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महिला वित्त मंत्री के अंतरिम बजट में  महिलाओं के हाथ वाक़ई क्या लगा?

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सोनिया यादव

देश की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी 2024 को लगातार छठा बजट पेश अपने नाम एक रिकॉर्ड दर्ज करवा चुकी हैं। हालांकि एक महिला वित्त मंत्री के पिटारे से महिलाओं के लिए कुछ खास निकला या नहीं, ये सवाल अभी भी बरकार है। क्योंकि नारी शक्ति को लेकर बजट में कई बड़ी बातें कही गई। लेकिन इन बातों का वास्तविक हासिल क्या है, इस पर संदेह ही है।

बता दें कि गुरुवार, एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करने के दौरान कहा था कि इस बजट में महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर रहेगा। उन्होंने अपने भाषण में तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने से लेकर महिलाओं को संसद में आरक्षण देने तक के कानून की बातें गिनाईं। उन्होंने पिछले 10 साल में 30 करोड़ मुद्रा ऋण योजना और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत महिलाओं को मिले 70% आवास का जिक्र भी किया। लखपति दीदी से लेकर आंगनबाड़ी आशा कार्यकर्ताओं की कई बातें हुईं, लेकिन इनके हाथ वाकई क्या लगा, ये अभी भी विशेषज्ञ समीक्षा ही कर रहे हैं।

महिलाओं से जुड़े बजट के बड़े ऐलान

आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनाने की योजना को ‘लखपति दीदी’ स्कीम का नाम दिया गया है। इसके तहत सरकार महिलाओं को इंटर्प्रोन्योरशिप इंडस्ट्री, एजुकेशन या दूसरी जरूरतों के लिए स्मॉल लोन भी दिए जाते हैं। इस अंतरिम बजट-2024 में ‘लखपति दीदी’ स्कीम के तहत 3 करोड़ महिलाओं को लखपति बनाने का लक्ष्य रखा गया है, ये टारगेट पहले 2 करोड़ था। वहीं इस स्कीम के तहत अब तक एक करोड़ महिलाएं लखपति बन चुकी हैं। ये स्कीम 15 अगस्त 2023 को लागू की गई थी।

कुछ पात्रता नियमों के साथ ही इस बजट में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को 5 लाख तक का फ्री इलाज देने की घोषणा की गई है। इसके अनुसार अब आयुष्मान भारत योजना के तहत सभी आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता को इसके दायरे में लाया जाएगा। इस योजना के तहत लाभार्थी के नाम आयुष्मान कार्ड जारी किया जाता है। इस कार्ड की मदद से स्कीम के तहत लिस्टेड सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में 5 लाख रुपए तक का मुफ्त में इलाज करवाया जा सकता है।

हर साल देश में करीब 1 लाख 25 हजार से अधिक महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की शिकार होती हैं। इससे मरने वालों की संख्या 77,000 से ऊपर है। इस ब़जट में सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए 9-14 साल की लड़कियों का मुफ्त टीकाकरण की बात कही गई है। भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बाद महिलाएं सबसे अधिक सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित होती हैं।

बजट में यू-विन प्लेटफॉर्म की बात भी हुई। जहां हर प्रेग्नेंट महिला का रजिस्ट्रेशन और वैक्सीनेशन किया जाएगा। यहां उनकी डिलीवरी रिकॉर्ड, हर नवजात शिशु के जन्म का रजिस्ट्रेशन और उनका टीकाकरण सभी का रिकॉर्ड रखा जाएगा। यू-विन कार्यक्रम को यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (UIP) को डिजिटल बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसे अभी सभी राज्यों में पायलट मोड में चलाया जा रहा है।

मिशन शक्ति के पार्ट सक्षम आंगनबाड़ी योजना और पोषण 2.0, के तहत भारत की आंगनबाड़ियों को अपग्रेड करने की बात भी ब़जट में सामने आई है। इसमें महिलाओं और बच्चों को सार्वजनिक सेवाएं दी जाती है। इस योजना में आंगनबाड़ी केंद्रों को डिजिटाइज किया जाना है। ई-आंगनबाड़ी से सभी आंगनबाड़ी केंद्रों के प्रदर्शन और विकास को ट्रैक किया जाएगा। वहीं पोषण 2.0 यानी ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन’ के तहत 6 साल तक के बच्चों किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण की स्थिति को बेहतर करने की बात भी हुई है। इस स्कीम का उद्देश्य शारीरिक विकास में बाधा, पोषण की कमी, खून की कमी को दूर करने से साथ कम वजन वाले शिशुओं के स्तर को कम करना है।

बजट की इन भारी भरकम बातों का निष्कर्ष

बजट की इन भारी भरकम बातों का निष्कर्ष शायद बहुत कुछ नहीं है। इस बजट से महिलाओं को कई उम्मीदें थीं, जहीं निराशा हाथ लगी, जैसे महिला सम्मान सेविंग सर्टिफिकेट (MSSC) की वैलिडिटी बढ़ाने की समय सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया, ये 2025 ही रहेगी। इसके अलावा महिला किसानों के लिए ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ की राशि में कोई बदलाव नहीं हुआ, ये अभी ये सालाना 6000 रुपये ही है।

बात करें महिला कामगारों की तो, सेल्फ-हेल्प-ग्रुप (SHG) को रॉ-मैटीरियल प्रोवाइड कराने के लिए कोई ऐलान नहीं किया गया। साथ ही मनरेगा में महिला वर्कर के लिए हिस्सेदारी और दिहाड़ी बढ़ाने का ऐलान नहीं किया गया। उन्हें अपने काम के बदले महज़ 221 रूपए प्रतिदिन ही मिलते हैं। 21 साल से ज्यादा उम्र की आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर स्कीम लाने की उम्मीद पर भी पानी फिर गया। इन युवा महिलाओं के हाथ भी कुछ नहीं लगा।

सबसे प्रमुख ये बात जो इस बजट पर गौर करने वाली है कि इसमें आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बड़ी राहत देने की बात कही जा रही है। हालांकि इस वक्त देश के कई इलाकों में ये कार्यकत्रियां अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। कई जगह इन्हें उचित मानदेह नहीं मिलता तो वहीं कई महीने इनकी तनख्वाहें तक नहीं आतीं। इस पर वित्त मंत्री जी का कोई बयान सुनने को नहीं मिला।

इसमें कोई दो राय नहीं कि आए दिन आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर ही देखा जाता है। इनके अलावा कई इलाकों में महिला एवं बाल विकास विभाग में भी कार्यरत परियोजना अधिकारियों और सुपरवाइजरों को तनख़्वाह वक़्त पर नहीं मिलने की खबर है। ऐसे में इस बजट से किसका कितना फायदा हुआ ये तो समझा ही जा सकता है।

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