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 एक बार फिर सियासत का बड़ा अखाड़ा बन गया कुश्ती संघ, निलंबन से 40 सीटों को साधने का सियासी गणित! 

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कुश्ती संघ को निलंबित करके भाजपा ने चार राज्यों की तकरीबन 40 लोकसभा सीटें साधने की कोशिश की है। इतने ही राज्यों की तकरीबन 150 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर समीकरणों को साधने की सियासी कवायद भी तेज कर दी है। सियासी जानकारों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने मामले की गंभीरता को देखकर एक साथ कई निशाने साधे हैं। इसमें जाटों का सियासी समीकरण तो शामिल है ही, साथ ही साथ इससे किसानों को साधने की कोशिश भी की गई है। हालांकि, सियासी समीकरण में भारतीय जनता पार्टी में एक ओर जहां जाट की सियासत सधी है। वहीं, अवध में क्षत्रिय छत्रपों की सियासत से भाजपा के सामने चुनौती भी आ सकती है।

देश के पहलवानों और कुश्ती संघ के बीच चल रहा द्वंद्व एक बार फिर सियासत का बड़ा अखाड़ा बन गया है। कोर्ट के आदेश के बाद कुश्ती संघ के चुनाव हुए, लेकिन कुछ विवादित फैसलों के बाद उसको भंग कर दिया गया। अखिल भारतीय कुश्ती अखाड़ा संघ से जुड़े पहलवान उमेश यादव कहते हैं कि सियासी नजरिए से अगर इसको देखा जाए तो यह निश्चित तौर पर जाटों को साधने की सियासत का एक बड़ा दांव भारतीय जनता पार्टी शासित केंद्र सरकार ने लिया है। 

उनका कहना है कि अब इससे भारतीय जनता पार्टी की सियासत कितनी सधेगी यह तो चुनाव और चुनाव के परिणाम बताएंगे, लेकिन खेल मंत्रालय के इस फैसले को सियासी नजरिए से आप दूर नहीं रख सकते। पहलवान यादव कहते हैं कि लंबे समय से विवादों के बीच में रहा कुश्ती संघ और पहलवानों की एक लॉबी इसको अपनी जीत के तौर पर देख रही है तो बृजभूषण शरण सिंह खेमे को भी को सियासी तौर पर हार का सामना होता हुआ दिख रहा है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहलवान अखाड़ा से ताल्लुक रखने वाले चौधरी देवेंद्र त्यागी कहते हैं कि जिस बात को लेकर पहलवान पहले से विरोध करते आए थे आखिरकार सरकार देर सवेर इस पर डैमेज कंट्रोल करने पर उतर आई। उनका कहना है कि इसमें केंद्र सरकार कुछ भी दलील दे लेकिन सच्चाई यही है कि जाटों की सियासत को साधते हुए ही ऐसे फैसले लिए जाने का अंदेशा हो रहा है। 

उनका तर्क है कि ऐसा करके केंद्र सरकार ने अगले साल होने वाले लोकसभा के चुनावों के साथ-साथ हरियाणा के विधानसभा चुनावों में जाटों को साधा है। वह कहते हैं कि जिस तरीके से बृजभूषण शरण सिंह के खेमे की हुई जीत के बाद पहलवानों ने एक बार फिर से अपना विरोध जाहिर करते हुए पद्मश्री जैसे पुरस्कार वापस किया। उससे निश्चित तौर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कुश्ती संघ की छवि पर नकारात्मक असर भी पड़ना शुरू हुआ। 

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आरएस तंवर कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में जाट वोट खासी अहमियत रखते हैं। इन राज्यों में करीब 130 विधानसभा सीटों और 40 लोक सभा सीटों पर जाट वोट का असर है। आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा में करीब एक चौथाई आबादी जाटों की है। वहीं राजस्थान में करीब पंद्रह फीसदी जाट आबादी है। उत्तर प्रदेश में जाटों की संख्या करीब ढाई फीसदी है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का अच्छा खासा दबदबा है। इन तीन राज्यों में बीजेपी को जाट समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। 

तंवर का कहना है कि खेल मंत्रालय में फैसला भले ही कुश्ती संघ के निलंबन का लिया हो लेकिन इसके साथ जाटों की सियासत को साधने का बड़ा दांव भी लगाया है। उनका कहना है जिस तरीके से कुश्ती संघ के हुए चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह के खेमे की जीत हुई उसके बाद लगातार पहलवानों का विरोध तेज होता गया। अब कुश्ती संघ के निलंबन के साथ सियासत को नापने की तैयारी शुरू हुई है।

वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि खेल मंत्रालय के आदेश के बाद कुश्ती संघ को निलंबित किया गया उससे जाटों के सियासी समीकरण सधते हुए दिख रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में जहां पर बृजभूषण शरण सिंह का सियासत में बड़ा कद है वहां पर क्षत्रियों की राजनीति में एक बड़ी चुनौती जैसी भी उभर रही है। 

वह कहते हैं कि बृजभूषण शरण सिंह भले ही इस पूरे मामले में बहुत बचते हुए सधी हुई टिप्पणी कर रहे हों लेकिन अंदर खाने उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में सियासत का पारा गर्म हो रहा है। बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि बृजभूषण शरण सिंह का सिर्फ अपनी लोकसभा सीट पर ही नहीं बल्कि आसपास की कई लोकसभा सीटों पर मजबूत वजूद है। यही वजह है कि वह पहले भी पहलवानों के लगातार विरोध के बाद मजबूती से न सिर्फ डटे रहे बल्कि अपनी आवाज भी रखते रहे। उनका मानना है खेल मंत्रालय के इस आदेश से अगर भारतीय जनता पार्टी के लिए जाटों की सियासत सध रही है तो उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से में बड़ी चुनौतियां भी उभर रही हैं।

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