पूनम पाण्डे
नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर में पुंछ-रजौरी के बीच में सुरनकोट के डेरा की गली इलाके में आंतकियों ने भारतीय सेना की गाड़ियों को निशाना बनाया जिसमें चार सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और तीन जख्मी हुए। ये इसी साल इस इलाके में घात लगाकर हुआ तीसरा हमला है। सेना आतंकियों की तलाश में ऑपरेशन चला रही है लेकिन इस हमले ने कई सवाल भी खड़े किए हैं। इस हमले की जिम्मेदार आतंकी संगठन PAFF ने ली है।
सवाल- 1 कौन थे हमलावर ?
सुरक्षा एजेंसी के अलग अलग लोगों से बात करने पर उन्होंने कहा कि जिस तरह से आतंकियों ने क्लीन ऑपरेशन किया है उससे साफ है कि वह नौसिखिया नहीं बल्कि पूरी तरह से ट्रेंड आतंकी थे और उन्हें कई सालों से इस तरह के ऑपरेशन करने का अनुभव है। यह सवाल भी उठ रहा है कि कहीं पाकिस्तान की आईएसआई ने एसएसजी (स्पेशल सर्विस ग्रुप) के रिटायर्ड सैनिकों का इस्तेमाल तो नहीं किया। एसएसजी पाकिस्तानी सेना की स्पेशल ऑपरेशन करने वाली टीम है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि यह कहा जा रहा है कि दो सैनिकों की बॉडी को क्षत-विक्षत किया गया था। जम्मू-कश्मीर में लंबे वक्त तक तैनात रहे एक अधिकारी के मुताबिक आतंकी फायर कर भागते हैं ना कि वहां पर रुककर इस तरह बॉडी को क्षत-विक्षत करते हैं। इस तरह का काम पाकिस्तान की बैट एक्शन टीम करती है जिसमें पाकिस्तानी सेना के साथ आतंकी होते हैं।
सवाल -2 घुसपैठ कम हुई तो कहां से आए ये ?
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक इस साल सेना ने एलओसी पार से घुसपैठ की 18 कोशिशों को नाकाम किया। साथ ही यह कहा जाता रहा है कि घुसपैठ में भारी कमी आई है। ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि अगर घुसपैठ कम हुई तो ये ट्रेंड आतंकी कैसे यहां तक पहुंच गए। क्या ये यहां स्लीपर सेल की तरह छुपे हुए थे और लंबे वक्त से हमले की योजना पर काम कर रहे थे। एक रिटायर्ड अधिकारी के मुताबिक जिस तरह से हमला किया गया उससे साफ है कि आतंकियों को इलाके की पूरी जानकारी थी और हर मूवमेंट पर वह लंबे वक्त से नजर रखे हुए थे।
सवाल 3- इंटेलिजेंस कैसे हुई फेल?
साल में तीन घात लगाकर हमले होने से यह सवाल उठ रहा है कि क्या ये इंटेलिजेंस की असफलता है। सेना में लगातार तकनीक का इस्तेमाल बढ़ा है लेकिन क्या ह्यूमन इंटेलिजेंस पर काम नहीं हो रहा है। इलाके के जानकार एक रिटायर्ड अधिकारी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से मुकाबला करने के लिए ह्यूमन इंटेलिजेंस पर हमेशा काम होता रहा है। लोगों के बीच पहचानना मुश्किल होता है कि कौन आतंकी है और कौन गांव वाला। ऐसे में गांव वाले ही हमारी आंख और कान बनते हैं और बाहर से कौन आया है और क्या संदिग्ध हरकत दिख रही है इसकी जानकारी गांव वालों से ही मिलती है। लेकिन यहां क्या ह्यूमन इंटेलिजेंस पर फोकस करना छोड़ दिया या फिर 20 साल से कुछ बड़ी घटना नहीं हुई इसलिए सक्रियता में कमी आई, यह सवाल भी उठ रहा है।
सवाल 4- अपनों को दूर करने की साजिश
ये इलाका साउथ ऑफ पीर-पंजाल का है जहां करीब 20 साल से हालात लगभग सामान्य थे। यहां के लोग मुख्य धारा के करीब रहे हैं। जब घाटी में हालात खराब थे तब भी यहां के लोग मेन स्ट्रीम के साथ रहे। यहां कई सालों से लोगों ने वे हालात नहीं देखे हैं कि सुरक्षा एजेसियों के लोग पूछताछ के लिए घर आ रहे हैं या फिर किसी को पूछताछ के लिए उठा ले जा रहे हैं। अब आतंकी इस तरह के हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे लोगों में डर का माहौल बने। घाटी में तनाव के साथ ही यहां भी लोगों में डर पैदा कर उन्हें मेन स्ट्रीम से काटने की बड़ी साजिश का ये हिस्सा हो सकता है।
लोगों को साथ लेना जरूरी
सेना की गाड़ी पर हुए हमले के बाद वहां तीन सिविलियंस की मौत की खबर आई। आरोप लगा है कि पूछताछ के दौरान इतना टॉर्चर किया कि उनकी मौत हो गई। सेना ने तुरंत इस पर जांच शुरू कर दी और इलाके के ब्रिगेडियर को वहां से हटा भी दिया है। जहां एक तरफ ह्यूमन इंटेलिजेंस की कमी महसूस हो रही है वहीं सिविलियंस के बीच डर और अविश्वास का माहौल पैदा होने से रोकने की जरूरत है। आर्मी चीफ जनरल मनोज पांडे सोमवार को जब वहां पहुंचे तो उन्होंने भी यही संदेश देने की कोशिश की।