आगामी लोकसभा चुनाव में राजद और जदयू की योजना 2015 के विधानसभा चुनाव के तर्ज पर भाजपा को जाति के खांचे में उलझा कर चित करने की थी। तब साथ-साथ चुनाव लड़े जदयू और राजद ने संघ प्रमुख मोहन भागवत के कथित आरक्षण विरोधी बयान के सहारे भाजपा की ओबीसी विरोधी छवि बना कर चुनावी मैदान मार लिया था। इस बार दोनों दलों ने पहले जाति जनगणना और बाद में आरक्षण का दायरा बढ़ा कर भाजपा को फिर से जाति के खांचे में उलझाने की रणनीति बनाई थी। हालांकि मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर उनके मंसूबों पर नकेल लगाने की कोशिश की है।
मंगलवार को अचानक जननायक कर्पुरी ठाकुर को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा के पीछे बड़े राजनीतिक निहितार्थ हैं। दिवंगत ठाकुर की गिनती ओबीसी और वंचित वर्ग के सबसे बड़े नेता की रही है। इस फैसले के कारण अब जदयू और राजद 2015 के विधानसभा चुनाव के पहले की तरह आगामी लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा को ओबीसी विरोधी साबित नहीं कर पाएगी।
मंडल-कमंडल का दोहरा वार
बिहार की राजनीति जाति के इर्दगिर्द घूमती रही है। साल 2015 के चुनाव में इसका स्वाद चख चुकी भाजपा ने इस पर पूरी तैयारी के साथ जदयू-राजद पर पहले कमंडल और इसके ठीक बाद मंडल अटैक किया है। पहले सोमवार को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। इसके अगले ही दिन ओबीसी के मसीहा माने जाने वाले दिवंगत कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च सम्मान देने की घोषणा की गई। दरअसल इस दोहरे वार के जरिये भाजपा की योजना हिंदुत्व के साथ सामाजिक न्याय के बीच संतुलन साधने की है।
कैसे बदलेगी हवा और फिजा?
दरअसल नीतीश के पाला बदलने के बाद भाजपा की योजना राज्य में नई सोशल इंजीनियरिंग की है। पार्टी दलित, अगड़ा और ओबीसी के बड़े हिस्से में पैठ बनाना चाहती है। दलित वर्ग में पैठ के लिए पार्टी ने जीतनराम मांझी, चिराग पासवान को साधा है। ओबीसी में नया नेतृत्व विकसित करने के साथ उपेंद्र कुशवााहा की पार्टी के साथ गठबंधन किया है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगड़ा, दलित (करीब 30 फीसदी) पर व्यापक प्रभाव और ओबीसी में पैठ मजबूत कर राज्य में राजग पुराना प्रदर्शन दोहरा सकता है।
पहले रक्षात्मक थी भाजपा
कर्पुरी ठाकुर को सर्वोच्च सम्मान दिए जाने के पहले भाजपा राज्य में सामाजिक न्याय के सवाल पर रक्षात्मक थी। जदयू-राजद-कांग्रेस बार बार पार्टी को केंद्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना नहीं कराने के लिए निशाना साध रहे थे। चूंकि बिहार में नीतीश सरकार जातिगत जनगणना के साथ ही इसके नतीजे के आधार पर आरक्षण का दायरा बढ़ा चुकी थी। ऐसे में भाजपा महागठबंधन के दलों पर जवाबी हमला नहीं बोल पा रही थी।