मध्यप्रदेश के नीमच और मंदसौर जिले अफीम की खेती के लिये जाने जाते हैं और यही से होती अफीम की तस्करी। जो किसान अफीम की वैध रूप से खेती करते हैं और कुछ ऐसे तस्कर भी हैं जो अफीम की तस्करी करके अफीम का काला कारोबार करते हैं। किसान और तस्करी दोनों ही अपने इस व्यवसाय में राजस्थान के भादसौड़ा गांव में स्थित श्रीसांवरिया सेठ मंदिर के भगवान को अपना बिजनेस पार्टनर मानते हैं। मध्यप्रदेश के मंदसौर और नीमच जिले जो कि राजस्थान से लगे हुए हैं और इन्ही जिलों के पास में राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ से लगभग 28-30 किलोमीटर की दूरी पर भादसौड़ा गांव है और इसी गांव में श्रीसांवरिया सेठ मंदिर है। श्रीसांवरिया सेठ का मंदिर चित्तौडग़ढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग 40 किलमीटर दूर स्थित है। अफीम की खेती करने वाले किसान और अफीम की तस्करी करने वाले तस्कर दोनों ही सांवरिया सेठ मंदिर के भगवान को अपने बिजनेस पार्टनर मानकर उन्हें काला सोना यानि की अफीम भी चढ़ाते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसी काले सोने के चढ़ावे के कारण इस मंदिर हर माह लगभग 9-10 करोड़ रुपए दान के रूप में प्राप्त होते हैं।
कई तरह की मान्यता है यहां
इस क्षेत्र में ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीसांवरिया सेठ का संबंध मीरा बाई से हैं और सांवलिया सेठ ही गिरधर गोपाल हैं जिनका पूजा अर्चना मीराबाई करती थीं। यह किवदंती भी इस क्षेत्र में प्रचलित है कि दयाराम नाम के एक संत जिनकी एक संतों की टोली थी जिनके साथ मीरा बाई भी भम्रण में रहती थी और सांवलिय सेठ भगवान की मूर्ति हमेशा उनके पास रहती थीं। यह भी मान्यता यहां प्रचलित है कि इस क्षेत्र में जो भी व्यक्ति अपने व्यापार में सांवलिया सेठ को अपना बिजनेस पार्टनर बनाकर जो दान-पुण्य करते हैं तो भगवान सांवलिया सेठ उनके सारे काम सिद्ध तो करते ही हैं साथ उन्हें व्यवसाय में अच्छी सफलता और लाभ भी होता है। दान चढ़ावे के रूप में चाहे अफीम हो या कोई अन्य सामग्री सभी अपनी सामग्री दानपत्र में चढ़ाते हैं। और हर महीने यह दानपेटी अमावस्या के एक दिन पहले खोली जाती है और इसमें से निकलने वाले सामग्र्री के साथ रुपये पैसों की तीन से चार दिन चलती रहती है। उक्त जानकारी देते हुये मंदिर का प्रशासनिक व्यवस्था देखने वाले नंदराम टेलर ने बताया कि राजस्थान सकार की और अधिकृत अधिकारी इन सब सामग्र्री और रुपये पैसों का हिसाब रखते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सांवलिया सेठ मंदिर में अनेकों एनआरआई भक्तों को भी आना जाना लगता है। यह एनआरआई विदेशों से कमाये गये पैसों का एक हिस्सा सांवलिया सेठ को चढ़ाते हैं। इस बात का खुलासा इस बात से भी होता है कि दानपेटी में से डालर, पाउंड, दिनार, रियाल जैसी अनेक देशों की मुद्रा निकलती हैं। देश के अनेक हिस्सों से लोग सांवलिया सेठ के दर्शनों के लिये यहां आते हैं।