। फिल्म के एक दृश्य में सैनिकों का जोश बढ़ाने के लिए सैम मानेकशॉ उनके पास चूड़ियों के साथ संदेश भिजवाते हैं कि ‘बंदूक नहीं उठा सकते तो चूड़ियां पहन लें’। ये संदेश सुनकर सेना का जोश बढ़ जाता है। सैम मानकेशॉ ने वास्तव में ये बात कही या नहीं, इस बहस से अलग…फिल्म में यह दृश्य शायद नहीं दिखाया जाना चाहिए था। इसी तरह के और भी कई बिंदु हैं। हालांकि, मेघना गुलजार के निर्देशन की कुछ कमियों को विक्की कौशल अपने अभिनय से ढंकने में बहुत कामयाब हुए हैं। उन्होंने शुरू से आखिर तक फिल्म को मजबूती से थामे रखा है। बिल्कुल वैसे, ही जैसे सैम बहादुर ने देश की सुरक्षा को।