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गांधी जी की पुण्यतिथि पर:कब होगी गांधी के राम की पुनर्वापसी ?

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सुसंस्कृति परिहार 

 दुनिया के सबसे बड़े अहिंसक क्रांति धर्मा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने धार्मिक तत्वों की कभी खोज नहीं की लेकिन अपने जीवन में उनकी अनुभूति अवश्य  थी इसलिए उनके विचारों में विरोधाभास मिलता है कहीं वे द्वैतवादी नजर आते हैं तो कहीं अद्वैतवादी वे अपने आप को वैष्णव कहते थे लेकिन राम नाम कीर्तन में उनका बड़ा विश्वास था।वे आशा लगाए और वेदना से पीड़ित व्यक्ति से कहते थे -‘राम नाम लो’  किसी को नींद ना आ रही हो तो कहते थे- ‘राम नाम जपो’ यहां तक की अंत में जाकर उनका विश्वास हो गया था कि रामधुन से शारीरिक और मानसिक व्याधियां ठीक हो जाती हैं ।पराकाष्ठा यह हुई कि हत्यारे की गोलियां खाकर जब वे गिरे तब भी ‘हे राम’  शब्द अनायास निकल पड़े। हालांकि कई सुधीजन  मानते हैं कि इसे अनायास नहीं मानना चाहिए –

जन्म-जन्म मुनि जतन कराहीं
अंत राम कहि आवत नाहीं

उन्होंने हरिजन के 28 अप्रैल 46 के अंक में राम को स्पष्ट करते हुए लिखा कि -‘वे देहधारी राम की पूजा नहीं करते निरंजन निराकार राम को मानते हैं जो दशरथ पुत्र और अयोध्या के राजा नहीं है वे सनातन है वे अजन्मा है या अद्वितीय है मैं उन्हीं की सहायता और वरदान मांगता हू’ गांधी के राम एक युग के राम नहीं है दशरथ पुत्र राम सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग से बड़े है ।वे किसी एक देश से नहीं है ,ना ही वे अयोध्या से जुड़े हैं।वजह यह है राम के संबंध में कोई ऐतिहासिक तथ्य अभी तक उपलब्ध नहीं है उनके चरित्र के जो अनेक रूप हमें भारत में तथा अन्य देशों में मिलते हैं वह कवियों की कल्पना और जीवन दृष्टि से निर्मित है। गांधी के राम में सांप्रदायिकता के विषाणु नहीं है इसीलिए सब मिलकर गाते थे –

रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम
सबको सन्मति दे भगवान।

इसीलिए प्रतीक के रूप में राम धर्मनिरपेक्ष शब्द बन गया वे राजा राम के निम्न कार्यों से भी प्रभावित थे अन्यान्य का विरोध ,सत्ता के बल पर अन्य लोगों के अधिकारों, राज्य संपत्ति और स्त्री का अपहरण करने वालों का विरोध, रावण को दंडित करना लंका में सुशासन की स्थापना ,पिछड़ी जातियों को बराबरी का दर्जा देना, सुख स्वास्थ्य की रक्षा कर एक न्याय प्रियता की भावना का सम्मान, अयोध्या किष्किंधा, लंका का आदि विजित राज्यों का त्याग आदि। कहने का आशय यह कि राजतंत्र में लोकतंत्र निश्चित तौर पर राम लाए थे।गांधी का आदर्श राज्य, ‘रामराज्य’, किसी विशेष धर्म से जुड़ा नहीं था, बल्कि नैतिक मूल्यों – न्याय, समानता और सच्चाई के बारे में था, जो सबसे हाशिए पर मौजूद लोगों को भी प्रदान किया जाता था।

यही राम अनादि काल से भारतीय जन के पूर्ण सपनों का मानदंड है। एक बार जिज्ञासु ने गांधी से पूछ लिया कहने को तो आप कहते हैं कि -‘आपका राम दशरथ का राम नहीं है फिर ऐसा क्यों है कि आपकी प्रार्थना में सीताराम और राजाराम बार-बार आते हैं ‘ इस प्रश्न के उत्तर में गांधी ने टिप्पणी की थी यह ठीक है कि रामधुन के क्रम में सीताराम और राजाराम शब्द बार-बार आते हैं लेकिन ध्यान देने की बात है कि राम से अधिक शक्तिशाली उनका नाम है तुलसीदास ने भी लिखा है –

कहहु कहाँ लगही नाम बड़ाई
राम न सकही राम गुण गाई

निश्चित ही यह तय है कि राम के नाम ने ही ज्यादातर प्रभावित किया और यही गांधी के अहिंसा आंदोलन की ऊर्जा था।गांधी के राम सौम्य हैं, उदार हैं, करुणानिधान है, नैतिक बल के स्रोत हैं, अभय की अमोघ शक्ति हैं और राजतंत्र में भीजितना संभव  हुआ लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने वाले हैं। गांधी खुद के लिए राम को अमोघ शक्ति का स्रोत मानते थे, जिसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी किया है  जिसे वह भारत में स्थापित करना चाहते थे लेकिन एक दौर 1992 से आया जब राम राज्य स्वार्थ साधने का नाम बन गया। राम के सर्वव्यापी रूप को खंडित किया गया तथा सद्भाव के प्रतीक राम अलगाव और टकराव के प्रतीक बन गए जब से जय श्री राम का उद्घोष हुआ तथा राम प्रत्यंचा टांगे नज़र आए।

राम संदेहास्पद हो गए।वे युद्ध को आतुर दिखे तब से राम के विरुद्ध कतिपय लोगों में अनासक्ति का भाव देखा जा रहा है।गरिमा और मर्यादा से ओत-प्रोत पुरुषोत्तम राम का वो लावण्यमयी रूप जो लोगों  के दिलो-दिमाग  में तुलसी और महात्मा गांधी ने बैठाया था वह तिरोहित  हो रहा है। राम जी की मर्यादाओं को सांप सूंघ गया है। मर्यादा तार तार करने वाले लोग राम की प्राण-प्रतिष्ठा करने लगे हैं।आज के दौर में राम चुनाव साधने का नाम बन गया है।राम के सर्वव्यापी रूप को खंडित किया गया  बापू के सद्भाव वाले राम अब अलगाव और टकराव के प्रतीक बन गए हैं। जब से अयोध्या में राम का आगमन हुआ है राम राम और जय श्री राम का जयकारा  बहुत है पर उन्हें  आत्मसात कर जीवन में उतारने की कोशिश करने वाले ना के बराबर हैं।

आज तो गांधी के सर्वव्यापी निराकार राम की वापसी की ज़रूरत थी क्योंकि हमारे देश में लोकतांत्रिक गणराज्य है इसमें रामराज्य तभी स्थापित  हो सकता है जब भारतीय जनमानस के सपने साकार हों जो सपने हमारे संविधान में बड़े ही विवेकपूर्ण तरीके से संजोए गए हैं।उसे पाकर ही गांधी के रामराज्य की स्थापना हो सकती है।राम के कतिपय राजनैतिक विचारों को हमारी  देशनीति में बहुत पहले से समाहित किया गया है। सामंती नज़रिए से नहीं बल्कि प्रजातांत्रिक तरीके से। महात्मा गांधी ने ये भी कहा था रामराज से मेरा अर्थ हिंदू राज्य से कतई नहीं है। इसके बरक्स राम लोगों के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक समाविष्ट है।राम भारतीयों के आदर्श हैं  उनके दिलों में बसते हैं यह गांधीजी के जीवन में देखा जा सकता है।कहा तो यह भी जाता है कि गांधी जी की आध्यात्मिकता व आत्मबल का आधार राम हैं। और राम जी पर आस्था के चलते ही गांधी जी जन जन के नेता बने।

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