✍🏼अमित सिंह परिहार
शीघ्र ही स्थानीय निकाय चुनाव की घोषणा हो सकती है,सभी राजनीतिक दल व उनके महत्वकांक्षी कार्यकर्ता टिकिट पाने की जद्दोजहद में लगे है सभी अपनी जीत के समीकरण टिकिट दाताओ के सामने रख उन्हें प्रभावित कर रहे है तो कुछ अपने आकाओं के भरोसे पर बेफिक्र है। राजनीतिक दल जिताऊ उम्मीदवार पर ही दांव लगाने के पक्ष में दिख रहे है,भले ही उन्हें उनके निर्धारित मापदंड बदलना पड़े ।
पर सभी इस बात से लापरवाह है कि उम्मीदवार ऐसा हो जो आम जनता के सुख दुख में खड़ा हो सके , संवेदनशील हो सभी को सत्ता चाहिए वो ही प्राथमिकता बन गई है।आम मतदाता चुनाव बाद ठगा सा महसूस करता है ,जो जीत जाते है वे इतना ऊपर उठ जाते है कि उन्हें नीचे खड़े आमजन दिखाई नही देते । यही बात है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र की जनता से दूरी बना कर स्वार्थ सिद्धि में लग जाते है और जनता का विश्वास खो देते है । जमीन से जुड़े जनप्रति विलुप्त प्राय से हो गए है सत्ता की चकाचौन्ध में अंधे हो चुके जनप्रतिनिधि आम जनता का दुख दर्द नही देख पाते वे केवल धृतराष्ट्र के समान मीठी मीठी बातें भर करते है ।
हमारे देश की जनता की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि वे भूलती बड़ी तेजी से है।उसका परिणाम ये होता है कि वे पुनः अपने सेवक के स्थान पर राजा चुन लेते है । इस देश का दुर्भाग्य है कि धूर्त व चालक लोग जनता का भावनात्मक दोहन कर सत्ता का परम सुख भोगते है । देश के समग्र विकास के लिए जरूरी हो गया है कि जनता जागरूक हो कर उन्हें ही चुने जो जमीन से जुड़ा हो दुखसुख में साथ दे , वंशवाद को सिरे से नकारना चाहिए।स्थानीय निकाय चुनाव में सोच समझ कर ठोक बजा कर ही जनप्रतिनिधि चुने वरना आज जो सायकल पर आपके पास आ रहा है जितने के बाद लक्झरी कार में दिखाई देगा आपसे दूर जाते हुए । मतदान महादान है जो लोकतंत्र की सुदृढ़ नीव है कृपया उसे कमजोर न होने दे जहाँ लोकतंत्र कमजोर हुआ आप पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा
अतः वही चुने जो जीत कर भी जनसेवक ही बना रहे और जो सदा आपकी नज़रो में हो और उसकी नज़र भी आपके सुख दुख पर हो ।