जब बाबर काबुल में था, तो कहा जाता है कि राणा सांगा का उससे यह समझौता हुआ कि वह इब्राहीम लोधी पर आगरा की ओर से और बाबर उत्तर की ओर से आक्रमण करे. जब आक्रमणकारी ने दिल्ली और आगरा को अधिकृत कर लिया, तब बाबर ने राणा पर अविश्वास का आरोप लगाया. उधर सांगा ने बाबर पर आरोप लगाया कि उसने कालपी, धौलपुर और बयाना पर अधिकार कर लिया जबकि समझौते की शर्तोँ के अनुसार ये स्थान सांगा को ही मिलने चाहिए थे. सांगा ने सभी राजपूत राजाओं को बाबर के विरुद्ध इकठ्ठा कर लिया और सन 1528 में खानवा के मैदान में बाबर और सांगा के बीच युद्ध हुआ. उस समय मेवात के राजा हसन खान मेवाती थे. हसन खान मेवाती की वीरता सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध थी. बाबर ने राजा हसन खान मेवाती को पत्र लिखा और उस पत्र में लिखा “बाबर भी कलमा-गो है और हसन खान मेवाती भी कलमा-गो है, इस प्रकार एक कलमा-गो दूसरे कलमा-गो का भाई है इसलिए राजा हसन खान मेवाती को चाहिए की बाबर का साथ दे.”
राजा हसन खान मेवाती ने बाबर को खत लिखा और उस खत में लिखा “बेशक़ हसन खान मेवाती कलमा-गो है और बाबर भी कलमा-गो है, मग़र मेरे लिए मेरा मुल्क(भारत) पहले है और यही मेरा ईमान है इसलिए हसन खान मेवाती राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर के विरुद्ध युद्ध करेगा”. सन 1528 में राजा हसन खान मेवाती 12000हज़ार मेव घोड़ सवारों के साथ खानवा की मैदान में राणा सांगा के साथ लड़ते-लड़ते शहीद हो गये. मुल्क़ का नाम लेकर भारतवर्ष में शहीद होने वाले वह पहले व्यक्ति थे.
आज इतिहास की पन्नों में राजा हसन खान मेवाती को भुला दिया गया हुआ है. यदि ज्यादा विस्तृत रूप से पढ़ना चाहते है तो मेवात के ऊपर प्रसिद्ध लेखिका शैल मायाराम और इंजीनियर सिद्दीक़ मेव द्वारा लिखी पुस्तकों को अवश्य पढ़िये
स आभार- the history buff