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*जीवन दर्शन : माया और योगमाया*

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      ~ सोनी तिवारी, वाराणसी

माया और योगमाया यह दोनों भगवान की शक्ति है। जैसा की हम जानते हैं कि शक्ति और शक्तिमान से पृथक नहीं हो सकती। उदाहरण से समझिए आग और आग में जलाने की शक्ति। आग में जलाने की शक्ति होती है। तो आग को अलग कर दो और जलाने की शक्ति बची रहे ऐसा तो हो नहीं सकता। इसी प्रकार माया और योग माया दोनों भगवान की शक्ति है।

    योगमाया भगवान की अंतरंग शक्ति है। यह भगवान की अपनी शक्ति है। भगवान के जितने भी कार्य होते हैं वह योग माया से होते हैं। जैसे भगवान जो भी लीला करते हैं वह योग माया के द्वारा करते हैं। भगवान जो कुछ भी सोचते हैं वह योग माया तुरंत उस चीज को कर देती है। जैसे कि आपने सुना होगा कि कृष्ण जब जन्म लिए तो द्वार पाल सो गए, द्वार अपने आप खुल गए, यमुना ने मार्ग दे दिया, यह सब योग माया से होता है।

     जब भी भगवान की कोई चीज या कार्य असंभव हो और वह संभव हो रही है। तो आप समझ लीजिये की यह योग माया के द्वारा हुआ है। जैसे वेदों ने कहा कि भगवान स्वतंत्र हैं वह किसी के अधीन नहीं है।

     वह यशोदा मैया के डंडे से डर जाते हैं और उनमें रस्सी से बंध जाते हैं। तो यह सर्वज्ञ भगवान सब कुछ जानने वाला भगवान, सर्वशक्तिमान भगवान, सबको मुक्त करने वाला और मैया के यशोदा के रस्सी से बंध जाते है, और माँ से मुक्त करने की विनती करते है, और वो भी अभिनय में नहीं!

     वास्तव में, जैसे हम लोग माँ से डरते है, ऐसे ही। यह योग माया के कारण होता है। तो भगवान के जो लीलाएं हैं वह योगमाया से होती हैं। या ऐसा कह दो कि भगवान जो कुछ भी करते हैं, वह सब योग माया के कार्य होते हैं। और केवल भगवान नहीं जितने संत महात्मा हैं, जो सिद्ध हो चुके हैं, जिन महात्माओं ने भगवान की प्राप्ति कर ली है। वह भी योग माया की शक्ति से कार्य करते हैं।

     योग माया की शक्ति कुछ ऐसी है कि कार्य माया के करते हैं, लेकिन उनको माया नहीं लगती। जैसे क्रोध करना यह माया का विकार है दोष है। लेकिन महापुरुष और भगवान भी क्रोध करते हैं, पर वह माया का क्रोध नहीं होता वह योगमाया का क्रोध होता है।

     देखने में लगता है कि भगवान क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है महापुरुष को क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है। लेकिन वो योग माया से क्रोध करते है और हम लोग कहते हैं कि यह संत भी माया के आधीन है। लेकिन वास्तविकता यह है कि वह योग माया से कार्य कर रहे हैं अर्थात् चेहरे पर क्रोध है लेकिन अंदर कुछ क्रोध नहीं है यह योग माया का विलक्षण बात है।

माया भगवान की बहिरंग शक्ति है। माया भी भगवान की ही शक्ति है। लेकिन यह माया जो भगवान से विमुख जीव है या जो जीव भगवान को अपना नहीं मानते या अपना सब कुछ नहीं मानते या जिन जीवो को भगवत्प्राप्ति (भगवान की प्राप्ति) नहीं हुई है।

     उन पर यह माया हावी रहती है। जिन्होंने भगवान की प्राप्ति कर ली उनसे भगवान माया को हटा देते हैं और उन्हें योग माया की शक्ति दे देते हैं। जिससे वह महात्मा (संत, ऋषि मुनि) माया के कार्य करते हैं लेकिन माया से परे रहते हैं.

दुर्गा ,सीता ,काली ,राधा ,लक्ष्मी ,मंगला ,पार्वती का मूर्त रूप है योग माया। और इसी योगमाया से कृष्ण राधा का शरीर है राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं। शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं। योगमाया के ही अभिनय स्वरूप प्रगट रूप में हैं।  ये चाहे तो स्त्री के रूप में रहे या पुरुष के रूप में। ये स्वेच्छा से किसी भी रूप को धारण कर सकती है।

    योगमाया भगवान की शक्ति है, ये कोई भी स्वरूप में रह सकती है। योगमाया बिना किसी स्वरूप के भी भगवान और महापुरुष के साथ रहती है। जैसे नारद जी, तुलसीदास, इनके साथ कोई स्त्री नहीं है, लेकिन योगमाया की शक्ति है।

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