मंजरी चतुर्वेदी
इन दिनों क्षेत्रीय दलों में विस्तार की इच्छा बलवती होती देखी जा सकती है। अब जैसे एआईएमआईएम है। पार्टी हैदराबाद में पैदा हुई, वहां से मुंबई पहुंची और फिर उसके बाद बिहार, गुजरात होते हुए वेस्ट बंगाल तक जा पहुंची है। तमिलनाडु और यूपी उसके अगले पड़ाव हैं। ऐसे ही आम आदमी पार्टी है। इस पार्टी ने भी पिछले चुनावों में दिल्ली से बाहर पंजाब और गोवा में पांव जमाने की कोशिश की थी। हालांकि उसे वह कामयाबी नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी, लेकिन गुजरात के हालिया निकाय चुनाव में मिली सफलता के बाद यूपी और उत्तराखंड जीतने के उसके इरादे को मजबूती मिल गई है। आरजेडी भी बिहार के बाहर बंगाल में कुछ सीटों पर अपनी किस्मत आजमाना चाहती है। बंगाल और असम तो ऐसे राज्य हैं, जहां चुनाव से ठीक पहले नई पार्टियों ने जन्म लिया है।
दरअसल क्षेत्रीय दलों का यह जो उभार है, उसके पीछे देश में कांग्रेस के लगातार कमजोर होते आधार की भूमिका मानी जा रही है। क्षेत्रीय दलों को लगने लगा है कि बीजेपी के मुकाबले राज्यों में कांग्रेस की लगातार हार का मतलब है कि उन राज्यों में स्थानीय मतदाता उसे विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि वोटर्स को विकल्प नहीं चाहिए। उन्हें बेहतर विकल्प की तलाश है। कांग्रेस की तुलना में गुजरात के निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी यही स्थापित करने में लगी है कि गुजरात में अब वह विकल्प बन गई है। यूपी में भी एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वह कांग्रेस के परंपरागत अपर कास्ट शहरी वोटर्स को टारगेट कर रही है। थोड़ा ही सही, लेकिन यूपी में एक ऐसा वोट बैंक है, जो बीजेपी को भी पसंद नहीं करता, लेकिन एसपी-बीएसपी को भी पसंद नहीं करता। वह खराब से खराब स्थिति में कांग्रेस के साथ खड़ा रहा है। एआईएमआईएम भी कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाना चाहती है।
एमपी, राजस्थान में बीएसपी
मध्य प्रदेश और राजस्थान ऐसे दो राज्य माने जाते हैं, जहां कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ मुख्य मुकाबले में होती है। लेकिन इन दोनों राज्यों में बीएसपी भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आई है। दोनों राज्यों में बीएसपी का सीमित ही सही, लेकिन एक वोट बैंक है। पार्टी जिस एक खास वोट बैंक के लिए जानी जाती है, उसकी तादाद भी इन दोनों राज्यों में है। बीएसपी इन दोनों राज्यों के लिए एक खास रणनीति तय करके आगे बढ़ रही है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व में जिस तरह से सिर फुटव्वल की स्थिति है, उसमें अगले चुनाव में उसके मुख्य मुकाबले में बने रहने की संभावना बहुत कम है और उसकी जगह को हासिल किया जा सकता है। बीएसपी जानती है कि ऐसा कर पाने के लिए सिर्फ मायावती का नाम काफी नहीं होगा। इसके लिए उसे प्रभावशाली स्थानीय चेहरों की जरूरत होगी। इसके लिए पार्टी की नजर कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर है।
बीएसपी के एक बड़े नेता ने अनौपचारिक बातचीत में बताया भी कि कांग्रेस और बीजेपी, दोनों में इस वक्त बहुत कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। बीजेपी में भी कई ऐसे प्रभावशाली नेता हैं, जिन्हें लगता है कि राज्य में पार्टी के अंदर हाल-फिलहाल में जो समीकरण बने हैं, उसमें उनके आगे बढ़ने की संभावना खत्म हो गई है, उन्हें किनारे लगा दिया गया है। अभी वे खामोश हैं लेकिन चुनाव आते-आते स्थितियों में बदलाव होगा। पार्टी उनका साथ लेकर राज्य में खुद को विकल्प के रूप में पेश करेगी। बीएसपी फिलहाल ग्राउंड लेवल पर दीर्घकालीन रणनीति पर काम करती दिख रही है। उसने अपने काडरबेस वोटर के बीच अपनी सक्रियता बढ़ाई है। साथ ही इन दोनों राज्यों में नए जाति समूहों के बीच भी काम शुरू किया है।
अपने-अपने दांव
एनसीपी को भले ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला हो, लेकिन मूल रूप से उसकी ताकत महाराष्ट्र तक ही सीमित है। अब यह पार्टी भी हिंदी पट्टी में अपने विस्तार का इरादा रखती है। पार्टी अपने लिए ‘अच्छे दिन’ की उम्मीद इसलिए भी देख रही है कि नरेंद्र मोदी के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प देने के लिए विपक्ष अब शरद पवार को आगे बढ़ाने पर गंभीरता के साथ विचार कर रहा है। पार्टी नेतृत्व को लगता है कि यही सही मौका होगा, जब महाराष्ट्र से बाहर अन्य राज्यों में भी हाथ आजमाया जा सकता है। अपने पक्ष में वह एक बात यह भी देखती है कि शरद पवार की एक राष्ट्रीय पहचान पहले से ही है। वे उन वोटर्स की पसंद बन सकते हैं जो राज्यों में कांग्रेस को सिर्फ इस वजह से वोट करते आए हैं कि वह एक राष्ट्रीय पार्टी है। समाजवादी पार्टी एक बार फिर से महाराष्ट्र में अपनी पूरी ताकत के साथ ‘एंट्री’ करने वाली है। वैसे तो पार्टी विधानसभा चुनाव में मुंबई में अपने प्रत्याशी उतारती रही है, एक वक्त वह मुंबई में सशक्त पार्टी बनकर उभरी भी थी, लेकिन बाद के दिनों में अपना वह प्रभाव कायम नहीं रख पाई और उसके मुस्लिम वोट बैंक पर ओवैसी ने कब्जा कर लिया। महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के नेता प्रस्तावित निकाय चुनाव के लिए पूरी ताकत के साथ तैयारी में जुटे हैं। उन्हें लगता है कि यूपी और बिहार के लोगों का कांग्रेस से लगातार जो मोहभंग हो रहा है, उसका असर महाराष्ट्र तक जरूर पहुंचेगा, और वहां के रहने वाले लोग अपने ‘मूल राज्य’ की पार्टी के साथ जाना ज्यादा पसंद करेंगे।