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मजदूरों के लिए न्याय पाना हो गया है दुर्लभ

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,मुनेश त्यागी

हो गई है पीर परबत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है यह सूरत बदलनी चाहिए।

 आज हमारे देश के अधिकांश वादकारी अन्याय की आंधी की गिरफ्त में हैं। उन्हें चाह कर भी समय से सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है। आज हमारे देश में लगभग 10 करोड़ से ज्यादा मुकदमें दीवानी, सिविल, रेवेन्यू, श्रम न्यायालय, टैक्सेशन, कंज्यूमर फोरम में लंबित हैं। जहां बहुत सारे वादकारियों को 15-15, 20-20 साल से ज्यादा समय से न्याय नहीं मिल रहा है और वे बहुत ही बेसब्री से न्याय का इंतजार कर रहे हैं।

      यही हाल उत्तर प्रदेश के श्रम न्यायालयों का है। पूरा प्रदेश अन्याय की आंधी और तूफान की मार झेल रहा है। पूरे प्रदेश में 40% उच्च न्यायालय और 30% निकली अदालतों में जजों के पद पिछले कई कई वर्षों से खाली पड़े हुए हैं, पर्याप्त संख्या में स्टैनों नहीं हैं ,पेशकार और बाबू नहीं हैं, मुकदमों की भरमार के कारण, अधिकांश अदालतें छोटी पड़ गई हैं। ऐसी परिस्थितियों में सस्ता और सुलभ न्याय पाना एक दूर की कौड़ी बन गई है।

       इससे भी बुरे हालात उत्तर प्रदेश के श्रम न्यायालयों, इंडस्ट्रियल ट्रिब्युनल्स और श्रम कार्यालय के हैं। यहां पर तो हालात और भी ज्यादा बदतर हो गए हैं। यहां के अधिकांश न्यायालयों में पिछले कई सालों से जज ही नहीं हैं। न्यायालयों में स्टेनों और पेशकार नहीं हैं, पर्याप्त संख्या में दूसरा स्टाफ नहीं है। कई कई न्यायालय में तो स्टेनो के न होने के कारण पिछले 5-6 सालों से कोई जजमेंट या अवार्ड पास ही नहीं हुआ है। यहां के कई जज चाहकर भी जनता को सस्ता और सुलभ न्याय प्रदान नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनके पास जजमेंट लिखने के लिए स्टेनो नहीं हैं।

      मुकदमे के जल्दी निपटारे के लिए एक-एक दिन में 60-60 मुकदमें नियत किया जा रहे हैं, जिस कारण पर्याप्त समय न मिलने के कारण समुचित सुनवाई से वंचित होना पड़ रहा है। अधिकांश श्रम न्यायालयों और ट्रिब्यूनलों में श्रम कानूनों के जानकार जजों की नियुक्ति न होने के कारण, वादकारियों को समुचित न्याय नहीं मिल पा रहा है जिस कारण खासतौर से मजदूरों को भयंकर अन्याय का शिकार होना पड़ रहा है।

      यही हालात सहायक श्रमायुक्त कार्यालयों में है जहां पर पीठासीन अधिकारियों की कमी के कारण पी डब्ल्यू ए,  पीजीए और एमडब्ल्यूए और सीपी के मुकदमों में समय से करवाई और सुनवाई न होने के कारण सस्ते एवं सुलभ न्याय मिलने में आवश्यक देरी हो रही है और कानून के शासन का जैसे खुल्लम-खुल्ला मजाक ही उड़ाया जा रहा है।

      उपरोक्त विषय में इन अदालतों में जजों, स्टैनो, पेशकार और सहायक कर्मचारियों की समय से नियुक्ति के लिए आंदोलन चल रहा है, न्यायालयों में कार्य काम बंद किया हुआ है। इस बारे में सरकार को सैकड़ों से ज्यादा प्रत्यावेदन और तमाम तरह की दुसरी चिट्ठियां लिखी जा चुकी हैं, मगर उत्तर प्रदेश की सरकार की कान पर जूं तक नहीं रैंग रही है। उसने इस बारे में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की है। जैसे सस्ता और सुलभ न्याय उसके एजेंडे में ही नहीं है जिस कारण अधिकांश मजदूर और वादकारी सस्ते और सुलभ न्याय को तरस गए हैं।

      सरकार बस एक नाटक कर रही है कि वह कानून के शासन का दम भर रही है, न्याय देने का नाटक कर रही है, मगर हकीकत में वह मजदूरों और वादकारियों के साथ सबसे ज्यादा धोखा कर रही है क्योंकि जब तक मुकदमों के अनुपात में जज नहीं होंगे, स्टेनों और पेशकार नहीं होंगे, तब तक समय से कोई फैसला नहीं हो सकता है और सरकार इन नियुक्तियों को लेकर कतई भी गंभीर नहीं है और वह मजदूरों के साथ खुल्लम-खुल्ला अन्याय करने पर उतर आई है।

     भारत का संविधान जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने की बात करता है, सामाजिक न्याय देने की बात करता है, मगर उत्तर प्रदेश की सरकार कानून के जरूरी प्रावधानों को ताक पर रखकर, इस बारे में कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। जजों को नियुक्त नहीं कर रही है, पेशकारों और स्टेनो को नियुक्त नहीं कर रही है और वह सिर्फ दिखाने के लिए न्याय का डंका पीट रही है जो संविधान के साथ और वादकारियों जनता के साथ सबसे बड़ा अन्याय और धोखा है।

     सरकार के इन कदमों के चलते वादकारी मजदूरों और दूसरे वादकारियों को समय से सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल सकता है। अब जनता के पास और इंडस्ट्रियल लॉ रिप्रेजेंटेटिव्ज के पास अपने आंदोलन को तेज गति से आगे बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है। अब मजदूर हितैषी तमाम यूनियनों की भी यह जिम्मेदारी हो गई है कि वे सरकार के इस अन्यायकारी रुख के खिलाफ एकजुट लामबंदी करें और पूरे प्रदेश में न्याय का परचम फैहरायें। इसके बिना यहां के मजदूरों को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल सकता।

    हम तो यहां पर यही कहेंगे,,,,

गंगा की कसम जमना की कसम
यह ताना बाना बदलेगा,
तू खुद तो बदल तो खुद तो बदल
बदलेगा जमाना बदलेगा।
रावी की रवानी बदलेगी
सतलुज का मुहाना बदलेगा,
गर शौक में तेरे जोश रहा
यह जुल्मी जमाना बदलेगा।

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