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जब- जब उन्माद की राजनीति को धर्म के रूप में विज्ञापित किया गया, तब-तब उसके दुष्परिणाम भोगे गए

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संजीव शुक्ल

जब- जब उन्माद की राजनीति को धर्म के रूप में विज्ञापित किया गया, तब-तब उसके दुष्परिणाम भोगे गए। मूढ़ताएं अट्टहास करती हैं और सामाजिक विखंडन का ताना बाना बुनती हैं। ऐसे समाज में लोग अपनी मूर्खताओं पर गर्व और रूढ़ियों का महिमामंडन करते हुए पाए जाते हैं। धर्म का मूल तत्त्व तो गैर हाजिर ही होता है, लेकिन आडंबर अपने चरम पर होता है। ऐसे में प्रतिगामी शक्तियाँ समाज के सौहार्द को खत्म कर अराजकता की स्थिति पैदा कर देती हैं और वे अलोकतांत्रिक समाज की निर्मित करती हैं।

पाकिस्तान इसका गवाह रहा है। धर्म के इस्तेमाल के मामले में पाकिस्तान के बारे में ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं है। वहां के हुक्मरानों ने सत्ता की खातिर लोगों में खूब घृणा भरी। हुक्मरान पब्लिक का ध्यान भटकाने के लिए घृणा का इस्तेमाल करते हैं, ताकि उनके निर्णयों के औचित्य बहस से परे रहें और सत्ता सुरक्षित रहे। यह सर्वकालिक प्रवृत्ति है। तानाशाही शक्तियां तो अंध आज्ञापालक समाज चाहती हैं। उनकी पसंद तो भेड़े होती हैं, जो सिर्फ अनुकरण में विश्वास रखें। ये मानव भेड़े होती हैं, जो आंखमूंदकर अपने नेता के पीछे चलती हैं। एक बार पाकिस्तान की मकबूल शायरा भारत आईं, पर जब उन्होंने यहां भी वही हालात देखे तो बहुत मायूस हुईं। उन्होंने भगतसिंह, सुभाष, नेहरू और गांधी के सपनों के भारत की कल्पना की थी। उन्होंने एक नज़्म लिखी जिसमें जाहिलियत से भरे लोगों को खूब लताड़ा। वे पाकिस्तान के भी शासकों की आंखों में हमेशा खटकती रहीं। सच कहने का खामियाजा भी खूब भुगता। सच कहने वाले हर समाज में रहते हैं।
सौहार्द की इच्छा से जन्मी यह नज़्म फहमीदा साहिबा की बेबाक बयानी का दस्तावेज है।

देखिए यह नज़्म……….

“तुम बिल्कुल हम जैसे निकले

अब तक कहाँ छुपे थे भाई

वो मूरखता वो घामड़-पन

जिस में हम ने सदी गँवाई

आख़िर पहुँची द्वार तुहारे

अरे बधाई बहुत बधाई

प्रीत धर्म का नाच रहा है

क़ाएम हिन्दू राज करोगे

सारे उल्टे काज करोगे

अपना चमन ताराज करोगे

तुम भी बैठे करोगे सोचा

पूरी है वैसी तय्यारी

कौन है हिन्दू कौन नहीं है

तुम भी करोगे फ़तवा जारी

होगा कठिन यहाँ भी जीना

दाँतों आ जाएगा पसीना

जैसी-तैसी कटा करेगी

यहाँ भी सब की साँस घुटेगी

भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा

अब जाहिल-पन के गुन गाना

आगे बढ़ा है ये मत देखो

वापस लाओ गया ज़माना

मश्क़ करो तुम आ जाएगा

उल्टे पाँव चलते जाना

ध्यान न दूजा मन में आए

बस पीछे ही नज़र जमाना

एक जाप सा करते जाओ

बारम-बार यही दोहराओ

कैसा वीर महान था भारत

कितना आली-शान था भारत

फिर तुम लोग पहुँच जाओगे

बस परलोक पहुँच जाओगे

हम तो हैं पहले से वहाँ पर

तुम भी समय निकालते रहना

अब जिस नर्क में जाओ वहाँ से

चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना” (फ़हमीदा रियाज़)

  • संजीव शुक्ल
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