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उत्तर से लेकर दक्षिण तक ब्राह्मणवाद पर हुआ तीखा प्रहार

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सुशील मानव

अगर कोई मुझसे यह पूछे कि साल 2023 को राजनीतिक तौर पर आप किस तरह याद रखना चाहेंगे तो मैं उससे कहूंगा कि इस साल को मैं बहुजन राजनेताओं के बौद्धिक विमर्श के तौर पर याद रखना चाहूंगा। इस साल जहां जातिगत जनगणना का मुद्दा देश की केंद्रीय राजनीति का मुद्दा बना, वहीं दूसरी ओर अनेक दलित-बहुजन नेताओं ने ब्राह्मणवाद के बरअक्श गैर-ब्राह्मणवाद को पूरे साल राजनीतिक पटल पर चर्चा का केंद्र बनाए रखा। 

बात जातिगत जनगणना की जाय तो मुकम्मल तौर पर जाति आधारित सर्वेक्षण कराने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना। नीतीश सरकार ने गांधी जयंती के दिन 2 अक्टूबर, 2023 को अपनी बिहार की जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट-2022 ज़ारी किया। इसके बाद 7 नवंबर, 2023 को बिहार सरकार ने आर्थिक और शैक्षणिक डेटा सहित जाति सर्वेक्षण का अंतिम सेट ज़ारी किया। इस रिपोर्ट से पता चला कि 13.07 करोड़ की आबादी वाले बिहार राज्य में ओबीसी और ईबीसी (36.01) मिलाकर बिहार की कुल आबादी का 63 प्रतिशत हैं। जबकि 190 जातियां ऐसी हैं जिनकी जनसंख्या 1 प्रतिशत से भी कम है। 

यूं तो बिहार जातिवार सर्वेक्षण का मामला इस साल लगातार सुर्खियों में बना रहा। इसकी अधिसूचना 6 जून, 2022 को जारी करते हुए जातिवार सर्वे कराने की जिम्मेदारी सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को सौंपा गया था। विभाग ने 7 जनवरी, 2023 से राज्य में जातिवार जनगणना प्रक्रिया की शुरुआत की। इसके बाद बिहार में जातिवार सर्वे को क़ानूनी चुनौती देते हुए इस पर रोक लगाने के लिए 8 जनहित याचिकाएं दाखिल की गईं। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 4 मई, 2023 को पटना हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में जाति सर्वेक्षण पर रोक लगा दी। हालांकि न्यायालय में बिहार सरकार ने प्रतिवाद किया कि एक केंद्रीय क़ानून ‘सांख्यिकी संग्रह अधिनियम 2008’ राज्य सरकार को जाति सहित सभी तरह की जनगणना और सर्वेक्षण कराने का अधिकार देता है। इसके बाद 1 अगस्त, 2023 को पटना हाईकोर्ट ने जाति सर्वेक्षण को वैध और क़ानूनी करार देते हुए सभी 8 याचिकाओं को खारिज़ कर दिया। 

बाएं से उदयनिधि स्टालिन, चंद्रशेखर, स्वामी प्रसाद मौर्य, प्रियंक खरगे

कांग्रेस ने पांच राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलांगाना, मिजोरम के विधानसभा चुनाव में जातीय जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाया। 

रामचरित मानस का मुद्दा पूरे साल छाया रहा

रामचरित मानस को लेकर बिहार सरकार में शिक्षामंत्री चंद्रशेखर यादव के बयान से उत्तर भारत में वर्णवाद पर जबर्दस्त राजनीतिक बहस चली। जनवरी, 2023 में नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि– “मनुस्मृति में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके के ख़िलाफ़ गालियां दी गई हैं। रामचरितमानस के उत्तरकांड में लिखा है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं। यह नफ़रत को बोने वाले ग्रंथ है।” उन्होंने आगे कहा कि एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरित मानस, तीसरे युग में गोलवलकर की ‘बंच ऑफ थॉट्स’, सभी देश और समाज में नफ़रत बांटते हैं। 

इसके बाद 15 सितंबर, 2023 को हिंदी दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने रामचरित मानस की तुलना पोटेशियम साइनाइड से करते हुए कहा कि पचपन तरह का व्यंजन परोसकर उसमें पोटेशियम साइनाइड मिला दीजिए तो क्या होगा। हिंदू धर्म ग्रंथ का हाल भी ऐसा ही है।  

बिहार के शिक्षामंत्री के बयान को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने राजनीतिक विमर्श के तौर पर आगे बढ़ाते हुए कहा कि तुलसीदास के रामचरित मानस में कुछ अंश ऐसे हैं, जो अमर्यादित हैं और जिनके उपर हमें आपत्ति है। उन्होंने रामचरित मानस पर प्रतिबंध की मांग करते हुए कहा था कि रामचरित मानस शूद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहा है। इसका संज्ञान लेते हुए इसमें जो आपत्तिजनक अंश है उसे बाहर करना चाहिए या इस पूरी पुस्तक को ही प्रतिबंधित कर देना चाहिए, क्योंकि किसी भी धर्म में किसी को भी गाली देने का कोई अधिकार नहीं है। उनके 22 जनवरी को टीवी डिबेट के आधार पर उनके ख़िलाफ़ 24 जनवरी को आईपीसी की धारा 295ए, 298, 504 और 153 के तहत एफआईआर दर्ज़ करवाई गई। इतना ही नहीं, अयोध्या स्थित हनुमान मंदिर के महंत राजू दास ने सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या का सिर कलम करने पर 21 लाख रुपए का ऐलान किया। जबकि तपस्वी छावनी के परमहंस दास ने उनकी जीभ काटने पर ईनाम देने की घोषणा की। 

सार्वजनिक तौर पर सपा नेता की सुपारी देने वाले इन दो महंतों के ख़िलाफ़ सरकार और प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। राजधानी लखनऊ में एक टीवी कार्यक्रम में हिस्सा लेने के दौरान स्वामी प्रसाद मौर्य और राजू दास के समर्थकों के बीच हाथापाई भी हुई। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कमिश्नर को पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग करते हुए राजू दास पर जान से स्टालिने की नीयत से तलवार से हमला करने का आरोप लगाया। 

इसके पहले 30 जनवरी को एक न्यूज चैनल की डिबेट में सपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि 29 जनवरी को भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने उन्हें लखनऊ के डालीगंज स्थित पीतांबरा देवी मंदिर जाने से रोका। उन्होंने कहा कि पीतांबरा देवी मंदिर के संतो ने उन्हें मिलने और हवन में भाग लेने के लिए पीतांबरा देवी मंदिर में आमंत्रित किया था। लेकिन उन्हें मंदिर जाने से रोका गया और काले झंडे दिखाये गये, नारेबाजी की गई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हमें बताना चाहिए कि दलितों और पिछड़ों को शूद्र क्यों माना जाता है। 

सरकार चलाने का अनार्य संस्कृति मॉडल

डीएमके सांसद डीएनवी सेंथिल कुमार एस का 5 दिसंबर, 2023 को लोकसभा में दिया गया एक बयान पर संसद के शीतकालीन सत्र में भारी हंगामा हुआ। हालांकि 6 दिसंबर, 2023 को लोकसभा में अपने बयान के लिए माफ़ी मांग ली। गौरतलब है कि उन्होंने तीन हिंदी पट्टी के राज्यों में भाजपा की जीत पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि– “भाजपा की ताक़त मुख्य रूप से हिंदी भाषी राज्यों में है, जिसे हम ‘गोमूत्र स्टेट’ कहते हैं। भाजपा दक्षिण में नहीं जीत सकती।” गौरतलब है कि उत्तर भारत में साक्षरता दर कम और जनसंख्या दर अधिक है। सेंथिल कुमार तमिलनाडु की धर्मपुरी लोकसभा क्षेत्र से डीएमके सांसद तथा रेडियो डायग्नोसिस में एमबीबीएस, एमडी हैं। इससे पहले उन्होंने जुलाई, 2022 में सरकारी कार्यक्रम में भूमि पूजन का विरोध किया था। दरअसल तब धर्मपुरी जिले के अलापुरम झील को फिर से तैयार करने की एक परियोजना के शिलान्यास का कार्यक्रम था, जिसकी शुरुआत भूमि पूजन से की जा रही थी। 

डीएमके सांसद ने तब पीडबल्यूडी के अधिकारियों से सरकारी कार्यक्रम में धार्मिक समारोह करने के औचित्य पर फटकार लगाते हुए कहा था कि– “सरकारी कार्यों में धार्मिक समारोहों पर रोक की घोषणा के बावजूद पूजा-पाठ के लिए इंतज़ाम क्यों किए गए हैं?” उन्होंने आगे कहा था कि धार्मिक समारोह हिंदू रीति-रिवाज से किया जा रहा है, ईसाईयों, मुसलमानों और नास्तिक या ग़ैरधार्मिक लोगों को इस कार्यक्रम में क्यों नहीं बुलाया गया है। गौरतलब है कि द्रमुक पार्टी और सरकार द्रविड़ संस्कृति (गैर-ब्राह्मणवाद) के मार्ग पर चलती आ रही है। अन्नादुरई और करुणानिधि के शासनकाल में अधिकारी सरकारी दफ्तरों में धार्मिक तस्वीरें नहीं लगाते थे। 

सनातन धर्म पर टिप्पणी 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के बेटे और सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने बीते 2 सितंबर, 2023 को सनातन उन्मूलन सम्मेलन में सनातन की आलोचना करते हुए कहा था कि सनातन का सिर्फ़ विरोध नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे समाप्त ही कर देना चाहिए, क्योंकि यह सामाजिक न्याय और समानता के ख़िलाफ़ है। उन्होंने आगे कहा था कि– “सनातन धर्म लोगों को जाति-धर्म के नाम पर बांटने वाला विचार है। इसे खत्म करना ही मानवता और समानता को बढ़ावा देना है। जिस तरह हम मच्छर, डेंगू, मलेरिया और कोरोना को खत्म करते हैं उसी तरह सनातन धर्म का विरोध भर नहीं बल्कि इसे समाज से पूरी तरह ख़त्म कर देना चाहिए।”

हालांकि उदयनिधि स्टालिन ने अपने वक्तव्य में कहीं भी ‘जनसंहार’, ‘नरसंहार’ या ‘जीनोसाइड’ जैसे किसी अंग्रेजी, हिंदी या तमिल शब्द का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन भाजपा, आरएसएस और उनके आईटी सेल ने इसे ‘सनातनियों के जनसंहार’ की अपील कहकर दुष्प्रचारित किया। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी बेटे की बात का समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझ और नीयत पर सवाल खड़े किये। गौरतलब है कि मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रधानमंत्री ने उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों पर उचित जवाब देने की बात कही थी। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि प्रधानमंत्री के पास किसी भी दावे या रिपोर्ट को सत्यापित करने के लिए सभी संसाधन हैं। क्या पीएम ने उदयनिधि के बारे में फैलाए गये झूठ से अंजान होकर यह बात कही या उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया?

उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत जिंदल और करणी सेना और बिहार के मुज़फ्फ़पुर में सुधीर कुमार ओझा ने उनके खिलाफ केस दर्ज़ करवाया। दिल्ली पुलिस ने उदयनिधि के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 153ए, 295, 504 और आईटी एक्ट की धारा में केस दर्ज़ किया। अयोध्या के संत परमहंस आचार्य ने उदयनिधि स्टालिन का सिर कलम करने वाले को 10 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया। खुद उन्होंने उदयनिधि स्टालिन के पोस्टर पर तलवार चलाई। लेकिन इन लोगों के खिलाफ़ सरकार या प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

फिर 7 सितंबर को उदयनिधि स्टालिन के बयान को आगे बढ़ाते हुए डीएमके सांसद ए. राजा और तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री के. पोनमुड़ी ने भी सनातन धर्म को खत्म करने की बात कही। ए. राजा ने कहा कि सनातन की तुलना एचआईवी और कुष्ठ रोग जैसे कलंक वाली बीमारियों से की जानी चाहिए। वहीं 7 सितंबर, 2023 को ही बिहार में सत्तासीन राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद ने एक कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं को संबोधित करके कहा कि तिलक लगाकर घूमने वालों ने भारत को ग़ुलाम बनाया है। देश मंदिर बनाओ या मस्जिद तोड़ो से नहीं चलेगा। 

वहीं कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियंक खड़गे ने उदयनिधि स्टालिन के समर्थन में एशियन न्यूज् इंटरनेशनल (एएनआई) को दिए अपनी प्रतिक्रिया में कहा– “जो धर्म समानता का पोषण नहीं करता और सभी के लिए मनुष्योचित गरिमा सुनिश्चित नहीं करता, मेरे अनुसार वह धर्म ही नहीं है…जो धर्म सामान अधिकार नहीं देता और जो सभी के साथ मनुष्योचित व्यवहार नहीं करता, वह एक रोग की तरह ही है…”

बसपा ने आकाश आनंद को बनाया उत्तराधिकारी

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को बसपा का उत्तराधिकारी बनाया। 10 दिसंबर, 2023 रविवार को पार्टी के प्रदेश अधिकारियों की बैठक के बाद बसपा प्रमुख ने प्रेस कांफ्रेंस करके आकाश आनंद को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया। करीब 28 वर्षीय आकाश आनंद मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। उन्होंने ब्रिटेन से एमबीए की पढ़ाई की है। साल 2017 में सहारनपुर में एक रैली में आकाश आनंद को अपने साथ मंच पर लाकर मायावती ने उनकी राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी। 

दरअसल दलित युवकों में भीम आर्मी के युवा नेता चंद्रशेखर आज़ाद के प्रति एक आकर्षण के चलते बसपा पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव था कि वो अपने कोर वोटबैंक को सुरक्षित रखने के लिए दलित युवकों को एक युवा नेता दें। भीम आर्मी प्रमुख चंदशेखर ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर मायावती जी का पुराना वीडियो साझा किया, जिसमें वह कह रही हैं कि – “काशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को इस पार्टी की नींव रखी थी तो उन्होंने निःस्वार्थ भाव से राजनीति में कुछ करने के लिए परिवार और रिश्तेदारों को राजनीति से दूर रखने का फैसला किया था। मैं अपने परिवार को राजनीति से दूर रखूंगी।” आकाश आनंद को बसपा का उत्तराधिकारी बनाने के पहले इमरान मसूद और सांसद कुंवर दानिश अली को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग

विधानसभा चुनाव में जीत मिलने पर भाजपा ने मोहन यादव को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर यादवों को अपने पक्ष में लामबंद करने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश और बिहार में यादव जातियां निर्णायक भूमिका में हैं। मध्य प्रदेश में यादव मुख्यमंत्री का दांव चलकर भाजपा उत्तर प्रदेश और बिहार में यादवों को अपने पाले में लाने का दांव चल रही है। मोहन यादव आरएसएस के क़रीबी हैं और पिछली सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे थे। छात्र राजनीति में वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे। मोहन यादव ने शपथ लेते ही ‘हिंदुत्व’ के एजेंडे को आगे बढ़ाते नज़र आ रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही भाजपा कार्यकर्ता देवेंद्र ठाकुर पर हमले के आरोपी फारुख़ उर्फ राइन ख़ान के घर पर बुलडोजर चलवा दिया। साथ ही खुले में मांस, मछली और अंडा बेचने पर पाबंदी लगाते हुए मीट की ग़ैरक़ानूनी दुकानों पर कार्रवाई के तहत 10 दुकानों को तोड़ दिया गया है। साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर निर्धारित डेसिबल से अधिक तेज लाउडस्पीकर बजने पर कार्रवाई का आदेश दिया है।

इसी तरह भाजपा ने छत्तीसगढ़ विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाया है। विष्णुदेव साय आदिवासी समुदाय से आते हैं। वे साल 2020-22 तक प्रदेश अध्य़क्ष थे। प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल में विष्णु देव साय इस्पात मंत्री रहे थे। वहीं राजस्थान के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं। 

जल रहा है मणिपुर

एन. वीरेन सिंह की अगुवाई और सहमति से मणिपुर 3 मई से लगातार जल रहा है। राज्य पुलिस इस हद तक सांप्रदायिक रही कि कुकी और नगा जनजाति समूहों के लोग अपने क्षेत्रों में इन्हें देखकर भय से कांपने लगते हैं। मैतेई समुदाय द्वारा बड़ी संख्या में हथियारों की लूट को अंजाम दिया गया। इस हिंसा में अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हुई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 14 दिसंबर, 2023 को 64 लोगों के शव उनके परिजनों को सौंपे गए। इनमें से 60 शव कुकी समुदाय के थे। जेएनआईएमएस और रिम्स अस्पताल के मुर्दाघर में रखे हुए इन 60 शवों को मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स की कड़ी निगरानी में हवाई मार्ग से लाया गया। अभी तक 175 में से 169 शवों की पहचान हो पाई। 

पहचान किये गये 169 शवों में से 88 लाशों पर उनके परिवार ने दावा नहीं किया है। इस तरह 94 शव अभी भी मुर्दाघर में लावारिस पड़े हैं। इस हिंसा में करीब 350 चर्च नष्ट कर दिए गए। करीब पांच हजार घर जला दिए गए। जबकि 70 हजार से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित होने के विवश हुए। केंद्र की मोदी सरकार ने इस हिंसा को चुप्पा समर्थन देते हुए राज्य के मुख्यमंत्री एन. वीरेन सिंह को उनके पद पर बनाये रखा है, जबकि वहां कुकी समुदाय के खिलाफ़ जनसंहार का अभियान चलाया गया और मानवाधिकारों का घोर हनन हुआ है। 

मैतेई पुरुषों की भीड़ द्वारा कुकी समुदाय की स्त्रियों के नग्न परेड और सामूहिक यौनहिंसा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसे देखकर पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई। लोग पहली बार मणिपुर की कुकी समुदाय की स्त्रियों के साथ खड़े नज़र आए। वहीं केंद्र से लेकर तमाम सूबे के भाजपाई मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक और केंद्रीय मंत्रियों ने मणिपुर की घटना के समानांतर पश्चिम बंगाल और राजस्थान में फर्जी मामले खड़े किये। तमाम भाजपा नेताओं ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर कुकी समुदाय को, बाहरी, घुसपैठिया, आतंकी, ड्रग तस्कर, नशे के कारोबारी और कुकी स्त्रियों को सेना और पुलिस के सामने खुद से अपने कपड़े उतारने वाली और प्रॉस्टीट्यूट तक कहा। कुकी स्त्रियों को बदनाम करने के लिए कई फर्जी वीडियो भाजपा नेताओं के सोशल मीडिया एकाउंट से साझा किए गए। 

आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्ष में नजर आया सुप्रीम कोर्ट

देश के जिला अदालत से लेकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों पर सरकार का दबाव साफ़ नज़र आया। ईडबल्यूएस के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सरकार के साथ खड़ी नज़र आई। 9 मई, 2023 को पांच जजों की बेंच ने संविधान के 103वें संशोधन को सही करार देते हुए पुनर्विचार याचिका को खारिज़ कर दिया। गौर तलब है कि पिछले साल 7 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत के अपने फैसले में ईडब्लूएस आरक्षण को संवैधानिक करार दिया था। 

बता दें कि जनवरी 2019 में केंद्र सरकार ने संविधान में किए गए 103वें संशोधन के ज़रिए अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) जोड़ा था। इसके जरिए सरकार को यह अधिकार दिया गया था कि वह आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के उत्थान के लिए विशेष व्यवस्था बना सकती है। इस संशोधन के बाद सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान बनाया। इसके खिलाफ़ 30 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी थी। 

तमिलनाडु बना प्रेरक राज्य

14 सितंबर, 2023 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने मंदिरों में 3 महिला पुजारियों की नियुक्ति करते हुए कहा कि यह द्रविड़ियन मॉडल है। ऐसा करके उन्होंने ‘पेरियार के दिल का कांटा’ निकाल दिया है। गौरतलब है कि मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए बाबा साहेब ने लंबा संघर्ष किया था। लेकिन देश के कई मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश के लिए महिलाएं आज भी संघर्षरत हैं। महाराष्ट्र के शनि सिंगरापुर और केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के लिए महिलाओं को क़ानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी है। इससे पहले स्टालिन सरकार ने तमिलनाडु के मंदिरों में 200 गैर-ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति की थी। तमिलनाडु में 100 दिन का शैव-अर्चक कोर्स शुरु किया, जिसे करके कोई भी व्यक्ति पुजारी बन सकता है। नियुक्तियां तमिलनाडु हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल इंडॉमेंट डिपार्टमेंट के अधीन आने वाली 3600 मंदिरों में होती है। 

अदालतों में फंसे रहे हेमंत सोरेन

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भाजपा ने चैन की सांस नहीं लेने दिया है। साल 2023 में भी वो कभी ईडी तो कभी चुनाव अचार संहिता मामले में कोर्ट के चक्कर काटने नज़र आए। हालांकि 17 अक्टूबर को झारखंड हाईकोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ जमशेदपुर की एक अदालत में दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दिया। यह मामला 2014 में दर्ज़ किया गया था। हेमंत सोरेन ईडी द्वारा पीड़क कार्रवाई के खिलाफ़ झारखंड हाईकोर्ट पहुंचे। 

चर्चा में रहे मतुआ समुदाय और पसमांदा 

मतुआ समुदाय और पसमांदा दलित भी इस साल ख़ूब चर्चा में रहे। नये वोटबैंक के तौर पर इन समुदायों को उभारने का काम भाजपा ने किया। दरअसल 26 नवंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अजय कुमार मिश्रा टेनी ने पश्चिम बंगाल के उत्तर परगना 24 जिले के ठाकुरनगर में मतुआ समुदाय के एक कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान कहा था कि अखिल भारतीय मतुआ महासंघ की ओर से मतुआ समुदाय के सदस्यों को ज़ारी किए गए पहचान पत्र को पूरे भारत में एक आधिकारिक पहचान दस्तावेज़ के रूप में माना जाएगा, जब तक कि नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू नहीं हो जाता। वहीं 24 परगना जिले के हरिनघाटा से भाजपा विधायक असीम सरकार ने केंद्रीय मंत्री के वक्तव्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक धार्मिक निकाय की ओर से ज़ारी किए गए पहचान पत्र आधिकारिक पहचान दस्तावेज कैसे हो सकते हैं? गौरतलब है कि मतुआ बड़े दलित नामशूद्र समुदाय का हिस्सा हैं, जोकि 1947 में भारत विभाजन और 1971 में बंग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए बंग्लादेश से पलायन करके भारत आ गए थे। 

इसी तरह 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पसमांदा मुसलमानों का जिक्र करते हुए कहा कि पसमांदा मुसलमानों के साथ ऐतिहासिक अन्याय हुआ है। इसका नुकसान कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा है। जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री ने महज चुनावी हित साधने और इन्हें भाजपा के वोटबैंक के रूप में बदलने के लिए ही यह बयान दिया था। गौरतलब है कि भारत के मुस्लिम आबादी में 85 फीसदी हिस्सा पसमांदा मुस्लिमों का है, जबकि 15 फीसदी सवर्ण मुस्लिम है। पसमांदा आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हुए हैं। पसमांदा फ़ारसी का शब्द है जिसका अर्थ है– छूटे हुए या पीछे रह गये लोग। दरअसल दक्षिण एशियाई देशों में ज़्यादातर मुस्लिम धर्म बदलकर इस्लाम में आये हैं। ये जिस जाति से आये थे इस्लाम में भी उन्हें उसी जाति का माना जाता है। यानि दक्षिण एशियाई मुस्लिमों में भी जातिवाद है।  

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