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इदरीश मियाँ की मन्नत

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“हे रामजी, हमके हज करवा दो !”

गोपाल राठी पिपरिया की प्रस्तुति

कश्यप किशोर मिश्र

सन उन्यासी की रामनवमी थी, असवनपार के इदरीश मियाँ के इक्के से, हम दोहरीघाट जा रहे थे, पटना चौराहे से आगे सरयू का पुल शुरू होता था, पुल के बीच पहुँच इदरीश मियाँ नें इक्का रोक दिया और अपनें कुर्ते से दो तीन सिक्के निकाले, एक दो पैसे का सिक्का हाथ में ले, सरजू मईया को देखते आँखें मूँद मन्नत माँगते कहा “हे रामजी, हमके हज करवा दो !” और सिक्का सरजू मईया में उछाल दिया ।

फिर एक सिक्का, एक पैसे का, मुझे देते हुए कहा, बाबू लो तूहहू चढ़ा दो, मेरे लिए वह एक पैसे का सिक्का, एक चॉकलेट था, जिसे पानी में मै खुद तो कभी नहीं फेंकता ।

मैंने इक्के पर बैठे, अपनें बाबा की तरफ देखा, बाबा के चेहरे पर असमंजस के भाव थे, अर्थात उनकी निगाहों में मुझे सहमति नहीं दिखाई दी, सहमति नहीं अर्थात वर्जना ! हमनें बचपन से यही सीखा था, बाबा की बरज रही भाव मुद्रा से मैं एक पल को ठिठक गया, एक कारण हरेक सिक्के से जुड़ी हमारी चॉकलेट भी यकीनन रही होगी ।

बाबा नें पूछा “इसको सिक्का फेंकने को क्यों दे रहे हो, इदरीश ?” इदरीश मियाँ नें कहा “मनेजर साहब, लईकन की माँगी मुराद पूरी हो जाती है, मन के सच्चे होते हैं, न ! हमारे मन में तो पाप भरा होता है ।”

उस लड़कपन में भी, मेरा मन भींग गया, मैंने दुबारा बाबा की तरफ देखा भी नहीं और “हे सरजू मईया, हे राम जी बाबा को हज करवा दो” कहते सिक्का उछाल दिया ।

फिर मैंने पाकिट टटोली, गाँव से चलते विदाई में खूब सारे सिक्के मिले थे, उनमें से एक सिक्का निकाला और “ई हमारी तरफ से है” कहते उसे भी सरयू में उछाल दिया । मैंने चोर नजरों से बाबा को देखा “बाबा के चेहरे पर खिलखिलाहट नाच रही थी ।”

करीब दो बरस बाद, हम गाँव लौटे। सड़क पर लेनें गगहा में केवल की बैलगाड़ी आई हुई थी, राह में ईदरीश मियाँ की चर्चा चली, केवल नें कहा “ऊ तो साल भर हुआ मर गए, घरवा भी बिला गया ।”

बाबा नें पूछा “हज गए की, नहीं ?”
केवल नें भारी मन से बताया ” कहाँ कर पाए, रिरिक रिरिक के मर गए, रहा होगा कोई पाप, जो जनम भर की उनकी साध, साध ही रही ।”

मैंने देखा, बाबा सहित मेरे पूरे परिवार की कोरे गीली थीं । यह याद करते हमेशा ही मेरा मन भी भींग जाता है, जी करता है, वो पल फिर लौट आए और अपनें पाकिट के सारे सिक्के सरजू मईया में उछाल दूँ और पूरे मन से, पूरी साध से कहूँ “रामजी, ईदरीश बाबा को हज करवा दो ।”


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