चण्डीगढ़ । विगत बुधवार को चण्डीगढ़ में आत्मानुशासन ग्रन्थ पर आचार्य सुबलसागर कृत आत्मप्रबोधिनी टीका ग्रन्थ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई। यह संगोष्ठी यहाँ चल रहे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के ज्ञानकल्याणक के दिन सम्पन्न हुई। इसमें यह संगोष्ठी डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ के निदेशन व संयोजन में सम्पन्न हुई। इसमें क्रमशः प्रोफेसर धर्मचन्द्र जैन-कुरुक्षेत्र ने ‘‘आत्मप्रबोधिनी टीका में वर्णित सम्यक्त्व और उसके भेद-प्रभेद’’ विषय पर अपने आलेख का वाचन किया। प्रोफेसर टीकमचन्द्र जैन- दिल्ली ने- ‘‘आत्मप्रबोधिनी टीका के संदर्भ में धर्म और धर्माचरण का फल’’ विषय पर शोध आलेख का वाचन किया। प्रोफेसर सनतकुमार जैन- जयपुर के शोध आलेख का विषय था- ‘‘आत्मप्रबोधिनी टीका के आलोक में साधु-मुनि का स्वरूप।’’ डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’- इन्दौर ने ‘‘आचार्य श्री सुबलसागर जी और उनकी आत्मप्रबोधिनी टीका’’ विषय पर शोधात्मक आलेख प्रस्तुत किया और प्रतिष्ठाचार्य पण्डित नेमिचन्द्र ‘विद्यार्थी’-दिल्ली ने विषय- ‘‘आत्मप्रबोधिनी टीका के संदर्भ में धर्म और धर्माचरण का फल’’ विषय पर अपने शोध आलेख का वाचन किया।
संगोष्ठी का प्रारंभ पं. नेमिचन्द्र ‘विद्यार्थी’ के मंगलाचरण से हुआ। चित्र अनावरण व दीप-प्रज्ज्वलन सभी विद्वानों के साथ-साथ जैन सोसाइटी के अध्यक्ष नवरत्न जैन-चण्डीगढ़ व पदाधिकारी और पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समिति के संयोजक धर्म बहादुर जैन-चण्डीगढ़ व पदाधिकारियों ने किया। आगत विद्वानों का सम्मान समिति के पदाधिकारियों ने किया, धन्यवाद ज्ञापन सन्त कुमार जैन-चण्डीगढ़ ने किया।
लगाये गये समवसरण-उपदेश सभा से ही आचार्य श्री सुबलसागर मुनिराज ने अपनी देशना-उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा तीर्थंकर को केवलज्ञान अर्थात् पूर्ण ज्ञान होने पर ही वे उपदेश देते हैं, उसके पहले वे उपदेश नहीं देते। हमें हमेशा ज्ञानार्जन करते रहना चाहिए। इस समय कोई पूर्ण ज्ञानी नहीं है, न आज के मानव में इतना सामर्थ्य है। संघस्थ ब्रह्मचारिणी गुंजा दीदी ने सभा को संबोधित किया, और अंत में सभी को साधुवाद दिया।
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’,