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चुनाव परिणामों के दिन ही क्यों जारी किये एनसीआरबी के आंकड़े  

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नई दिल्ली। गृह मंत्रालय ने 5 राज्यों के चुनाव परिणामों के दिन एनसीआरबी के आंकड़े चुपके से जारी कर दिए। इसके पीछे की वजह को समझना कोई खास कठिन नहीं है। देश में अधिसंख्य आबादी की तकलीफें इतनी बढ़ चुकी हैं, कि अब सिर्फ सकारात्मक बातों, नारों और हेडलाइंस के लिए ही सरकार, टीवी और कई अखबारों के संपादक सलाह देते हैं।

लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट पर एक टिप्पणी द हिंदू अख़बार की वरिष्ठ पत्रकार विजेता सिंह ने की है, जो इसकी मूल वजह को उद्घाटित कर देती है। X पर लिंक साझा करते हुए वे कहती हैं, “एनसीआरबी ने रविवार को चुपके से 2022 के लिए भारत में वार्षिक अपराध रिपोर्ट एवं भारत में आकस्मिक मौतों और आत्महत्याओं की रिपोर्ट जारी कर दी, उस दिन, जिस दिन चुनाव परिणाम घोषित किए जा रहे थे। जबकि पिछले वर्ष यह रिपोर्ट अगस्त में प्रकाशित हुई थी। रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), बच्चों, साइबर अपराध एवं राज्य के खिलाफ अपराधों में 2021 की तुलना में 2022 में बढ़ोत्तरी हुई है।”

देश में अब दिहाड़ी और खेतिहर मजदूर कर रहा है सबसे अधिक आत्महत्या 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की भारत में आकस्मिक मृत्यु एवं आत्महत्या (एडीएसआई) 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2022 में कुल 1।7 लाख से अधिक आत्महत्या की घटनाएं हुईं हैं। लेकिन इसमें सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इनमें से करीब एक तिहाई मामलों में देश का सबसे गरीब तबके से आने वाले दिहाड़ी मजदूर, खेतिहर मजदूर और किसान शामिल थे। आत्महत्याओं के मामलों में आमतौर पर यही धारणा रही है कि यह एक पूंजीवादी परिघटना है, और ग्राम समाज चूंकि अभी भी एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था है इसलिए आत्महत्या के लिए अलगाव, अवसाद जैसी समस्याओं का होना आवश्यक है। लेकिन 90 के दशक के बाद से न सिर्फ शहरी अर्थव्यस्था में तेजी से पूंजी का प्रवाह बढ़ा है, बल्कि कृषि क्षेत्र में भी कैश क्रॉप और लाभकारी खेती की होड़ में हल-बैल, बीज और खाद सहित भंडारण, विपणन सहित कृषि से जुड़े सभी क्षेत्रों में बड़ी पूंजी और कर्ज पर खेती पूरे देशभर में बढ़ी है। 

आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2022 में सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र (22,746) में देखने को मिली हैं। इसके बाद तमिलनाडु (19,834), मध्य प्रदेश (15,386), कर्नाटक (13,606), केरल (10,162) और तेलंगाना में (9,980) आत्महत्याएं दर्ज की गईं हैं।

दिहाड़ी मजदूरों, खेतिहर मजदूरों और किसानों के अलावा, आत्महत्याओं के लिए जो तबका सबसे अधिक मजबूर हुआ, वह था स्वरोजगार या वेतनभोगी पेशेवर वर्ग से आने वाले लोग। एडीएसआई के डेटा से पता चला है कि 2022 में स्वरोजगार एवं वेतनभोगी वर्ग से आत्महत्या के 9.6% मामले दर्ज हुए हैं। इसके बाद बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या है, जिनके बीच में भारत में वर्ष 2022 के दौरान आत्महत्याओं का आंकड़ा 9.2% था। सबसे दुखद पहलू यह है कि वर्ष 2022 में 12,000 से भी अधिक संख्या में आत्महत्या करने वाले छात्र भी थे, जिन्हें दुनिया के सभी देशों में अपने भविष्य के रूप में देखा जाता है।

लेकिन इसके साथ ही देश में कुछ राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश ऐसे भी हैं, जहां से किसानों एवं खेतिहर मजदूरों की शून्य आत्महत्या की रिपोर्टे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा जैसे राज्य शामिल हैं, और शहरी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एवं प्रदेशों में चंडीगढ़, दिल्ली, लक्षद्वीप एवं पुडुचेरी शामिल हैं।

घरेलू महिलाओं के बीच सबसे अधिक आत्महत्या की दर 

एडीएसआई की रिपोर्ट में पाया गया है कि 2022 में आत्महत्या से मरने वाली लगभग 48,000 महिलाओं में से 52% से भी अधिक महिलाएं गृह-निर्माता (होम मेकर) थीं, इस प्रकार रिपोर्ट की गई कुल आत्महत्याओं में से ये संख्या करीब 14% महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसके बाद के क्रम में देखें तो छात्राओं और दिहाड़ी पर काम काम करने वाली महिलाओं की संख्या आती है। 

आत्महत्याओं के पीछे के कारणों के बारे में रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 में आत्महत्या की सबसे आम वजह “पारिवारिक समस्या” और “बीमारी” थी, जिनके चलते लगभग 50% आत्महत्याएं हुई हैं। इसके बाद “नशीली दवाओं के दुरुपयोग”, “शराब की लत”, “विवाह संबंधी कलह” इत्यादि का स्थान रहा था। हालांकि, “विवाह संबंधी कलह” के अंतर्गत अधिकांश आत्महत्या का शिकार होने वाली महिलाएं थीं-उसमें भी विशेष रूप से “दहेज” से जुड़े मुद्दों के कारण ये आत्महत्यायें देखने को मिली हैं।

अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ अपराध एवं अत्याचार के मामलों में मध्य प्रदेश सबसे आगे  

एनसीआरबी के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित तेलंगाना में अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ 2022 में पिछले वर्ष की तुलना में अपराधों और अत्याचारों में तेज वृद्धि हुई है। संख्या के लिहाज से अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचारों के मामले में यूपी 15,368 मामलों के साथ पहले स्थान है, लेकिन राज्य में अनुसूचित वर्ग की संख्या भी उसी अनुपात में 4.14 करोड़ होने के कारण इसे मध्यप्रदेश की तुलना में कम कहा जा सकता है। मध्य प्रदेश में अनुसूचित वर्ग की आबादी करीब 1.13 करोड़ है, लेकिन उनके खिलाफ अपराध के मामले वर्ष 2022 में 7,733 दर्ज किये गये हैं, जो यूपी की आबादी के लिहाज से से दोगुनी संख्या है। 

इस मामले में बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल सबसे बेहतर है। यहाँ पर अनुसूचित जाति के करीब 2.15 करोड़ की आबादी पर अपराध संख्या 104 दर्ज की गई है, जबकि उत्तराखंड जैसे बेहद कम आबादी वाले राज्य तक में अनुसूचित वर्ग के खिलाफ अपराधों की संख्या 114 दर्ज की गई है, जबकि राज्य में अनुसचित वर्ग की संख्या 18.9 लाख ही है। एससी/एसटी वर्ग के खिलाफ अपराध एवं अत्याचार के मामलों में भारत के हिंदी प्रदेश अव्वल हैं, जिनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार के साथ-साथ ओडिशा और पंजाब जैसे राज्य भी हैं।  

यूएपीए के तहत दर्ज मामलों में 25% की तेजी 

भारत में अपराध रिपोर्ट का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2022 में राज्य के खिलाफ अपराध जैसे मामलों में भारी उछाल दर्ज हुआ है। इसके तहत गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज मामलों में लगभग 25% तक की वृद्धि देखने को मिली है। हालांकि, वहीं दूसरी तरफ भारतीय दंड संहिता के तहत राजद्रोह की धारा के तहत मामलों में भारी गिरावट है। यहां पर बता दें कि मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी सुनवाई में राजद्रोह के मामलों पर स्थगन का आदेश जारी किया था, संभवतः इसी के मद्देनजर राज्य द्वारा 2022 में इस धारा का इस्तेमाल स्थगित कर दिया गया। 

साइबर अपराध के मामलों में 100% इजाफा, सरकारी मशीनरी फेल 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में देश की राजधानी दिल्ली में साइबर अपराध के मामले लगभग दोगुने हो गए हैं। इस बारे में पुलिस का आकंलन है कि धोखाधड़ी में लिप्त अपराधियों के द्वारा पीड़ितों के व्यक्तिगत डेटा तक अपनी पहुंच बनाने के लिए नए-नए तरीकों में हाल में आई वृद्धि इसके लिए जिम्मेदार है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का इस बारे में कहना था कि हाल के वर्षों में आम लोगों द्वारा वित्तीय लेनदेन करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का जिस अनुपात में उपयोग बढ़ा है, उसी अनुपात में साइबर अपराधों के मामलों में भी तेजी से वृद्धि देखने को मिली है। एनसीआरबी द्वारा रविवार को जारी ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में राष्ट्रीय राजधानी में साइबर अपराध के 685 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2021 में साइबर अपराध के कुल 345 और 2020 में 166 घटनाएं दर्ज हुई थी। इन मामलों में वित्तीय धोखाधड़ी के साथ-साथ महिलाओं और बच्चों के खिलाफ एक्सप्लिसिट यौन अपराध सामग्री एवं डीपफेक सामग्री की घटनाएं देखने को मिली हैं। कुल 128 महिलाएं ऐसे मामलों में पीड़ित पाई गई हैं, जो देश के कुल 19 मेट्रोपोलिटन सिटीज में से सबसे अधिक थीं। इतना ही नहीं, इसके अलावा पीड़ितों में 121 नाबालिग लड़कियां भी शामिल हैं

द हिंदू अखबार से अपनी बातचीत में पुलिस उपायुक्त (साइबर सेल आई।एफ।एस।ओ) हेमंत तिवारी ने बताया,“सभी सरकारी योजनाओं में लाभार्थियों के डेटा के डिजिटलीकरण का काम किया जा रहा है, और ऑनलाइन लेनदेन पर लगातार बढ़ती निर्भरता के चलते अपराधों की प्रवृति में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। आज के दिन बड़े पैमाने पर झपटमारी और पॉकेटमारी के बजाय अपराधियों ने (वेबसाइट) लिंक शेयरिंग और ओटीपी धोखाधड़ी के माध्यम से लोगों को अपना शिकार बनाना तेजी से शुरू कर दिया है।”

बुजुर्गों को निशाना बनाना सबसे आसान 

इन जालसाजों के द्वारा बुजुर्ग लोगों को तेजी से अपना निशाना बनाया जा रहा है। इसका कारण यह है कि कई वरिष्ठ नागरिक यूपीआई से संबंधित सुविधाओं के इस्तेमाल को लेकर जागरूक नहीं हैं, और इसके कारण वे आसानी से ऑनलाइन धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं। इस बारे में एक अन्य पुलिस अधिकारी का कहना था कि हमारी ओर से वरिष्ठ नागरिकों से नियमित मुलाकात करने और उन्हें भुगतान एप्लिकेशन के उपयोग में वे क्या करें और क्या न करें, के बारे में बताने के लिए पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। 

इन आर्थिक अपराधियों के द्वारा नए-नए तरीकों को अपनाकर बड़ी संख्या में लोगों के साथ ठगी की घटनाएं बढ़ रही हैं। पिछले कुछ महीनों से दिल्ली-एनसीआर में बिजली का बिल भरने को लेकर लोगों के मोबाइल फोन पर संदेश आने की शिकायत आ रही है। मैसेज में लिखा होता है कि उपभोक्ता के द्वारा पिछला बकाया जमा नहीं किया गया है, और तत्काल दिए गये नंबर पर संपर्क कर बकाया जमा नहीं किया गया तो आज रात बिजली विभाग द्वारा घर की बिजली का कनेक्शन काट दिया जायेगा। आम इंसान घबरा के झट से दिए गए नंबरों पर कॉल करता है, और उससे व्यक्तिगत विवरण देने का निर्देश दिया जाता है।  

पुलिस अधिकारी के द्वारा पिछले दिसंबर का ऐसा ही किस्सा साझा किया गया, जिसमें एक 65 वर्षीय व्यक्ति ने खुद को बिजली विभाग का अधिकारी बताने वाले धोखेबाज के हाथों अपनी सारी जमा पूंजी गंवा दी थी। उस व्यक्ति को संदेश भेजकर दावा किया गया कि उसके घर में बिजली की आपूर्ति बंद कर दी जाएगी और कार्रवाई से बचने के लिए उसे एक फर्जी आवेदन पर अपना व्यक्तिगत विवरण जमा करने के लिए कहा गया।

यही नहीं, डीपफेक वीडियो और तस्वीरों से संबंधित अपराध के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। पुलिस अधिकारी का इस बारे में कहना था कि ऐसे मामलों में फेसबुक और एक्स (पूर्व में ट्विटर) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ समन्वय की जरूरत है। चूँकि इन सोशल मीडिया साइट्स को क़ानूनी नोटिस जारी करने के लिए गृह मंत्रालय के जरिये जाने की बाध्यता है, जिसके चलते अक्सर देरी होती है।

नकली नोट आज भी सरकार के लिए बड़ी समस्या 

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा है कि वर्ष 2022 के दौरान सरकारी अधिकारियों ने 342 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के नकली भारतीय नोट जब्त किए, जिनमें से 244 करोड़ रुपये मूल्य के नोट 2,000 रुपये की शक्ल में जाली नोट थे, जबकि बाकी नोट 500 रुपये के जब्त किये गये हैं। 

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