~ डॉ. गीता शर्मा
विविध कारणों से पैरालाइसिस या पक्षाघात हो जाता है। इससे व्यक्ति का चलना-फिरना प्रभावित हो जाता है। पैरालाइसिस या पक्षाघात शरीर के तंत्रिका तंत्र में होने वाली समस्याओं के कारण होता है। यह शरीर के बाएं या दाहिने अंग को प्रभावित कर देता है।
यह हमारी मांसपेशियों को बुरी तरह प्रभावित कर देता है। इससे मांसपेशियों का कामकाज भी प्रभावित हो जाता है। इसका तुरंत इलाज शुरू करना जरूरी है।
आयुर्वेद कई गंभीर बीमारियों का इलाज सफलतापूर्वक करता है। इन दिनों आयुर्वेद को भी पक्षाघात के इलाज के लिए वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में अपनाया जा रहा है।
*क्यों होता है पैरालाइसिस?*
पैरालाइसिस या पक्षाघात या लकवा अक्सर स्ट्रोक या तंत्रिका तंत्र में क्षति के कारण होता है। यह रेडिएशन या विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने, ऑटोइम्यून बीमारियों, ट्यूमर और रीढ़ की हड्डी में चोट के कारण भी हो सकता है।
लकवा से उबरना इसके कारणों और लगी चोट की सीमा पर भी निर्भर करता है। कुछ प्रकार के पक्षाघात आंशिक या पूर्ण रूप से ठीक होते हैं। आयुर्वेदिक हर्ब और दवा लकवा वाले शरीर के प्रभावित क्षेत्रों में मोबिलिटी लाने और ठीक करने में प्रभावी होते हैं।
चिकित्सा की वैकल्पिक प्रणाली आयुर्वेद पक्षाघात के इलाज के लिए काफी प्रभावी सावित होती है। आयुर्वेद का कोई साइड इफेक्ट नहीं है। इसलिए इसका उपयोग बड़े और बच्चे दोनों के इलाज के लिए किया जा सकता है।
आयुर्वेद चिकत्सा न केवल शारीरिक लक्षणों पर, बल्कि रोगी के मानसिक लक्षणों और वेलनेस पर भी ध्यान देती है।
*आहार पर विशेष ध्यान :*
आयुर्वेद में पक्षाघात का इलाज करने के लिए विशिष्ट आहार योजना का पालन कराया जाता है। हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन लेने की सलाह दी जाती है। ठंडे भोजन की बजाय गर्म भोजन का चुनाव करने के लिए कहा जाता है।
जौ, राई और बाजरा से बचने कहा जाता है। अपने आहार में शतावरी, चुकंदर, भिंडी और गाजर जैसी सब्जियां शामिल करने को कहा जाता है। पक्षाघात में वात को संतुलित करने पर जोर होता है। कड़वे और तीखे स्वादों से बचाव करने कहा जाता है.
*यौगिक मालिश :*
इस मालिश के लिए गर्म हर्बल तेलों का उपयोग किया जाता है। इन तेलों से मालिश से कई अन्य स्वास्थ्य लाभ भी जुड़े हुए हैं। कुछ आयुर्वेदिक मालिश जैसे कि अभ्यंग, पदाभ्यंग और पिझिचिल आयुर्वेदिक मालिश को लकवाग्रस्त रोगियों के लिए फायदेमंद माना जाता है।
साथ ही जीवनशैली में बदलाव भी लकवा के इलाज में भूमिका निभाती है।
*आयुर्वेदिक औषधि :*
लकवा के लिए कुछ ख़ास आयुर्वेदिक औषधि रस्नादि क्वाथ, औषधीय कैस्टर ऑयल, पिप्पली मूल, वातविध्वंस रस, चोपचीनी चूर्ण महत्वपूर्ण हैं। इनके अलावा, अश्वगंधा चूर्ण, बृहत वात चिंतामणि रस, रसराज भी लिए जाते हैं।
इनमें से कुछ दवा ओरल रूप से ली जाती हैं। दिन में दो बार 20-40 मिलीलीटर मूली का तेल और काली मिर्च पाउडर, सूंटी और शहद का मिश्रण पीना भी पक्षाघात के इलाज में फायदेमंद माना जाता है। कुछ दवाओं को नाक के माध्यम से और कुछ को एनीमा के माध्यम से देने की जरूरत पड सकती है।
पक्षाघात से उबरना बहुत धीमी प्रक्रिया है। इसलिए धैर्य रखना जरूरी है। बिना आयुर्वेदिक एक्सपर्ट की सलाह के पक्षाघात के लिए दवा लेना बहुत अधिक नुकसानदायक हो सकता है।