अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

मणिपुर:केंद्र एवं राज्य संवैधानिक दायित्व पर गैर जिम्मेदार

Share

सनत जैन

मणिपुर में 9 माह से अधिक हो चुके हैं। कुकी और मेतई समुदाय के बीच की आंतरिक अशांति अपने चरम पर है। अभी तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा 75 वर्षों के इतिहास में पहली बार संविधान के अनुच्छेद 355 का उपयोग करते हुए, मणिपुर को बाहय एवं आंतरिक अशांति से बचाने के लिए व्यवस्था अपने पास ले ली है। केंद्र सरकार द्वारा इसकी अधिकृत घोषणा को सार्वजनिक नहीं किया है। जिसके कारण मणिपुर में केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों ही काबिज है।

मणिपुर में जो अशांति फैली हुई है, उसके लिए संवैधानिक रूप से केन्द्र एवं राज्य जिम्मेदार है। जिस तरह सास बहू के झगड़े में पति की हालत बेचारगी की रहती है। ना वह पत्नी के पक्ष में बोल पाता है। नाही मां के पक्ष में बोल पाता है। कुछ इसी तरीके की स्थिति मणिपुर की बनी हुई है। पिछले कई महीनो से मणिपुर में मेतई और कुकी समुदाय के बीच में सशस्त्र संघर्ष हो रहा है। हाल ही में जब राहुल गांधी दोबारा भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर मणिपुर पहुंचे। उसके बाद केंद्र सरकार सजग हुई। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी मणिपुर पहुंचे। सर्व दलीय बैठक बुलाई गई। इस बैठक में इस बात का खुलासा हुआ, कि मणिपुर राज्य में अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार ने अधिकार ले रखे हैं। पिछले 75 वर्षों में इस तरह की स्थिति बनने पर केंद्र सरकार, राज्यपाल की रिपोर्ट पर राज्य सरकार को बर्खास्त कर 356 के तहत सारे अधिकार अपने पास ले लेती थी। मणिपुर में डबल इंजन की सरकार है।

राज्य के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह मेतई समुदाय से आते हैं। इन्हीं के कार्यकाल में मेतई और कुकी समुदाय के बीच में संघर्ष की शुरुआत हुई। जिसके कारण हिंसा भड़की, महिलाओं को नग्न करके घुमाया गया। सैकड़ो लोगों की वहां पर हत्या हो गई। दोनों ही पक्षों के उग्रवादी संगठनों द्वारा सेना और पुलिस के शस्त्र लूट लिए गए। दोनों ही पक्षों द्वारा एक दूसरे के ऊपर सशस्त्र हमला किया गया। 9 महीने बीत जाने के बाद भी मणिपुर में शांति स्थापित नहीं हो पा रही है। हजारों लोग विस्थापित शिवरों में रहने के लिए मजबूर हैं। छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं मणिपुर में बहुत परेशान है। उन्हें नियमित जीवन जीने के लिए भी खाद्य और पोषण सामग्री नहीं मिल पा रही है। भारी ठंड में यहां के नागरिक परेशान है।

मैतई समुदाय के एरिया में कुकी नागरिकों को जाना प्रतिबंधित और खतरे से खाली नहीं है। इसी तरीके से, कुकी समुदाय के एरिया में मैतईं समुदाय के नागरिक प्रवेश नहीं कर पाते हैं। अस्पताल हो, थाना हो, सरकारी कार्यालय हों, उस एरिया में केवल उसी समुदाय के लोग ही देखने को मिलते हैं। सरकारी अधिकारी भी अपने ड्राइवर बदलकर उस इलाके में जा पाते हैं। ऐसी स्थिति पिछले कई महीनो से बनी मणिपुर में हुई है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी मणिपुर पहुंचे, स्थिति का जायजा लिया। मुख्यमंत्री वीरेन सिंह के नेतृत्व में यह कहा गया, कुकी समुदाय के लोगों को मणिपुर से बाहर कर मिजोरम भेजा जाए। केंद्रीय गृह मंत्रालय के जो अधिकारी गए थे। वहां की स्थिति को देखकर उनके भी हाथ पैर फूले हुए हैं। जिस तरह की स्थिति मणिपुर की बन चुकी है। उसे संभाल पाना केंद्र सरकार के लिए तब तक संभव नहीं है, जब तक वहां शांति स्थापित होने के बाद राजनीतिक तौर पर निष्पक्षता के साथ, स्थिति के वास्तविक स्वरूप को पहचान कर उसका निराकरण करना है। इस स्थिति में यदि केंद्र और राज्य सरकार सोचती है, कि यदि वह पुलिस और सैन्य प्रशासन का उपयोग करके स्थिति को नियंत्रण में कर लेगी, तो यह संभव नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कहने लगे हैं, कि जिस तरीके की स्थिति मणिपुर की बन गई है। उसके बाद एक अलग राज्य के बिना स्थिति को नियंत्रित कर पाना संभव नहीं होगा।

मणिपुर की घटना का असर अब पूर्वोत्तर के राज्यों में तेजी के साथ दिखने लगी है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात है, आजाद भारत में पहली बार अनुच्छेद 355 का उपयोग कर केंद्र सरकार ने मणिपुर को बाहरी घुसपैठ/ आक्रमण और आंतरिक अशांति पर नियंत्रण के लिए सारे अधिकार अपने पास ले लिए हैं। उसके बाद भी केंद्र सरकार मणिपुर की घटनाओं और हिंसक वारदातों पर क्यों रोक नहीं लग पा रही है। इसको लेकर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो रहा है। मणिपुर की राज्यपाल आदिवासी हैं। केंद्र सरकार धारा 355 का उपयोग ना करके यदि 356 का उपयोग करती, तो राज्य सरकार को भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू करके स्थितियों को आसानी से नियंत्रण में ला सकती थी।

डबल इंजन की सरकार को बचाने के नाम पर मणिपुर में जो हिंसा हो रही है। उसके कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय जनता पार्टी को ही होने जा रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में इसकी तस्वीर उभर कर सामने आई है। पूर्वोत्तर राज्यों से अन्य देशों की सीमा लगी हुई है। उसके बाद भी केंद्र सरकार द्वारा यहां पर ठोस निर्णय नहीं लिए जाने के कारण देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। ऐसा सैन्य विशेषज्ञ मान रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में जिस तरह की अशांति है। वह सम्पूर्ण देश के लिये चिंता का विषय है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें