-डॉ अनिता गोस्वामी
धुआँ तुम भी और धुआँ मैं भी , गुमाँ किस बात का है
राख हम भी और राख तुम भी तो साथ किस बात का है।
जलोगे तुम भी ,जलेंगे हम भी जलन किस बात की है.
फर्क इतना की तुम अहंकार की रंगीन चादर में होगे
और शायद हम स्वाभिमान की सफेद चादर में होंगे।
लेकिन घर तेरा भी श्मशान और मेरा भी श्मशान।
तो अभिमान किस बात का है ?
धुआँ तुम भी और धुआँ मैं भी , गुमाँ किस बात का है।