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अदालतों में स्वीकृत पदों से 21 प्रतिशत कम जजों की तैनाती,न्यायाधीशों के सम्मेलन में उठे अहम मुद्दे

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न्यायाधीशों के भोपाल में हुए दो दिवसीय सम्मेलन में जजों की कमी पर चिंता जताई गई। न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ने की बड़ी वजह हाई कोर्टों से लेकर जिला व अधीनस्थ न्यायालयों में जजों की संख्या स्वीकृत पदों से बहुत कम होने को माना गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 11 दिसंबर 23 तक स्वीकृत पदों की तुलना में देश में 21 प्रतिशत कम जज हैं।

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 11 दिसंबर 23 तक स्वीकृत पदों की तुलना में देश में 21 प्रतिशत कम जज हैं। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 1247 और गुजरात में 545 जजों की कमी है। रिक्तियों के मामले में तीसरे नंबर पर बिहार, फिर तमिलनाडु और पांचवें स्थान पर मध्य प्रदेश है। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के हाई कोर्टों में 324 पद रिक्त हैं।

विधि एवं न्याय मंत्रालय के राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के अनुसार मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में 4.47 लाख और जिला व अधीनस्थ न्यायालयों में 20 लाख से अधिक प्रकरण लंबित हैं। इसमें दो लाख, 69 हजार सिविल और एक लाख, 77 हजार क्रिमिनल केस हैं। प्रदेश के जिला व अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित 20 लाख 12 हजार मामलों में से 16 लाख 14 हजार क्रिमिनल और बाकी सिविल मामले हैं।

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