डॉ.अभिजित वैद्य
‘राम, कृष्ण एवं शिव ये देवता हिंदुस्तान के महान एवं परिपूर्ण सपने हैं l उदास गंभीरता के प्रतिक हैं l वे
अपने अपने राह पर मार्गस्थ हैं l राम सीमित जीवन का परमोत्कर्ष बिंदू, कृष्ण उन्मुक्त जीवन की सिध्दी तो
शिव असीमित व्यक्तित्व की संपन्नता है — मैं इतना ही कहूँगा की, हे भारतमाता – हमें शिव की बुध्दि, कृष्ण
का ह्रदय और राम का एकवचनत्व एवं कर्म शक्ति प्रदान करें l असीमित बुध्दि, उन्मुक्त ह्रदय और
मर्यादायुक्त जीवन से हमारा सृजन कर दे l’ यह किसी ढोंगी हिंदुत्ववादी ने नहीं अपितु समाजवादी
राजनीतीज्ञ डॉ. राममनोहर लोहियाजी ने लीखा है l डॉ. राममनोहर लोहिया समाजवादी विचारों के
शिखर थे और आज भी मानना पड़ेगा I ‘लोहिया – एक रसिक तापस’ इस लेख में पु.ल. देशपांडेजी लिखते
हैं — ‘भारतीयों की सांस्कृतिक विरासत ‘राम-कृष्ण-शिव’ की है और यह विशद करते हुए लोहियाजी का
समाजवाद बाधा निर्माण नहीं करता l क्योंकि उन्हें राम, कृष्ण एवं शिव इन तीन जीवनविषयक दृष्टिकोन
की विश्वात्मकता दिखाई देती है l आम सेक्युलरवादीयों को ये नाम हिंदू देवताओं के हैं ऐसा महसूस हुआ
होता और उनका जाहिर उच्चारण – रामा, शिवा, गोविंदा !’
हर देश का मूलतः प्राचीन कालसे कार्यरत इतिहास होता है l यह इतिहास; राजकीय, सामाजिक और उस
देश की भूमि में उसी समय उत्पन्न होनेवाले और प्रचलित धर्म या पंथ से संबंधित घटनाओं, कल्पनाओं तथा
सपनों से बना हुआ होता है l इसमें से कथा, कहानी, कविता-मिथ्या, परंपरा और संस्कृति के प्रवाह निर्माण
होते हैं l इसके कुछ प्रवाह समय की धारा में लुप्त होतें हैं l कुछ मार्गस्थ होते हैं, नए प्रवाह निर्माण होते हैं
और मुख्य प्रवाह में मिल जाते हैं l कुछ देशों में मुख्य प्रवाह किसी विशिष्ट धर्माचरण से जुड़ा रहता है l
इसका अर्थ उस देश में अन्य प्रवाह नहीं है ऐसा नहीं होता लेकिन इन सभी प्रवाहों को अपना अपना
अलगपन कायम रखते हुए मुख्य प्रवाह के साथ जाना पड़ता है l मुख्य धारा को इन छोटे धाराओं को अपने
बाहों में लेकर, उनका अस्तित्व कायम रखकर आगे चलना पड़ता है l अगर ऐसा हुआ तो वह देश विविधता
को समाविष्ट करके एकात्म रह जाता है l भारत इसका उत्कृष्ट उदहारण है l अमेरिका से जुड़नेवाला धागा
अवसर, सुबत्ता एवं स्वातंत्र्य है l देश का इतिहास का प्रवाह प्राचीन हो या अर्वाचीन – ये प्रवाह उस भूमि
के लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनते हैं l भरतखंड या भारत नामक भूमिका इतिहास तो हजारों वर्ष पुराना
है l इस भूमि के इतिहास का मुख्य प्रवाह वैदिक, सनातन या हिंदू धर्म का है अपितु इसमें बुध्द, जैन,
इस्लाम, इसाई, यहूदी, झोराष्ट्रीयन आदि धर्म और अनेक पंथोंकी विचारधारा के प्रवाह सम्मिलित हुए हैं l
विश्व में कहीं पर भी निर्माण न हुआ ऐसा नास्तिक विचारों का प्रवाह भी इसी भारत की भूमि में प्राचीन
काल में अस्तित्व में था l ऐसा होने पर भी असेतु हिमालय जैसे इस भूमि के जनमानस में ‘राम, कृष्ण एवं
शिव’ स्थापनापन्न है l ‘सत्य, शिव, सुंदर’ ईन तीन तत्वों से गहरा रिश्ता साबित करनेवाले ये तीन नाम है l
क्या यह इतिहास है ? क्या इसके कुछ सबुत है ? या ये सब झूठ है ? इससे यह श्रध्दा ह्रदय में अपनानेवाले
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लोगों का कुछ लेना-देना नहीं l इस देश में हजारों वर्षों से पहले वैदिक और कुछ शती पहले विदेशी भाषा
का नाम धारन किए हुए ‘हिंदू’ धर्म की सभी पुराणें, मिथकें इन तीनों देवताओं से छा गई है l बुध्दकाल में वे
कायम रही और बुध्द धर्म के मिथ्य में भी दिखाई दी l देश के कोने कोने में इन तीन देवताओं के हजारों
मंदिर थे, रहे और आज भी है l घर घर में उनके देवालय है l शिव का अर्थ महादेव, देवों का देव l आर्य
भारत में आने से पहले यहाँ के मूल निवासी अनार्यों का ईश्वर l यहाँ के लोगों के मन में उनका स्थान इतना
मजबूत था की आर्यों को भी उनका बड़प्पन नकार देना असंभव था l समुद्रमंथन से बाहर आया हुआ जहर
उसने इस भूमि के लिए प्राशन किया l ईश्वरों का गुरु, बृहस्पती की पत्नी, उसके ही शिष्य – इंद्र ने भगाकर
ली, तब बृहस्पती शंकर की ओर चला गया l शंकर ने उसे अपना सैन्य दिया l यह फ़ौज थी यक्ष, किन्नर,
दानवों की l ये सब इस भूमि के मूलनिवासी l राम ने सीता पर जिस तरह प्यार किया ठीक उसी तरह शिव
ने पार्वती पर किया l शिव योगी है, शमशान में रहनेवाला और असीम शक्ति का l तो कृष्ण भोगी – कहा
जाए तो योगी भी, पूरे सोलह कलाओं का, लेकिन मर्यादाहीन अवतार l युध्दभूमि पर विश्व का श्रेष्ठ
तत्त्वज्ञान गीता के माध्यम से कहनेवाला कृष्ण असत्य बोलता है l चरवाहों के बच्चों के साथ बन्सी बजाता है,
उनके साथ माखन चुराता है, गोपियों के साथ रासक्रीडा करता है और स्वयं विवाहित होने पर भी राधा के
साथ सच्चा प्यार करता है l धर्म के कानून एवं नीति उसे सिमित नहीं रख सकती l यह सब वह अपने स्वार्थ
के लिए नहीं करता, उसका प्रणय, प्रेम का असीम रूपक है l उसका असत्य, कुटिलता, फरेबी उसे जो
सत्प्रवृत्त प्रतीत होती है – उसके पीछे खड़े रहने की जिद्द है l राम इन दोनों से अलग है – फिर भी तीन
तत्त्वों में से एक तत्त्व है l
विदेशी राजसत्ता के समय भी राम-कृष्ण-शिव के नाम की श्रध्दा अभेद्य रही l थोड़ी अपवादात्मक स्थिति में
मंदिर भी अटूट रहीं l लेकिन विदेशियों की गुलामी से पहले ही यह देश अपनों ने ही धर्म के नाम पर लादी
हुई सामाजिक, राजकीय, आर्थिक एवं सांस्कृतिक गुलामी के बोझ के नीचे चला गया l वह विषमता, शोषण
तथा गुलामी का वाहक बन गया l चिकित्सक वृत्ति, बुध्दिवादी प्रवृत्ति नष्ट हुई l इससे विज्ञान अर्भक अवस्था
में ही मारा गया l धर्म श्रेष्ठत्त्वकी भावना वृध्दिंगत होकर धर्मांधता की ओर मार्गस्थ होने लगी l इस
धर्मांधता को जातीय श्रेष्ठत्त्व की प्रवृत्ति और मुख्यतः ब्राम्हणवाद का शाप लग गया l मनुस्मृति यह विकृत
ग्रंथ, धर्म बन गया l सच्चा धर्म पुराणों, रूढी-परंपराओं, कर्मकांड एवं पाषणों की मंदिरों के रूप में शेष रहता
गया l लोहिया जी ने अपने ‘शिल्प’ इस लेख में लिखा है की, ‘भारतीयों का धर्म जैसे ही उत्कर्षतक पहुँचने
लगा वैसे ही वह ज्यादातर सत्त्वहीन एवं चिंतनहीन होता गया l पाषाण जैसे सबसे भारी वस्तु पर भारत
का धर्म बडी मात्रा में कुरेदता जा रहा उसी समय चिंतन का खोखलापन अपितु बढ़ता जा रहा था l’
निर्जीव पत्थरों में कुरेदे हुए मदिरों के रूपों में शेष रहता चला धर्म, स्वतंत्रतापूर्व दशकों में ब्राम्हणवादी
राजनीति का साधन बनाया गया l मंदिर राजनीति का हथियार बन गया और राम प्रतिक l लेकिन जिस
राम के नाम पर पहले विध्वंस और अब निर्मिती की जा रही है, उस राम की भारतीयों के मन में हजारों वर्ष
साकार बनी रही प्रतिमा क्या है इस पर हमें ध्यान देना चाहिए l साथ ही धर्म के नाम पर निर्माण
करनेवाली राजनीति का प्रतिक बनने के लिए राम-कृष्ण-शिव इन त्रिकुट में से राम का चयन प्रतिक के रूप
में क्यों किया गया इस पर भी हमें गौर करना चाहिए l राम अधूरा, आठ कलाओं का अवतार, शूर्पनखा की
सुलभ भावना का अनादर करनेवाला, इतनाही नहीं अपितु उसे कडी सजा देनेवाला लक्ष्मण का पक्ष
लेनेवाला, साधारण धोबी ने सीता के चरित्र पर आशंका लेने पर उसे अग्निपरीक्षा देने के लिए कहनेवाला,
अग्निपरीक्षा उत्तिर्ण होने पर भी वह गर्भवती होने की परवाह न करते हुए उसे हमेशा के लिए वनवास में
भेजनेवाला, और वेद पठण करने पर शम्बूक का वध करनेवाला l लेकिन भारतीय जनमानस में राम की
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प्रतिमा मर्यादापुरषोत्तम है l राम के पास अमर्याद शक्ति है लेकिन वह धर्म-शास्त्रों के नीति-नियमों में
सिमित है l राम बलशाली है फिर भी धर्म के कानून में बाँधा हुआ है l सीता का त्याग या शम्बूक का वध ये
राम की कृतियाँ मनुस्मृति ने जो नियम नियत किए हैं उनका प्रमाणिक और कठोर पालन है l सीता के
सहवास में वनवास भी शीतल माननेवाला राम, उसके विरह से व्याकुल होकर रो पड़नेवाला राम, सीता
की रिहाई के सेतु बाँधकर लंकाधिपति रावण से भिडनेवाला और उसे पराभूत करनेवाला राम सीता का
त्याग करता है इसलिए की नीतिशास्त्र ने जो नियम दिए हैं उसका पालन करने हेतु ! राम की ये और अन्य
कर्म उसे शोभा देनेवाली नहीं है फिर भी उसके राज्य में साधारण में से साधारण नागरिक को वह उचित हो
या गलत, ‘हे राजन, तेरी पत्नी का चरित्र संदेहयुक्त है’ ऐसे पूछने का अधिकार था l शबरी के झूठे बेर
खानेवाला राम, आदिवासी हनुमान को सबसे प्रिय भक्त माननेवाला राम – वेद पठण का गुनाह करने पर
शुद्र शम्बूक का वध करता है धर्मशास्त्र नियमों का पालन करने के लिए l यहाँ भी उसकी प्रजा को – ‘हे
राजन, तेरे राज्य में धर्म के नियमों का पालन नहीं किया जाता’ यह पूछने का अधिकार है l राम, गुरु वसिष्ठ
ॠषि के आदेशानुसार यज्ञ में बाधा डालनेवाले राक्षसों का निर्दालन वैदिक धर्म का पालन करने हेतु करता
है l राम का ‘रामराज्य’ का अर्थ है स्वयं राजाने नीति और धर्मशास्त्र का नियम के अनुसार किया हुआ पालन
l शक्तिशाली होने पर भी नीति, कानून और सत्य की मर्यादा में स्वयं को बाँधकर रखनेवाला यह मर्यादा
पुरषोत्तम है l राम सत्यवचनी अर्थात सत्य बोलनेवाला और दिया हुआ वचन का पालन करनेवाला है l
भारत के जनमानस में राम का जो स्थान है वह राम इस शब्द में समावेशक मूल्यों के कारण l उसे सत्ता की
अभिलाषा भी नहीं l सौतेली माँ को पिता ने दिया हुआ वचन टुटा न जाए इसलिए वह एक क्षण में
सिंहासन ठुकराकर चौदाह वर्षों का वनवास स्वीकृत करता है l भारतीय जनमानस में राम की जो प्रतिमा है
वह इन मूल्यों से अटूट रिश्ता बताती है l अतः महात्मा गांधीजी ने ‘राम’ उनके अध्यात्म का प्रतिक माना
था l उनके सपने का राम अर्थात सत्य और रामराज्य का अर्थ सत्य का राज l “रघुपति राघव राजाराम,
पतितपावन सीताराम || ईश्वर अल्लाह तेरो नाम; सबको सन्मति दे भगवान” यह भजन उनके जीवन की
धून थी l नथुराम ने सिने पर दागी हुई गोलियाँ झेलकर यह भूमि छोड़ते समय उनके मुख से केवल इतनेही
शब्द निकले, ‘हे राम’!
भारतीयों के ह्रदय में और होठों पर राम की जो प्रतिमा है वह हिंदुत्ववादीयों की कृति या पेट में जो है उस
राम से कहीं भी मिलती जुलती नहीं l उनके राम की प्रतिमा नथुराम के पास जानेवाली है l हिंदुत्ववादियों
ने राम को अपना ब्राम्हण्यवादी राजनीति का प्रतिक और राममंदिर को साधन बनाने का सही कारण राम
इस भव्य कल्पना से संबंधित नीति, मर्यादा और सत्य ये मूल्य न होकर, मनुस्मृति का पालन करनेवाला और
पत्नि को घर से बाहर निकालनेवाला, शूद्र को शासन करनेवाला और यज्ञ संस्कृति का रक्षण करनेवाला राम
है l उनके विचारों में रामराज्य यह मनुराज्य है l वह तो ना सकल हिंदू का राज्य है और ना ही सच का
राज्य है l हिंदुत्ववादियों की राजनीति असत्य, छल, कपट, कुटिलनीती, द्वेष, विश्वासघात, जाति-धर्म का
अनबन और हिंसा पर आधारित है l
संघ का असली उद्देश्य मनुवाद पर आधारित हिंदुराष्ट्र है अपितु उस दिशा की ओर जाने के लिए उन्होंने तीन
उद्देश्य खुलेआम स्वीकृत की l संविधान का ३७० कलम रद्द करना, बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर
का निर्माण करना और समान नागरिक कानून अमल में लाना I ये तीनों उद्देश्य मुस्लिम द्वेष भड़काने के
साधन है l उनका पहला उद्देश्य सफल हुआ है l इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी ३७० कलम रद्द करने की
असंविधानिक पध्द्ती पर आक्षेप न लेते हुए, उसमें से भविष्य में भारतीय संघराज्य ध्वस्त किया जाएगा
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इस पर न सोचते हुए, अपनी मुहर लगाई l समान नागरी कानून अधिक जटिल प्रकरण होने के कारण
असुरी बहुमत से सफल किया जाएगा l राम मंदिर भारतीय मन की भावनिक और श्रध्दा की बात है l देश
के हर गाँव में राम का मंदिर और घर में देवालय में राम की मूर्ति होते हुए भी अयोध्या में राममंदिर
निर्माण करने का प्रयोजन ही क्या है ? यह मूल मुद्दा है l बाबरी मस्जिद राम के जन्म के स्थान पर जो मंदिर
है उस पर खड़ी है ऐसा मुद्दा उठाकर जनमत भड़काया गया l अतः मस्जिद गिराकर उस जगह पर मंदिर
निर्माण करना आम जनता को स्वाभाविक लगा l सर्वोच्च न्यायालय ने भी बाबरी मस्जिद गिराने की
उन्मादी प्रक्रिया, और उसके बाद हुआ हिंसाचार यह सब नजर अंदाज करके यह भारतियों की श्रध्दा की
बात है ऐसा कहकर उसपर अपनी मुहर लगाई l राममंदिर पूरा होने से पहले ही जनता की भावनाओं को
उन्माद की ओर ले जाने का कार्य अब नियोजन पध्द्ती से शुरू हुआ है l इस उन्माद के आधार पर पूरे देश में
एक उत्सव करने का नियोजन है l इस उन्माद में जनता महँगाई, बेरोजगारी, गरीबी इन मूलभूत
आवश्यकताओं को भूल जाएगी l स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, भ्रष्टाचार आदि प्रश्न विस्मृती में चले जायेंगे l
इस धार्मिक उन्माद के पीछे से संभव हुआ तो हिंदू राष्ट्र की अप्रत्यक्ष घोषणा, उसमें से ही अगर संभव हुआ
तो रथयात्रा जैसी देशव्यापी धार्मिक दंगा और उस पर स्वार होकर २०२४ के चुनाव में पाशवी बहुमत प्राप्त
किया जाएगा l ‘तीसरी बार चारसौ पार’ इस घोषणा से इस प्रयोग कि शुरुआत हो चुकी है l अगर यह
सफल हुआ तो हिंदू राष्ट्र का रास्ता खुला होगा l संविधान के स्थान पर मनुस्मृति की स्थापना होगी और
हिंदुत्ववादीयों का कार्य समाप्त हो चुका होगा l देश की मिथके बदलेगी l इतिहास की नई धारा शुरू होगी l
लेकिन इस इतिहास में ‘राजा तू गलती कर रहा है, हे राजन, तेरे राज्य में नियमों का, नीति का पालन नहीं
हो रहा’ यह कहने का अधिकार नहीं होगा l राजा की कार्यप्रणाली के बारे में पूछने का अधिकार नहीं रहेगा
l राजा की कार्यनीति के बारे में जो भी प्रश्न पूछेगा वह राजद्रोही साबित होगा l कोई भी व्यक्ति कितना भी
भ्रष्ट, गुनाहगार, खूनी हो और अगर वह राजा के तलवे चाटनेवाला हो तो उसे अभय दिया जाएगा l शायद
राम के बाद विष्णू के अवतार के रूप में मोदी के मंदिर निर्माण होंगे l लेकिन ऐसा होने का अर्थ है की सत्य,
सुंदर और शिव का भारतियों के मनमंदिरों में जो स्थान है वह ध्वस्त होने जैसा है इसे हमें भूलना नहीं
चाहिए l
संत कबीर ने सैंकडों वर्ष पूर्व जो कहा है वह आज भी सच है —
राम राम सब कोई कहै, ठग ठाकूर और चोर I
जिन्ही नाम से ध्रुव प्रल्हाद तरे, वह कूछ औरही और ||