डॉ.अभिजित वैद्य
हिटलर द्वारा की गई ज्यूं लोगों की हत्या – होलोकास्ट का विश्व के हर संवेदनशील, विवेकी तथा मानवता
पर विश्वास रखनेवाली व्यक्ति धिक्कार करता है l जर्मनी के पतन को ज्यू धर्म के अर्थात सेमेटिक वंश के लोग
जिम्मेदार हैं ऐसी हिटलर की पूरी धारणा थी l बचपन में ज्यूं द्वारा निजी तौर पर जो कटू अनुभव मिले थे
जिससे उसका यह मत बन गया था l हिटलरने व्यक्तिगत अनुभववों को व्यापक बनाकर विश्व के समूचे ज्यू
लोगों को ही खलनायक ठहराया l सावरकर की मुस्लिमों के बारे में भी ऐसी ही भूमिका रही l जर्मन लोग
श्रेष्ठ आर्य वंश के हैं और ज्यू कनिष्ठ वंश हैं l अतः उन्हें जिंदा रहने का अधिकार न होने के कारण उनका पूरी
तरह से वंशच्छेद करना चाहिए ऐसी हिटलर की धारणा बन गई l निजी तौर पर कटु या हिंसात्मक अनुभव
से किसी समाज को दोषी ठहराकर उस समाज के मूल वंशच्छेद की रचना किसी भी प्रकार के विवेकी
विचारों से निर्माण नहीं हो सकती l ऐसा तत्वज्ञान करनेवाला व्यक्ति मनोरुग्ण ही होता है l लेकिन ऐसे
अनेक छुपे मनोरुग्ण लोग सत्ताधारी या तत्वज्ञान का मुखौटा पहनकर आते हैं और समाज उनके बहकावे में
आ जाता है ऐसा इतिहास दोहराता है l ज्यू लोगों के बारे में अनेक कारणों से पूरे विश्व में घृणा निर्माण
होती गई l युरोप ज्यादातर इसाई धर्म का l येशू ख्रिस्त के मृत्यू का कारण एक ज्यू जिम्मेदार था इस बात
का गुस्सा – इसका एक मुख्य कारण है l
ज्यूं को अपनी भूमि से बहुतबार फरार होना पड़ा l फरार होने पर किसी देश में जाने पर उस देश की
परंपराओं में सम्मिलित न होकर अपनी भूमि की ओर लौटने का सपना उनकी पीढियाँ हमेशा देखती रही l
अतः ज्यू हमेशा उन देशों की परंपराओं से दूर रहते गए l ज्यादातर ज्यू लोग शुरू में साहुकारी करते थे l
दूसरा व्यवसाय करनेपर उन्हें पाबंदी थी इसलिए वे अप्रिय बन गए l युरोप में ज्यूं के प्रति तिरस्कार की
भावना और हिटलर के मन में उच्चकोटि का द्वेष – इसमें से ज्यू लोगों की हत्या करने के पक्ष में जर्मन जनता
की सामूहिक मतप्रणाली तैयार करने में हिटलर यशस्वी हुआ l इसमें से विश्व के इतिहास में अत्यंत निर्दयी
एवं मानवता को लज्जा निर्माण करनेवाला अध्याय शुरू हुआ l दूसरे विश्व महायुध्द का यह कालावधि l
१९३३ से १९४५ के दरमियान बारह वर्षों की कालावधि में हिटलर ने २१ तल पड़ाव, कॉन्सेंट्रेशन कैंप्स से
बेलगाव अत्याचार करके ६० लाख ज्यूं को मौत की घाट उतर दिया l इसमें से बच्चे, महिलाएँ, वयस्क तथा
अपाहिज भी बच नहीं सके l इस पूरी पार्श्वभूमी से अपने हक की जमीन-वतन होना चाहिए ऐसी भावना
बडी तेजीसे उनके मन में बढने लगी l इसी भावना से १८८० में थिओडोर हर्झेनल ने ‘झिओनिझम’ नामक
आंदोलन खड़ा किया और विश्व के ज्यूं को अपनी मातृभूमि की ओर – पॅलेस्टाईन की ओर लोटने का
आवाहन किया l १८९७ में पहली ‘झिओनिस्ट कॉग्रेस’ बन गई ओर उसमें पॅलेस्टाईन ज्यू लोगों की मातृभूमि
है यह कहा गया l पॅलेस्टाईन १५१७ से ही ऑटोमेन इस्लाम के अधिपत्य में था l जब हर्झेल ने आवाहनकिया था तब इस प्रदेश में ५७% ज्यू और ४३% अरब मुस्लिम थे l १९१७ में ब्रिटिश लोगों के कब्जे में
पॅलेस्टाईन गया और १९४८ में स्वतंत्र हुआ l स्वतंत्रता बहाल करते समय ब्रिटिश सरकारने अमेरिका से
मिली-भगत की और अरब मुस्लिम राष्ट्रों के बीचोबीच पॅलेस्टाईन का अस्तित्व अस्वीकृत करके इस्त्रायल
नामक ज्यू राष्ट्र की निर्मिती की l करीबन चार हजार वर्षों तक अपना अस्तित्व कायम रखकर पूरे विश्व में
भटकनेवाले ज्यू धर्मियों को अपने हक का वतन मिल गया, लेकिन उसी भूमि में सैंकड़ों वर्षों तक रहनेवाले
अरब-मुस्लिमों के पॅलेस्टाईन का अस्तित्व इनकार करके l
ब्रिटिश तो चले गए लेकिन पॅलेस्टाईन के माथे पर अश्वथामा जैसी तेजी से बहनेवाली जख्म छोड़कर l
मूलतः यह भूमि ज्यू, ख्रिश्चन, एवं इस्लाम धर्म के लोगों की l इन तिनोंही धर्मों का पितामह एक ही –
अब्राहम या इब्राहीम अर्थात अबू राम, श्रेष्ठ पिता l ये तीनों धर्म एकेश्वरवादी, ईश्वर को निराकार
माननेवाले, मूर्तिपूजा का विरोध करनेवाले l इन तीनों ही धर्मों को ‘अब्राहिम धर्म’ ऐसा कहते हैं l इन तीनों
ही धर्मों के धर्मग्रंथों में अब्राहम के उल्लेख हैं l अंदाजन इ.स. पुर्व १८०० में अर्थात पौने चार हजार वर्ष पूर्व
अब्राहम का जन्म मेसोपोटेमिया में – आज का इराक, सिरिया और टर्की का इलाका, उर गाँव में हुआ ऐसा
‘पुराना बायबल’ ‘ओल्ड-टेस्टामेंट’ मानता है l अॅडम और इव के, केन, एबल और सेठ इन तीन बेटों में से
सेठ के ‘नोहा’ नामक बेटे का ‘अब्राहम’ ग्यारवाँ वंशज l बहुत लोगों के मतानुसार ये सभी दंतकथा है l
अब्राहम को ‘याहुबा’ अर्थात ईश्वर ने साक्षात्कार दिया l ज्यू का अर्थ है ‘यहूदी’ धर्म के ये बीज होगी l उस
वक्त यह भूमि अनेकेश्वरवादी मूर्तिपूजक ऐसी आदिम धर्म की उपासना करनेवाले स्थानीय कॅननाइट लोगों
के कब्जे में थी l वास्तव में इस्त्रायल या ज्युडिया या पॅलेस्टाईन इस नामसे इतिहास के विविध सोपानों पर
पहचाननेवाली भूमि पर अन्यान्य समूहों या धर्म समूहों ने राज किया l यह इतिहास करीबन ५-६ हजार
सालों का l शुरू में दो से तीन हजार वर्षों तक जंगली समूहों का यह इलाका रह चुका है l जेरुसलेम शहर
ख्रि.पू. ३५०० हजार वर्षों से अस्तित्व में था l लेकिन ज्ञात इतिहास या दंतकथाओं की शुरुआत अब्राहम से
शुरू होती है l अब्राहम के अनेक बेटों में इझॅक सारा यह पत्नी पैदा हुआ है l कहा जाता है की उस वक्त
अब्राहम की उम्र थी १०० और सारा की ९० l जब इझॅक का जन्म हुआ तब इश्वर ने अब्राहम को दृष्टांत
दिया और उसकी परीक्षा लेने हेतु इझॅक के मृत्यु की माँग की l अपने सबसे प्यारे बेटे को – इझॅक को मोरिहा
पर्बत पर ले जाकर उसने बली दी l लेकिन अब्राहम के ध्यान में यह बात आ गई की अपने बेटे के स्थान पर
एक भेडा निर्माण हुआ और उस भेड़े का बली गया l इस इझॅक का बेटा जॅकोब जिसने ‘इस्त्रायल’ नाम धारण
किया l इस बेटे से बारह समूह तैयार हुए l जॅकोब और उनकी टोलियों को गुलाम बनाकर निकाल दिया l
जॅकोब का बेटा जोसेफ – जो इन सभी को लेकर इजिप्त चला गया l इजिप्त में प्लेग की महामारी फैलने पर
जोसेफ का बेटा मोझेस – इन समूहों को अपने साथ लेकर इस्त्रायल लौट आया l मोझेस को सिनई पहाड़ पर
साक्षात्कार होने पर उन्होंने ज्यूं के दस धर्मज्ञा ‘टेन कमांडमेंटस’ दी और पवित्र धर्मग्रंथ ‘तोरा’ लिख दिया l
पुराने हिब्रू बायबल के अर्थात ‘तनख’ जिसे ख्रिश्चन ‘ओल्ड टेस्टोमेंट’ संबोधित करते हैं – पहले पाँच ग्रंथों को
‘तोरा’ ‘फाइव बुक्स ऑफ़ मोझेस’ कहा जाता है l इसमें से पहला ग्रंथ है ‘दी बुक ऑफ़ जेनेसिस’ l तनख का
कर्ता भी मोझेस ही माना जाता है l तोरा का अर्थ है ज्यूं का कानून या सीख l मोझेस की वंशावली में येशू ने
जन्म लिया l येशू के मार्गदर्शन में ख्रिश्चन धर्म की स्थापना हुई l उस वक्त इस भूमि पर रोमन राज कर रहे थे
l अब्राहम का दूसरा बेटा इश्माईल – जो इझॅक से उम्र में बड़ा था l लेकिन अब्राहम को वह हगार नामक
कामवाली से पैदा हुआ l इस माँ बेटे को अब्राहम के घर से निकाल दिया गया l ईश्वर ने इश्माईल की अपेक्षा
इझॅकका चयन किया l लेकिन इस के साथ इश्माईल भी एक बड़े राष्ट्र की निर्मिती करेगा ऐसा अंदाजा व्यक्त किया l इस इश्माईल से अरबों की १२ टोलियाँ निर्माण हुई l महंमद पैगंबर का इसी टोली में जन्म हुआ l
आगे चलकर महंमद पैगंबर ने कुरान की निर्मिती करके इस्लाम धर्म की स्थापना की l
मोझेस वंश के डेविड ने इ.स. पूर्व १००० में जेरुसलेम जीत लिया और ज्यूं का पहला राज्य निर्माण किया l
उसका बेटा सॉलोमन l जिसने जेरुसलेम में ज्यूं का पहला मंदिर तैयार किया l राजा डेविड के परिवार ने
इस भूमि पर ४०० साल राज किया l यह ज्यू का गौरव काल ‘अक्वा ब्ल्यू’ l इस कालावधि में ज्यू समाजने
आँखों को चौधियानेवाली प्रगति की l ज्यू संस्कृति ने ऊँची उडान लगाई l बड़े शहर निर्माण हुए l लेकिन
इसके साथ भ्रष्टाचार में वृध्दि हो गई l मूर्तिपूजा का गुणगान बढ़ गया l ज्यू समाज का अधःपतन शुरू हुआ l
इसका फायदा उठाकर बॅबिलोन का राजा नेबुचंद नेझार ने यह राज्य इ.स. पूर्व ६०० में जीत लिया,
जेरुसलेम जलाकर खाक कर दिया और ज्यू का मंदिर ध्वस्त कर दिया l ज्यू को बॅबिलोन में भेजा गया l ज्यूं
का यह ‘पहला एक्झोडस’ l सत्तर बरसों के बाद पर्शियन सम्राट सायरस ने बॅबिलोन जीत लिया l इस्त्रायल
उसकी काबू में आ गया l ज्यू को बॅबिलोन से इस्त्रायल लौटने की अनुमति मिल गई l ज्यू ने अपना दूसरा
मंदिर निर्माण किया l सम्राट सायरस ने ज्यू के साथ बहुत अच्छा बरताव किया l पर्शियन सत्ता ४०० वर्षों
तक कायम रही l ग्रीक सम्राट अलेक्झांडर ने इस राजसत्ता का पराभव किया l ज्यू को ग्रीक धर्म का पालन
करने की अनिवार्यता की गई l इसी कालावधि में मॅकेबियन आंदोलन होकर ज्यूं को अंशतः स्वातंत्र्य मिल
गया l इ.स. पूर्व ६३ में रोमन साम्राज्य ने यह इलाका जीत लिया l इ.स. पूर्व ३७ में आम परिवार से आए
हुए हेरॉड ने रोमन लोगों का पराभव करके फिरसे ज्यूं का राज्य निर्माण किया और मंदिर की मरम्मत की l
इ.स. पूर्व ७० में रोमन ने फिर उसका पराभव किया और यह प्रदेश अपने कब्जे में लिया l ज्यू का दूसरा
मंदिर जला दिया l येशू को क्रूस पर चढ़ा दिया l ज्यू को गुलाम के रूप में रोमन साम्राज्य में और पूरे विश्व में
भगा दिया l यह ज्यू का ‘दूसरा एक्झोडसl’ I ज्यूं के इस राज्य का उस वक्त का नाम ‘ज्युडिया’ था l उसे
बदलकर ‘सिरिया पॅलेस्टिना’ यह नाम रखा गया l जेरुसलेम का नाम ‘एलिया कॅपिटोलिना’ रखा गया l
उसके बाद अल्प कालावधितक पर्शियन और बायझनटाईन ख्रिश्चनों ने इस इलाके पर राज किया I इ.स.
६३८ में खलिफा ओमर की इस्लामी राजसत्ता में आ गया l इ.स. ६९१ में दुसरे मंदिर के बचे हुए खँडहरों के
बाजू में ‘डोम ऑफ़ द रॉक’- ‘अल अक्सा मस्जिद’ निर्माण हुई l इ.स. १०९९ और १२३० में ख्रिश्चन क्रूसेड
की कालावधि में ज्यू एवं मुस्लिम – दोनों की बडी मात्रा में हत्याएँ की गई l आगे चलकर इ.स. १५१७ से
ऑटोमन इस्लाम के साम्राज्य ने अगली एक शती तक जबतक ब्रिटिशों ने उनका पराभव नहीं किया तबतक
उस प्रदेश पर राज किया l इन सभी गतिविधियों का परिक्षण करने पर एक बात स्पष्टरूप से दिखाई देती है
और वह है – इस्त्रायल पर ज्यूं की सत्ता करीबन ३५०० वर्षों में से केवल ४२५ वर्षों तक थी अपितु
मुसलमानों की करीबन ९०० वर्षों तक थी l इसके बाद रोमन सत्ता ५२५ वर्ष तो ग्रीक सत्ता २०० वर्षों तक
थी l इन पूरे कालावधि में ज्यूं पर सबसे ज्यादा अत्याचार बॅबिलोनियन, ग्रीक, रोमन और ख्रिश्चनों की
राजसत्ता में हुए l प्राचीन काल में ज्यू और मुसलमान एक-दूसरे के दुश्मन नहीं थे l
जिस तरह ज्यू धर्मकी उत्पत्ति इस भूमि में हुई ठीक उसी तरह ख्रिश्चन धर्म की भी l येशू को जेरुसलेम में ही
रोमन लोगों ने क्रुसपर चढ़ा दिया और उसी रोमन लोगों ने इ.स. ४ थी शती में ख्रिश्चन धर्म स्वीकृत किया l
इस्लाम के लिए भी इस भूमि का महत्त्व असाधारण है l इ.स. ८ वी शती में स्वर्ग में जाने से पहले स्वर्ग के
एक पंछी पर बैठकर जेरुसलेम आ गए, उन्होंने अब्राहम, मोझेस, जिझस इन प्रेषितों के साथ प्रार्थना करके
इश्वर से संवाद प्रस्थापित किया l इसलिए जेरुसलेम में ‘टेम्पल माउंट’ के एक ही स्थान पर तीन धर्मों की
तीन वास्तूएँ खड़ी हैं l ज्यूं के दूसरे मंदिर की भग्नावशेष हुई ‘वेस्टर्न वॉल’ या ‘वेलिंग वॉल’- ज्यूं के प्रदीर्घ आक्रोश की दिवार l दूसरी ओर येशू को क्रूस पर चढ़ा दिया उस स्थान पर ‘चर्च ऑफ़ सेपल्चर’ l क्रूस पर
निकालकर येशू के मृत शरीर को उनके शिष्यों ने जिस पत्थर पर नहाया – उस पत्थर को इस चर्च में रखा
गया है l तीसरी ओर सूरज की चमक से जगमगानेवाला और सोने से जड़ा हुआ ‘अल अक्सा मसजिद’ का
गोल गुंबज – ‘दी डोम ऑफ़ दी रॉक’ जहाँ से पैंगंबर सातवें स्वर्ग में गए l
विश्व के किसीभी भूभाग का इतिहास इतना जटिलता का नहीं होगा l ऐसा इतिहास होने पर भी अंग्रजों ने
पॅलेस्टाइन को जनतंत्र बहाल करते समय उसे ज्यूं के हातों सौंप दिया और इस्त्रायल नामक ज्यू राष्ट्र की
निर्मिती की l सैंकड़ो वर्षों तक पूरे विश्व में तितरबितर हुए और अनेक सदियों से उसी देश रहे ज्यू इस
स्वतंत्र इस्त्रायल में लौट आएँ l इस्त्रायल की भूमि में ज्यूं द्वारा लौटने की प्रक्रिया ब्रिटिशों ने १९१७ के
बालफोर के ऐलान से ही की थी l पहले विश्व महायुध्द में ब्रिटिशों को समूचे विश्व के ज्यूं के समर्थन की
आवश्यकता थी l इसके लिए ब्रिटन के विदेशमंत्री बालफोर ने झिओनिस्ट आंदोलन को समर्थन देने का
आवाहन किया l पॅलेस्टाईन की भूमि ज्यूं को देने का यह नियोजन था l १९३६ में पॅलेस्टीनी अरबों ने इस
निर्णय के विरुध्द विद्रोह किया जो ब्रिटिशों ने कुचल दिया l आगे २९ नवंबर १९४७ में युनोने धर्म पर
आधारित पॅलेस्टाईन का विभाजन करने का प्रस्ताव किया l इसके अनुसार अरब और ज्यू ऐसे दो राष्ट्र
निर्माण हो ऐसा प्रस्ताव किया गया और जेरुसलेम का कब्जा अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ की ओर सौंपना तय हुआ
l इसका निषेध करने के लिए पॅलेस्टीनी लोगों ने यह प्रस्ताव दुतकार दिया l इस्त्रायल ने १४ मई १९४८ को
जनतंत्र घोषित किया l इस घटना का वर्णन पॅलेस्टीनीयों ने ‘नकबा’ अर्थात ‘आपत्ति’ ऐसा किया l एक बड़े
संघर्ष की यह शुरुआत थी l जिन विदेशी देशों में हमेशा ज्यू द्वेश धधगता रहा, इस द्वेष से ही हिटलर ने ज्यूं
की हत्या की वे पाश्चात्य देश और रशिया ज्यूं के लगाव से हिटलर के विरुध्द लड़ने की कोई गुंजाईश ही
नहीं थी l ये राष्ट्र अपने अस्तित्व के लिए हिटलर के विरुध्द लडती रही l तो समूचे विश्व के ज्यूं को उनके हक
का राष्ट्र निर्माण कर देने की कल्पना कहाँ से निर्माण हुई ? पहले महायुध्द के तक ज्यू समाज पूरे विश्व में
एक ताकत विशेषतः आर्थिक ताकत बन गया था l अनेक उद्योगों, बैंकों, माध्यमों, कलासहित्य के क्षेत्रों की
नब्ज अलग तरीकें से राजनीति की नब्ज इस समाज की हाथों में थी l उसके साथ-साथ तेल की ठेकेदारी
रखनेवाले अरब राष्ट्रों को शह देने के लिए उनके बीचोबीच ज्यू राष्ट्र खड़ा करना, इंग्लैंड और अमेरिका जैसे
राष्ट्रों को आश्यक लगा होगा l
इस्त्रायल उर्फ पॅलेस्टाईन भूमि को लहुलुहान इतिहास का मनो शाप ही था l उस भूमि में सबसे प्राचीन धर्म
को भी ऐसा ही शाप था l ज्यू प्राचीनकाल से हमेशा उपहास, अवहेलना, द्वेष, नफरत, परागंदा अवस्था,
गुलामी तथा हिंसा के शिकार हुए l ज्यूं को इस्त्रायल से हमेशा भगा दिया और वे पूरे विश्व में फ़ैल गए l ज्यूं
को बारह टोलियों में से १०नामशेष हो गई लेकिन जहाँ गए वहाँ उन्होंने अपने कर्तुत्व की मुहर लगा दी l
सैंकड़ों वर्षों बाद ज्यूं को उनके हक की मातृभूमि मिल गई लेकिन लहुलुहान इतिहास की परंपरा कायम रही
l इस्त्रायल स्वतंत्र हुआ l ज्यूं ने अरब मुस्लिमों का उस भूमि का हक अस्वीकृत किया l १९४७ से १९४९ के
दरमियान पहला अरब-इस्त्रायल युध्द हुआ l उस वक्त गाझा इजिप्त की ओर तो वेस्ट बैंक जॉर्डन की ओर थी
l इस युध्द में ७ लाख पलेस्टीनी निर्वासित हुए l पॅलेस्टाईन की स्वतंत्रता के लिए १९६४ में पॅलेस्टाईन
लिबरेशन ऑर्गेनाझेशन (P.L.O.) की स्थापना करके उसका मुख्यालय जॉर्डन में बनाया गया l १९६७ में
प्रसिध्द ‘सिक्स डे वॉर’ युध्द में इस्त्रायल ने गाझा और वेस्ट बैंक ये दोनों भूभाग जीत लिए l १९७३ में
तीसरा अरब इस्त्रायल युध्द ‘योम किप्पुर युध्द’ हुआ l इस युद्ध में इजिप्त और सिरिया ने इस्त्रायल को अरब
देशों के साथ समझोता करने को कहा l इसी वर्ष युनोने पी.एल.ओ. को स्वीकृति दी l १९७९ में इजिप्त ने अमेरिका के माध्यम से इस्त्रायल को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्विकृति दी l यह सब करनेवाले इजिप्त के अध्यक्ष
सादत का मुस्लिम कट्टर समर्थकों ने खून किया l १९६७ से १९८० के दरमियान इस्त्रायल ने गाझा और
वेस्ट बैंकों में अपनी फ़ौज की सहायता से ज्यूं की बस्ती निर्माण करने का धडल्ला शुरू किया l१९९० के
बाद पी.एल.ओ. का राजकीय पक्ष ‘अल फताह’ ने सशस्त्र मार्ग त्याग दिया l १९९२ में दूसरी ऐतिहासिक
घटना घटित हुई l इस्त्रायल के प्रधानमंत्री इत्झाक रॅबिन ने पी.एल.ओ. को मान्यता दी l अमेरिका के उस
वक्त के अध्यक्ष बिल क्लिंटन के माध्यम से हुआ अनुबंध ‘ऑल्सो अॅकॉर्ड’ नाम से प्रसिद्ध है l इस अनुबंध के
कारण १९९४ में रॅबिन और अराफत को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया l इसकी कीमत रॅबिन को
चुकानी पड़ी l १९९५ में एक ज्यू समर्थक ने रॅबिन के सिने में गोलियाँ दाग कर उनका खून किया l शांति का
अनुबंध इस्त्रायल ने दुतकार दिया l
इससे ‘हमास’ नामक संघटना अपना अस्तित्व मजबूत करने लगी l ‘हमास’ का अर्थ है – ‘हरकत-अल-
मुकावाह-अल इस्लामिया’ l १९८७ में ही अहमद यासीन और अब्देल अझीझ अल रन्तिसियोंने ‘हमास’
नामक सांस्कृतिक लश्करी संघटना की स्थापना की थी l पॅलेस्टाईन को स्वतंत्रता सशस्त्र लड़ा करने से ही
मिलेगा इसपर हमास का विश्वास था l इराण, सिरिया, लेबॉनन इस देशों ने हमास को समर्थन दिया l
कॅनडा, इस्त्रायल, जापान, इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूझीलंड, पराग्वे इन देशों ने हमास आतंवादी
संघटना है ऐसा घोषित किया l लेकिन चीन, ब्राझील, इजिप्त, कतार, रशिया और नॉर्वे इन देशों ने हमास
आतंकवादी संघटना नहीं है ऐसी भूमिका अपनाई l हिंसा का मार्ग छोड़नेवाले पी.एल.ओ. ने हमास का
पहले से ही विरोध किया l १९९५ के बाद पूरी तरह से शांति का मार्ग अपनानेवाले पी.एल.ओ. को पीछे
हटाकर हमास अग्रसर होती रही l इस्त्रायल की लष्करी हुक्मशाही की वजह से पॅलेस्टीनी जनता शांतिपूर्व
मार्ग पर जो विश्वास था वह हटने लगा l २००४ में अराफत की मृत्यु के बाद हमास सशक्त बनती गई l
२००६ के चुनाव में १३२ स्थानों में से ७४ स्थानों पर हमास चुनकर आई l गाझा हमास की और वेस्ट बैंक
फतेह पक्ष की ओर ऐसा विभाजन हुआ l हमास और इस्त्रायल में कुल पाँच युध्द हो गए l जनवरी २००९ में
इस्त्रायल और पॅलेस्टाईन में शस्त्र संधी की घोषणा हुई l २०१२ में युनोने पॅलेस्टाईनका प्रतिनिधि स्वीकृत
किया l नेतान्याहू प्रधानमंत्री बन गए और उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया l नवंबर २०१२ में इस्त्रायल ने
हमास का लष्कर प्रमुख अहमद अल जबरी की हत्या की l मई २०२१ में इस्त्रायली पुलिस ने अल अक्सा
मशीद पर किए हुए हमले में २०० पॅलेस्टीनीयों की मृत्यु हो गई l २०१८ में अमेरिका ने यूनो में हमास के
निषेध का प्रस्ताव रखा जिसे ख़ारिज किया गया l हमास और इस्त्रायल एक दूसरे पर हमला-प्रतिहमला
करते रहे l पॅलेस्टाईन के पास किसी भी प्रकार का अधिकृत लष्कर नहीं है l इस्त्रायल का लष्कर विश्व सुसज्ज
एवं अत्याधुनिक शस्त्र-सामग्री अपनानेवाला लष्कर है l इस्त्रायल को अमेरिका अब्जों डॉलर की मदद करता
आ रहा है l गत दशक में अमेरिका ने इस्त्रायल को ३१८ बिलियन डॉलर्स इतनी मदद की है l इस मदद में से
९९.७% मदद इस्त्रायल की लष्कर की ओर जाती है l मुठ्ठीभर पॅलेस्टीनी इस बलवान, अत्याधुनिक लष्कर
के विरुध्द कंकड़-पत्थर तो कभी सामान्य बंदूकों से लड़ते रहे l यह लड़ाई अत्यंत विषम थी l आधुनिक शस्त्र
जिसके पास है उन शक्तिशाली सत्ता के विरोध में मुठ्ठीभर लोग आतंकवाद का मार्ग अपनाकर जीत नहीं
सकते l ऐसी लड़ाई में जनता सम्मिलित नहीं हो सकती l ऐसी विषम लड़ाई अहिंसक तथा सत्याग्रह के मार्ग
पर चलकर ही लड़ने में होशियारी होती है, जिसमें जनता सम्मिलित हो सकती है l आतंकवाद किसी भी
प्रश्न का उत्तर नहीं हो सकता l दुर्दैव से पॅलेस्टीन की कुछ संघटनाओं ने अपने स्वातंत्र्य के लिए आतंकवाद का
मार्ग अपनाया l अपने से शक्तिशाली सत्ता के विरुध्द कैसे लड़ सकते हैं ऐसा प्रश्न हर संघर्ष के दरमियान
निर्माण होता है l जिसकी ताकत कम होती है वह आतंकवाद का मार्ग अपनाता है l अपनी आतंवादी कृति सेवो विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करता है l अनेक देशों के स्वतंत्रता आंदोलन में मुठ्ठीभर क्रांतिकारियों
ने सशस्त्र लढा दिया l लेकिन क्रांतिकारी और आतंकवादीयों में महत्त्वपूर्ण फर्क यह है की क्रांतिकारी हाथ में
शस्त्र लेकर जिनसे स्वतंत्रता प्राप्त करनी है उस सत्ता के लष्कर के विरोध में लडते हैं अपितु आतंवादी
निरपराध लोगों का बली लेने में आगे-पीछे की नहीं सोचते l हमास के मार्ग क्रांतिकारीयों के मार्ग नहीं है तो
आतंकवाद के मार्ग है l लेकिन इसे भी भूलना नहीं चाहिए की किसी भी देश की लष्कर दुश्मन की आम
जनता की हत्या कर रही हो तो उस लष्कर की कृति भी दहशतवादी कृति ही माननी पड़ेगी, केवल यह
आतंकवाद शासनप्रणीत होता है l
६ अक्तूबर २०२३ को हमास ने अत्यंत अनपेक्षित तौर पर इस्त्रायल पर हमला किया l इस हमले ने इस्त्रायल
का ‘आयर्न डोम’ सुरक्षा कवच छेद दिया इस्त्रायल की ‘गुप्तहेर’ संघटना ‘मोसाद’ को चकमा दिया l हमास की
इस लष्करी मूहीम का नाम था ‘अल अक्सा फ्लड’ l इस मूहीम का कमांडर था मोहम्मद अल डाईफ l
साधारण लेकिन हजारों ग्रामीण रॉकेट्स, स्पीडबोटस, पॅराग्लायडर्स एवं मोटरसायकिल जैसे प्राथमिक
शस्त्रों की सहयता से हमास ने यह हमला किया l इस हमले का जवाब देने के लिए इस्त्रायल ने उनकी लष्कर
की ओर से आय.डी.एफ; इस्त्रायल डिफेन्स फोर्सेस की ओर से ‘ऑपरेशन आयर्न स्वोर्ड’ योजना बनाई l
वास्तव में इजिप्त ने इस्त्रायल की गुप्तहेर संघटना को इस तरह का हमला हमास करनेवाला है ऐसी सूचना
दी थी l पुलवामा की याद दिलानेवाली यह घटना है l दाए विचारों के अनुकूल नेतान्याहू भ्रष्टाचार के अनेक
आरोप होते हुए भी येनकेन प्रकारेण दीर्घकालतक सत्ता में रहने में यशस्वी हुए राजनीतिज्ञ है l नेतान्याहू
इस्त्रायल के अत्यंत अप्रिय और धार्मिक ध्रुवीकरण करनेवाले नेता है l उनके लिकुड पक्ष को नवंबर -२०२२
के सर्वाधिक चुनाव में केवल २३.४% मत प्राप्त हुए l सभी अनुकूल विचारधारा के पक्षों को साथ लेकर
उन्होंने सत्ता स्थापित की l इस्त्रायल की घटनाओं की कुछ कमियों का उन्होंने फायदा उठाया l अनुकूल
विचारधारा की सभी नेताओं की तरह हिंसा पर विश्वास रखनेवाले नेतान्याहू ने पॅलेस्टाईन के अनेक इलाकों
पर निरंतर लष्करी हमले किए हैं l ऐसा नेता धीरे-धीरे हुक्मशहा बनने की ओर अपने कदम उठाता ही है l
नेतान्याहू ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय शासन दुतकार देगा इस तरह के बदलाव कानून में करने का निर्णय
लिया और इस्त्रायली जनतंत्र को धक्का देनेवाले इस निर्णय के विरोध में इस्त्रायली जनता लाखों की मात्रा में
सड़क पर उतर आई l इस्त्रायल के अनेक राजकीय नेता, विचारवंत, पूर्व लष्करी पुलिस अधिकारी आदि
लोगों ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना एवं विरोध किया l अंत में अमेरिका के अध्यक्ष जो बायडेन ने
नेतान्याहू को पुनर्विचार करने की बिनती की l नेतान्याहू ने उनका निर्णय रद्द करने की माँग दुतकार दी l
इस्त्रायली जनता का रोष बढ़ता ही जा रहा था l देश के सभी प्रदेशों में निदर्शन होने लगे और अचानक तौर
पर हमास ने हमला किया और वह भी मोसाद को चकमा देकर I देश पर हुए इस अनपेक्षित हमले से
आंदोलन तो रुक गई लेकिन पूरी जनता पूरी एकता से नेतान्याहू के समर्थन में खड़ी रही l नेतान्याहू ने इस
हमले के लिए हमास को नहीं अपितु गाझा इलाके के सभी जनता को दोषी ठहराकर दूसरा होलोकास्ट
आरंभ किया l गोध्रा और गुजरात के दंगे की याद देनेवाली ये घटनाएँ हैं l हमास के १००० आतंकवादीयों ने
किए हुए हमले में करीबन १४०० इस्त्रायली नागरिकों की जान चली गई तो इस्त्रायल द्वारा किए गए
लष्करी हमले में करीबन १४००० पॅलेस्टीनी नागरिकों की मृत्यु हो गई l इसमें कम-से-कम ४००० छोटे
बच्चे हैं l जख्मी लोगों का आँकड़ा तो अलगही है l गाझापटटी के अस्पतालों का उपयोग हमास अपनी
छावनी के लिए कर रहा है ऐसा समझकर इस्त्रायल ने अस्पतालों पर भी निर्दयता से हमले किए l हमास के
हमले का विश्व ने बड़ा निषेध व्यक्त किया है l इस हमले का समर्थन करने का सवाल ही पैदा नहीं होता l
लेकिन उसके बाद नेतान्याहू के आदेश से इस्त्रायली लष्कर ने शुरू किए हत्याओं का पूरा विश्व बडी मात्रामेंनिषेध व्यक्त कर रहा है l दक्षिण अफ्रिका के वंशवादी राजसत्ता से भी इस्त्रायल का बरताव निषेधयुक्त है
ऐसा विश्व के ज्येष्ठ विचारवंत नॉम चोम्स्की, विश्वप्रसिध्द इतिहासकार युवाल नोह हरारे, जो स्वयं ज्यू है,
उन्होंने कहा है l अनेक लोगोंने नेतान्याहू को हिटलर ने की हुई हत्याओं की याद दिलाई है l विश्व के अनेक
ज्यू धर्मगुरु, विचारवंत, साहित्यिक, कलाकार और ज्यू जनता ने भी नेतान्याहू का निषेध किया है l हमास
और इस्त्रायली लष्कर अपनी-अपनी कृतियों के कारण नैतिकदृष्टि से एक स्तर पर है l बीच के कुछ
कालावधि में यह संघर्ष शांति के मार्ग की ओर चला जाएगा ऐसी आशा निर्माण हुई थी लेकिन दोनों ओर
की धार्मिक कट्टरवादीयों ने उसे मिटटी में मिला दिया l
इस पार्श्वभूमि पर भारत, इस्त्रायल और पॅलेस्टाईन के संबंध कैसे यह देखना भी आवश्यक है l मूलतः
महात्मा गांधी, पंडित नेहरु और कांग्रेस ने हिटलर का हमेशा निषेध किया था l इस कालावधि में हिटलर से
प्रेरणा लेकर उसकी नाझी संघटना की शैली पर हिंदुओं की लष्करी संघटना खड़ी करने का निदिध्यास लेकर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस संघटना की स्थापना हुई l हिटलर उनका प्रेरणा-स्त्रोत रहा, आदर्श रहा और
आज भी है l १९४७ में गांधी-नेहरु ने पॅलेस्टाईन का समर्थन करके धर्म के आधार पर पॅलेस्टाईन के
विभाजन का विरोध किया l १७ सितंबर १९५० में भारत ने इस्त्रायल को मान्यता दी l इस्त्रायल को
मान्यता देनेवाला भारत आखिरी बगैर मुसलमान राष्ट्र था l १९६० से १९७० के दरमियान भारत ने हमेशा
पी.एल.ओ. और उनका राजकीय पक्ष ‘अल फताह’ के साथ संवाद स्थापित किया l १० जनवरी १९७५ में
भारत ने पी.एल.ओ. को पॅलेस्टिनो जनता का एकमेव प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी l पी.एल.ओ. का
कार्यालय दिल्ली में शुरू हुआ l ऐसी अनुमति देनेवाला भारत पहला बगैर अरब राष्ट्र l १९८० में इंदिरा
गांधी ने पॅलेस्टाईन के आंदोलन का जाहिर समर्थन किया l यासर अराफत ने दिल्ली को कई बार भेट दी l
१९८३ में ‘नाम’ परिषद ने पॅलेस्टाईन की पुष्टि l १९८४ में इंदिरा गांधी ने अराफत के मुख्यालय को भेट दी
l ३१ अक्तूबर १९८४ को जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तब उनके अंतिमसंस्कार के समय अराफत
उपस्थित थे तब अपने आसूँओं को रोक नहीं सके l राजीव गांधी ने नेहरु और इंदिराजी की नीति आगे जारी
रखी l १९८८ में भारत ने गाझा और वेस्ट बैंक के एकत्रित भूभाग को ‘स्टेट ऑफ़ पॅलेस्टाईन’ के रूप में
मान्यता दी l ‘रमल्ला’ शहर को इस राष्ट्र की राजधानी के रूप में मान्यता दी l १९६२ का चीन युध्द और
१९७१ के पाकिस्तान युध्द के वक्त अरब राष्ट्रों ने तटस्त नीति अपनाई l १९६२ और १९६५ के पाकिस्तान
के युध्द में इस्त्रायल ने हमें मदद की लेकिन अरब राष्ट्र विरोध में खड़ी हुई l अगस्त १९९० में इराक ने कुवेत
पर हमला किया l पी.एल.ओं ने सद्दाम हुसेन का समर्थन किया l इसी दरमियान रशिया का विघटन हुआ l
जनवरी १९९२ में चीन ने इस्त्रायल के साथ राजनितिक संबंध स्थापित किए l १९ जनवरी १९९२ को
अराफत ने दिल्ली में नरसिंहराव से भेंट की l राव ने अराफत को इस्त्रायल के साथ भारत ने संबंध स्थापित
करने में ही उनकी भलाई है ऐसा समझाया l १९९९ के कारगील युध्द में इस्त्रायल ने भारत को हथियारों
की मदद की l बाजपेयी सरकार की ओर से २००० में जसवंतसिंह और अडवाणी ने इस्त्रायल को भेंट देकर
आ गए l वाजपेयी ने अपने जाहिर भाषण में – इस्त्रायल ने पॅलेस्टाईन की जो भूमि दबोची है वह गैरकानूनी
है और उसे पॅलेस्टाईन को वापस देनी चाहिए ऐसी भूमिका रखी l २०१७ में मोदी ने इस्त्रायल को भेंट दी
लेकिन पॅलेस्टाईन को भेंट देने की बजाय वे सौदी, इराण, कतार, और यु.ए.ई. को भेंट देकर अपने देश को
लौट आए l मई २०१७ में पॅलेस्टाईन के अध्यक्ष मोहम्मद अब्बास भारत को भेंट देकर चले गए l मोदी
सरकार ने उनका स्वागत किया l फरवरी २०१८ में मोदी ने इस्त्रायल की ओर न जाकर पॅलेस्टाईन और
वेस्ट बैंक को भेंट दी l हमास के हमले के बाद इस्त्रायल का समर्थन करके कुछ दिनों के बाद मोदी ने गाझा
की जनता को मदद भेज दी l पॅलेस्टाईन के प्रधानमंत्री मोहम्मद अब्बास को दूरभाष पर हमदर्दी जताई l
हमास और इस्त्रायल युध्द तुरंत रोका जाए गाझा की जनता को मानवता की दृष्टी से संरक्षण देना चाहिए
ऐसा यूनो में प्रस्ताव रखा गया उसकी १२० देशों ने पुष्टि दी और १४ देशों ने विरोध किया l ४५ देश
अनुपस्थित रहे l पुष्टि देनेवाले देशों में भारत है l मोदी का यह बरताव चालाकी का नहीं l मोदी हमेशा
अंतर्राष्ट्रीय संबंध बिगड़ते आ रहे है l क्यूंकि उनका इतिहास का अभ्यास नहीं है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय
राजनीति की समझ नहीं है l किसी की सलाह लेना उनकी अहंकारी वृत्ति को स्वीकृत नहीं l
इस्त्रायल की भूमि का क्षेत्रफल २२१४५ चौ.कि.मी. है l उनकी आबादी ९१ लाख ७४ हजार है l वेस्ट बैंक
का क्षेत्रफल ५८६० चौ.कि.मी. है और वहाँ २७ लाख४८ हजार पॅलेस्टीनी और ६ लाख ७० हजार
इस्त्रायली लोग हैं l नेतान्याहू ने निरंतर रूप से इस्त्रायली ज्यू लोगों की बस्तियों की वेस्ट बैंक में वृध्दि की है
l गाझा का क्षेत्रफल है केवल ३६५ चौ.कि.मी. और जनसंख्या है २३ लाख l विश्व की सब से गाढ़ी आबादी
वाला यह भूभाग बन गया है l इस इलाके में केवल ५% पानी पीने योग्य है l ४५% जनता बेरोजगार है l
इस्त्रायल द्वारा सालों साल नाकाबंदी करने से सभी मूलभूत सुविधाओं से यह इलाका वंचित रहा है l अब
इस इलाके की जीवनावश्यक चीजों की रसद भी तोड़ दी गई है l गाझा की बस्तियाँ एवं अस्पतालों पर
हवाई हमले से बम वर्षा करके उन्हें ध्वस्त किया जा रहा है l गाझा के २३ लाख निवासियों को एक कोने में
ढकेल दिया गया है l इतनी बडी मात्रा में यह जनता निर्वासित छावनीयों में डरावनी रूप में रह रही है l
अतः अगली कुछ कालावधि में अन्न, पानी का अकाल, बीमारियों की महामारी, उपचारों का अभाव आदि
कारणों से अनेक लोगों की मृत्यु संभव है l इसकी जिम्मेदारी इस्त्रायल नहीं लेगा l
हमास ने इस्त्रायल पर हमला किया और भारत के हिंदुत्ववादी बड़े आवेश से इस्त्रायल के समर्थन में खड़े हो
गए l ज्यूं की हत्या करनेवाले हिटलर के ये प्रशंसक आज ज्यूं की पुष्टि कर रहे हैं l क्युंकी उन्हें भारत के
मुसलमानों के विरोध में इस घटना के आधार पर भड़काना है l हमास मुस्लिम संघटना होने के कारण इस
घटना का उपयोग मुस्लिम द्वेष की राजनीति हेतु करने का यह प्रयास है l धधकते हुए मणिपूर के बारे में कई
सप्ताहों बाद कुछ पल भाष्य करनेवाले और प्रत्यक्षरूप में वहाँ न जानेवाले मोदी ने तुरंत हमास का निषेध
किया और इस्त्रायल को समर्थन दिया l मोदी ने इस्त्रायल की एक कंपनी से ‘पेगासस’ नामक स्पायवेअर
खरीद लिया था l विरोधकों के इल्जाम के अनुसार अपने अनेक विरोधकों पर नजर रखने के लिए उसका
उपयोग किया l अनेक वर्षों से इस बात पर समतोल भूमिका अपनानेवाले भारत ने अपनी भूमिका पूरी
तरह से बदल दी ऐसा मत अमेरिकन विचारवंत मायकेल कुगेलमन ने व्यक्त किया है l हिंदुत्ववादी और
झिओनिस्ट इन दोनों में बहुत समानता है l दोनों भी धार्मिक कट्टरतावादी, एकाधिकारशाही का आकर्षण,
धर्म के छात्र के नीचे हुक्मशाही का नेतृत्व और मुस्लिम द्वेष ये दोनों में समान धागे है l गोध्रा हत्याकांड के
बाद हुए दंगे सभी हिंदुत्ववादीयों को न्याय के रूप में प्रतीत हुए l हमास के हमले के बाद इस्त्रायल ने
गाझापट्टी में सामान्य जनता का जो वंशविच्छेद किया है वह ज्यू लोगों को न्याय लगता है l आपने हमारे
एक जान ली तो हम आपकी दस की जान लेंगे यह मानसिकता है l हिंसा का उत्तर कई गुना प्रतिहिंसा करके
देने की यह मानसिकता हिंसा का दृष्टचक्र निरंतर जारी रखती है इसे नहीं भूलना चाहिए l नक्षलवादियों
की हिंसा का निषेध करना, बाद में महात्मा गांधी की अहिंसा का मजाक उडाना, लेकिन उनकी हत्यारोंका
गौरविकरण करना और हिंसा का उत्तर अधिक हिंसा से देना ऐसी हिंदुत्ववादीयों की पारस्पारिक फरेबी
मानसिकता है l
अमेरिका और इंग्लैंड की इस संघर्ष बारे में भूमिका तो आलोचन की पात्र है l राष्ट्रध्वज जो बायडेन सभी
संकेत दूर करके तुरंत युध्दग्रस्त इस्त्रायल को भेंट देने के इए चले गए इस बात पर अमेरिकन जनता नाराजहै l अमेरिका तो युक्रेन और अब इस्त्रायल का युध्द जारी रहे इसलिए अमेरिकन जनता के अरबों रुपयों को
बरबाद कर रही है l इन देशों का वहाँ का सत्ताकारण और अर्थकारण का शास्त्रात्र उद्योग से आर्मामेंट
मॅन्युफॅक्चरिंग लॉबी से साथ घना संबंध है l
मोझेस ने इस्त्रायली समाज को मिलनेवाले आशीर्वाद और शाप का भविष्य बताकर रखी थी ऐसा कहा
जाता है l तनख में उन्होंने लिखकर रखा था की – अगर आपने इश्वर की आज्ञाओं का पालन किया तो ईश्वर
के आपको आशीर्वाद मिलेंगे और पालन नहीं किया तो शाप मिलेंगे l बहुत दूर के लोग आप पर राज करेंगे l
उन्हें तुम्हारे छोटे बच्चे ओर वृध्द लोगों के प्रति आदर नहीं रहेगा l वे तुम्हारे शहर ध्वस्त करेंगे l जो भूमि
आपको मिलनेवाली है उसमें से आपको भगा दिया जाएगा l ईश्वर आपको पूरे विश्व में फ़ैल देगा l इन देशों
में आपको आश्रय नहीं मिलेगा l ईश्वर आपके सम्मुख चिंता, आँखों में भूमि की प्रतीक्षा और मन में निराशा
देगा l लेकिन अंत में आपकी उसके मन में दया उत्पन्न होगी l वह आपको इकठ्ठा करेगा और वापस लाएगा l
सैकड़ों वर्ष इस्त्रायली इस भूमि में रहे l लेकिन उन्हें उनका राजा नसीब ना हुआ ना जेरुसलेम l इस्त्रायल पर
ज्यादातर अन्य लोगों का ही राज रहा l इ.स.पूर्व १००० में उन्हें पहलीबार उनका राजा मिल गया l राजा
डेविड और उनके राज्य की राजधानी मिल गई जेरुसलेम l लेकिन इस्त्रायली समाज को अपना राज्य छोड़ना
पड़ा पूरे विश्व में भटकना पड़ा l उपेक्षा एवं अत्याचार का स्वामी बनना पड़ा l कुछ हजारों वर्षों के बाद यह
समाज लौट आया और एकत्रित हुआ l पूरी ताकत से अपना देश खड़ा किया, लेकिन उनके कुछ इलाके पर
अन्य किसी का हक है यह उन्होंने स्वीकृत नहीं किया l
इतिहास से किसी भी प्रकारकी सबक न लेते हुए ज्यू लोग फिर से गलत राह पर चल रहे हैं l यह मार्ग उन्हें
फिर से विश्व के गुस्से का कारण बन सकता है l शुरू में हमास का पूरे विश्व ने कड़ा निषेध किया लेकिन अब
विश्व इस्त्रायल के विरोध में खड़ा हो रहा है l विश्व में ज्यू द्वेष फिर से शुरू हुआ तो किसी को कुछ महसूस
नहीं होगा l इलोन मस्क ने ज्यूं के विरोध में ट्विट किया है l विश्व ने इस घटना से ज्यू द्वेष की ओर पधारना
अविवेक होगा l एक सत्ताभिरू, हेकट और भ्रष्ट नेता के कारण दुश्मन का हमला हो रहा है इसका फायदा
उठाकर जनता का विरोध रहेनेवाला यह नेता शत्रू के निष्पाप जनता का नि:पात करके जननायक होना
चाहता है l इस्त्रायली ज्यू समाज प्रतिगामी, अविवेकी और धर्मांध नहीं है l यह समाज अत्यंत आधुनिक और
पुरोगामी है l वह नेतान्याहू की कृति के विरुध्द में खड़ा होने लगा है l हमास ने ओलीस रखे हुए करीबन
२५० इस्त्रायली नागरिकों के बारे में हमास से समझौता करने के बजाय नेतान्याहू ने अपने ही नागरिकों के
जान की परवाह न करते हुए पूरी गझापट्टी ध्वस्त करके वहाँ की जनता का हत्याकांड आरंभ किया l
हिरोशिमा पर अमेरिका ने जो परमाणूबम गिराए थे उसकी दुगनी क्षमता के बम इस्त्रायल ने गाझा पर
गिराए है l लहुलहान इतिहास की परंपरा अर्थात कड़ी जारी है l शापित भूमि एवं शापित धर्म, शाप से मुक्त
होने के लिए तैयार नहीं यह रुकना चाहिए l हमास का पूरी तरह से खातमा करना है इस हेतु हमास
गाझापट्टी में जिस इलाकों पर हमला कर रहा है वह इलाका ही ध्वस्त करना है इस बात में होशियारी नहीं
है l साथ ही जिसे हिस्से की स्वतंत्रता हम माँग रहे हैं, जिस जनता के लिए माँग रहे हैं उसकी हत्या न होने
देने में ही भलाई है l इससे मूलतः तेजी से बहनेवाली जख्म और अधिक गहरी होगी l गाझापट्टी की जनता
मृत्यु जैसी हालत में जी रही है l वेस्ट बैंक के पॅलेस्टीनी नेताओं तथा जनता ने हमास को काबू में रखने के
लिए आगे आना चाहिए l युध्दखोर अमेरिका एवं इंग्लैंड ने इस्त्रायल को रसद देना रोक देनी चाहिए l दूसरा
मुद्दा – इस्त्रायल की जनता ने नेतान्याहू को पदच्चुत होने के लिए कहकर शासन को तुरंत लष्करी कार्रवाई
रोक देने के लिए मजबूर करना चाहिए और पॅलेस्टीनी जनता का गाझा और वेस्ट बैंक का हक स्वीकृत ना चाहिए l यह पॅलेस्टाईन गाझा तथा वेस्ट बैंक ऐसे दो विभागों में विभाजित रहेगा l शायद इन दो
हिस्सों का कब्जा दो अलग-अलग पॅलेस्टीनी संघटनाओं की ओर रहेगा l शायद ऐसा हुआ तो यह भी घातक
साबित होगा l पॅलेस्टीनी समाज ज्यादातर ज्यू हैं फिर भी उसमें ख्रिश्चन एवं मुस्लिम भी अल्पसंख्यांक के
रुप में सम्मिलित है l पॅलेस्टाईन कट्टर इस्लामी राष्ट्र बनने का धोखा है l विदेशी पुरोगामित्व अपनानेवाला
प्रगत इस्त्रायली समाज कट्टर ज्यू राष्ट्र बनने का धोखा है और अगर ऐसा हुआ तो विश्व की दृष्टी से वह बुरा
होगा l
पॅलेस्टाईन को स्वतंत्रता देना यह केवल एक ही मार्ग है मोझेस के शाप से मुक्त होने का l लेकिन इस मुक्ति से
निर्माण होनेवाली दोनों राष्ट्र धार्मिक कट्टरपंथीय लोगों के हाथों में जाकर नए शाप की शुरुआत तो नहीं
होगी यह भी देखना पड़ेगा l
पुरोगामी जनगर्जना
संपादकीय,