बीते हफ्ते हुई सियासी उठापटक के बाद कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि बिहार में आने वाले समय में कुछ न कुछ बदलाव जरूर होगा। वहीं, बड़ा सवाल यह भी है कि क्या विपक्षी गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर आम सहमति बन पाएगी?बीते हफ्ते जदयू की अंदरूनी उठापटक चर्चा में रही। पार्टी के सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। वहीं, नागपुर में हुई कांग्रेस की रैली ने भी सुर्खियां बटोरीं। इसके साथ ही राहुल गांधी की एक और यात्रा की तारीख भी सामने आ गई। इन सब के बीच विपक्षी गठबंधन में तस्वीर स्थिति साफ होती नहीं दिखी। इन्हीं सब मुद्दों पर इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार राखी बख्शी, राहुल महाजन, समीर चौगांवकर, प्रेम कुमार और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
बीते हफ्ते जदयू की अंदरूनी उठापटक चर्चा में रही। पार्टी के सबसे बड़े नेता नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। वहीं, नागपुर में हुई कांग्रेस की रैली ने भी सुर्खियां बटोरीं। इसके साथ ही राहुल गांधी की एक और यात्रा की तारीख भी सामने आ गई। इन सब के बीच विपक्षी गठबंधन में तस्वीर स्थिति साफ होती नहीं दिखी। इन्हीं सब मुद्दों पर इस हफ्ते के ‘खबरों के खिलाड़ी’ में चर्चा हुई। चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार राखी बख्शी, राहुल महाजन, समीर चौगांवकर, प्रेम कुमार और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
जनता दल यूनाइटेड में हुए नेतृत्व परिवर्तन के क्या मायने हैं?
राखी बख्शी: इस बदलाव को पार्टी के तौर पर, नीतीश कुमार की महत्वकांक्षाओं के तौर पर और विपक्षी गठबंधन से जोड़कर देखना चाहिए। नीतीश कुमार की यह कोशिश अपने कद को बढ़ाने की है। हम सब इस बदलाव के पीछे की कहानी जानते हैं।
राहुल महाजन: राजनीति में जो आता है, उसका ध्येय होता है कि वह सर्वोच्च पद पर पहुंचे। नीतीश कुमार भी यह चाहते हैं तो एक राजनेता के तौर पर इसमें कुछ गलत भी नहीं है। नीतीश कुमार की पार्टी बिहार में बहुत अलग स्थिति में है। करीब 15 फीसदी वोट उनके साथ हैं। 30 फीसदी भाजपा तो 35 फीसदी राजद के साथ हैं। ऐसे में जिस तरफ यह पार्टी जाती है, उसे फायदा होता है। महाराष्ट्र में लंबे समय के बाद भाजपा शिवसेना से अलग चुनाव लड़ेगी। शिवसेना में हुई टूट के बाद उसके कई नेता भाजपा के साथ चल गए, लेकिन संगठन अभी भी उद्धव ठाकरे के साथ है। ऐसे में भाजपा को वहां मुश्किलें दिख रही हैं। ऐसे में 2024 के चुनाव में बिहार की बड़ी भूमिका होगी।
महाराष्ट्र में कैसे होगा सीटों का बंटवारा?
समीर चौगांवकर: कांग्रेस की नागपुर में रैली हुई है। नागपुर विदर्भ में आता है। इस इलाके में कांग्रेस मजबूत रही है। विदर्भ में बाबा साहब अंबेडकर के परिवार से आने वाले प्रकाश अंबेडकर की पार्टी की भी बड़ी भूमिका है। कांग्रेस प्रकाश अंबेडकर को भी गठबंधन में शामिल करने की कोशिश कर रही है। विदर्भ के पिछड़े वोटबैंक को साधने की कोशिश के तौर पर भी इस रैली को देखना चाहिए। जहां तक शिवसेना की सीटों की मांग है तो भाजपा के साथ गठबंधन में वह 23 सीटों पर लड़ती रही है। शिवसेना इन सीटों पर अपने संगठन के आधार पर यह दावा कर रही है। पार्टी टूटने के बाद उद्धव ठाकरे के पास वो आधार अब नहीं है। ऐसे में शिवसेना के लिए बहुत ज्यादा मौका नहीं है। यही स्थिति राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ है। मुझे लगता है कि आखिर में शिवसेना 15 सीटों पर मान जाएगी। विपक्षी गठबंधन के तीनों दल अपनी जमीनी हकीकत जानते हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि तीनों दलों में गठबंधन हो जाएगा।
इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे का असमंजस अब तक जारी है, ये कब तक चलेगा?
प्रेम कुमार: विपक्ष के बिखराव को हम एक घाव की तरह देखें तो यह घाव अभी ठीक होने शुरू हुए हैं। अब कहा जा रहा है कि बिहार में सीट बंटवारे पर पांच जनवरी को बैठक है। ऐसे में मुझे लगता है कि सीटों का बंटवारा इसी तरह से राज्यवार ही होगा। जदयू में जो कुछ चल रहा है, उसकी बात करें तो उसमें यह तय हो गया है कि विपक्षी गठबंधन में दो संयोजक होंगे। एक उत्तर के राज्यों के लिए, दूसरा दक्षिण के राज्यों के लिए। इसमें उत्तर के लिए नीतीश कुमार ही होंगे। वहीं, दक्षिण के राज्यों के लिए मल्लिकार्जुन खरगे चेहरा हो सकते हैं।
नीतीश को विचारों के प्रधानमंत्री बताए जा रहे हैं, इसका क्या मायने है?
अवधेश कुमार: ललन सिंह नीतीश कुमार के व्यक्तिगत मित्र हैं। यह आज की दोस्ती नहीं है। आने वाले समय में कुछ ना कुछ जरूर होगा, लेकिन क्या होगा, यह अभी से कहना मुश्किल है। नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे क्या करने वाले हैं, यह उन्हें भी नहीं पता होता है। इस समय जदयू का मानस यह है कि हम भाजपा के साथ ज्यादा सहज थे। इसीलिए ललन सिंह को हटाकर एक तरह से भाजपा को संकेत दिया गया है।
क्या राहुल की न्याय यात्रा का लोकसभा चुनाव पर असर होगा?
अवधेश कुमार: जब आप किसी भी तरह से जनता के बीच जाते हैं, आपका काडर आपके साथ चलता है तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि उसका असर होता है। हां, चुनाव के नतीजों पर इसका कितना असर होगा, यह अभी से नहीं कहा जा रहा है। हालांकि, जिन न्याय यात्रा की शुरुआत हो रही है, उसके कॉन्सेप्ट में ही दोष है। राहुल के सलाहकार उन्हें आरएसएस को लेकर जो सलाह दे रहे हैं, वो ही गलत है।
नागपुर में पहले भी कांग्रेस के अधिवेशन हुए। एक अधिवेशन तो डॉक्टर हेडगेवार के संयोजन में हुआ था। जब वे जेल में थे तो उनकी लड़ाई कांग्रेस के लोगों ने लड़ी थी। 1938 में सेंट्रल प्रोविन्स ने प्रस्ताव पास करके कहा था कि अगर आरएसएस पर बैन लगता है तो हम उसका विरोध करेंगे। तब वहां कांग्रेस थी। उस वक्त की कांग्रेस में आज की कांग्रेस में बहुत अंतर है।
प्रेम कुमार: हमने देखा कि तेलंगाना में कांग्रेस कहीं नहीं थी। समय भी नहीं था। इसके बाद भी वहां कांग्रेस ने कर के दिखाया। इसी तरह गठबंधन के लिए समय नहीं है, लेकिन गठबंधन होना जरूरी है। नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन आजादी से पहले भी हुआ। आजादी के बाद भी हुआ। अब फिर वहां हुआ है। जहां तक आरएसएस की बात है तो हर कोई जानता है कि संघ भाजपा के लिए और भाजपा संघ के लिए काम करती है। हालांकि, नागपुर में कांग्रेस की रैली का कारण सिर्फ यह नहीं है कि वहां आरएसएस का मुख्यालय है। गठबंधन के लिहाज से कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र और दक्षिण महत्वपूर्ण हैं। इसी हिसाब से गठबंधन चल रहा है। नीतीश कुमार भी यात्रा निकाल रहे हैं। उद्धव ठाकरे भी यात्रा निकाल रहे हैं। राहुल गांधी ने आज के नेताओं को यात्रा करना सिखा दिया है।
राखी बख्शी: किसी भी चीज को शुरू करने और उसे आगे ले जाने के लिए एक टाइमलाइन की जरूरत होती है। इसलिए उद्धव ठाकरे ने भी कहा कि एक तारीख तय करके सीटों का बंटवारा कर लीजिए। अभी तक विपक्ष का गठबंधन आकार नहीं ले पाया है। दूसरी तरफ भाजपा उम्मीदवारों के नाम तय करने पर काम शुरू कर चुकी है। वहीं, विपक्ष में अभी तक चेहरे पर ही बात चल रही है। जहां तक यात्रा की बात है तो उस पर हमारी नजर जरूर रहेगी। जनवरी से मार्च तक चलने वाली राहुल की यात्रा का कितना असर होगा, यह देखना होगा।