इंदौर. जमीन के जालसाज चंपू अजमेरा और कैलाश गर्ग के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी में जब्त दस्तावेजों से कई खुलासे होने के आसार हैं। मेसर्स नारायण निर्यात इंडिया कंपनी को 110 करोड़ का लोन देते समय बैंकों ने संबंधित दस्तावेजों की जांच नहीं की। डायवर्शन व टीएडंसीपी से स्वीकृत कॉलोनी की जमीन को खेती की बताकर रजिस्ट्री की गई। लोन देते समय इसकी पड़ताल की जानी चाहिए थी। मामले में बैंक अफसरों की भूमिका भी संदिग्ध है। ईडी उनकी भी जांच करने की तैयारी में है।
आम आदमी संपत्ति पर 10-20 लाख का लोन लेता है तो बैंक उससे कई दस्तावेज मांगती है और िस्थति स्पष्ट करने के लिए संपत्ति की सर्च रिपोर्ट कराई जाती है, ताकि राशि जमा नहीं होने पर संपत्ति बेचकर वसूली की जा सके। मेसर्स नारायण निर्यात इंडिया कंपनी तर्फे कैलाशचंद्र गर्ग व सुरेश कुमार गर्ग को 110 करोड़ का लोन देने में प्रकिया का पालन नहीं किया गया। यही वजह है कि यूको बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक की इतनी बड़ी रकम की वसूली नहीं हो पा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि सैटेलाइट हिल्स टाउनशिप काटने वाली एवलांच कंपनी के डायरेक्टर चंपू अजमेरा ने नायता मुंडला की 42 एकड़ जमीन जब गर्ग को बेची थी तो उसकी रजिस्ट्री कृषि भूमि के रूप में की गई, जबकि जमीन का डायवर्शन व टीएडंसीपी से नक्शा पास हो चुका था। अजमेरा उस पर सैकड़ों लोगों को प्लॉट बेच चुका था। ऐसे में सवाल खड़े हो रहे हैं कि लोन देते समय बैंक के अफसरों ने क्या पड़ताल की? अफसरों ने जमीन की जानकारी जुटाना तो दूर मौके का निरीक्षण भी नहीं किया। यदि गड़बड़ी की जानकारी थी तो लोन कैसे स्वीकृत किया गया?
ईडी ने जुटाए दस्तावेज
सूत्रों का कहना है कि ईडी ने अजमेरा और गर्ग के यहां छापामार कार्रवाई में जो दस्तावेज जब्त किए हैं, उनमें बैंक लोन के कागजात भी हैं। लोन में गड़बड़ी कर आर्थिक अनियमितताओं को लेकर भी जांच की जा रही है। इसमें बैंक अफसरों की भूमिका भी सामने आ सकती है। मालूम हो, पीडि़तों को प्लॉट या पैसे देने के वादे के साथ प्रशासन की सहमति से चंपू अजमेरा जमानत पर छूटा है। जेल से बाहर आने के बाद तत्कालीन अपर कलेक्टर अभय बेड़ेकर ने प्रकरण की जांच की थी। उसमें भी बैंक अफसरों की भूमिका की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की तैयारी थी। बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला गया।