सोनी तिवारी, वाराणसी
पौराणिक मान्यता के अनुसार स्वर्गलोक मे देहधारी देवी, देवताओं का वास है. इनका राजा इन्द्र और पुरोहित बृहस्पति है।
इसी प्रकार पाताल लोक मे देहधारी चुड़ैलों, राक्षसों का वास है जिनका गुरू शुक्राचार्य है।
राक्षस लोग स्वर्ग तथा इन्द्राणी (शची) को प्राप्त करने के लिए तपस्या कर भगवान शिव से वरदान मांग लेते हैं। पश्चात आकाश मे देवासुर संग्राम होता है. तब राक्षस लोग देवताओं को पराजित कर स्वर्ग और शची को प्राप्त कर देवताओं को भगा देते हैं.
देवता रोते गिड़गिड़ाते विष्णु के पास जाकर उनसे प्रार्थना करते है।विष्णु उन्हे आश्वस्त करते है और अवतार लेकर राक्षसों का संहार कर स्वर्ग एवं शची देवताओं को दे देते हैं।
यह भी कहा गया है कि जो इस कथा को सुनेगा उसे स्वर्ग और जो नही सुनेगा वह रौरव नामक नरक को प्राप्त होगा।
पुराणों मे नरक की कई केटेगरी सहित नीरसागर, दधिसागर, घृतसागर आदि का भी वर्णन है। इस तरह की अनेकानेक गप्पबाजी पुराणों मे भरी पड़ी है। पर वास्तविकता क्या है?
आइए देखते हैं :
इन्द्रस्य नु वीर्य्याणि प्र वोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री।
अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम्।।
अहन्नहिं पर्वते शिश्रियाणं त्वस्टास्मै वज्रं स्वर्य्यं ततक्ष।
वाश्रा इव धेनवः स्यन्दमाना अञ्जः समुद्रमव जग्मुरापः।।
~ऋग्वेद (मं०१/सूक्त३२/मंत्र१,२)
यह इन्द्र और त्वष्टा राक्षसी के पुत्र वृत्रासुर की कथा का विवेचन है।वृत्रासुर ने देवराज इन्द्र को निगल लिया. तब सब देवता विष्णु की ओर भागे। विष्णु ने वृत्रासुर के मारने का उपाय बताया :
मै समुद्र के फेन मे प्रविष्ठ हो जाऊँगा तुम लोग उस फेन को उठाकर वृत्रासुर के उपर फेक देना वह मर जाएगा।
जबकि उपरोक्त मंत्र का अभिप्राय यह है :
इन्द्र अर्थात सूर्य अपनी किरणों से वृत्र अर्थात् मेघ को मारता है। मेघ मर कर जलस्वरूप शरीर को पृथिवी पर फैलाता है। इस जल से सम्पूर्ण नदियाँ पूर्ण होकर समुद्र मे मिल जाती है। फिर वही मेघ सूर्य के ताप से वाष्पित होकर मेघमंडल का आश्रय लेता है।
पुनः सूर्य उसे अपनी किरणों से मारकर जलरूप वृष्टि से समुद्र मे गिरा देता है। इस प्रकार प्रकृति की क्रिया प्रतिक्रिया हर क्षण Automatic हो रही है।
ऐसी तमाम कथाओं जिन्हे देवासुर संग्राम का नाम पुराणकारो ने दिया है वहाँ न कोई स्वर्ग है न नरक।
वैज्ञानिकता को समझे विना जो कथा कहानियों का निर्माण हुआ आज आमजन के मुक्ति का तथाकथित मार्ग बन गया. यह अज्ञानयुक्त होने के कारण मानव के धार्मिक शोषण का माध्यम बन गया है.