मध्य प्रदेश के आर्थिक शहर इंदौर से सरकारी सिस्टम से धोखाधड़ी का एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे पढ़कर आप हैरान रह जाएंगे। यहां एक शख्स पूरे सरकारी सिस्टम को सालों तक दोखा देता रहा और किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। रिटायरमेंट की उम्र तक उसने सरकारी नौकरी का लाभ लिया, लेकिन इसी बीच सामने आई एक शिकायत ने उसकी पोल खोल दी। वहीं मामला सामने आने के बाद पूरे डिपार्टमेंट में हड़कंप मच गया है। बता दें कि, शख्स की शिकायत उसके जाति प्रमाण पत्र को लेकर हुई थी, जिसकी लंबी पड़ताल चलने के बाद आखिरकार अब रिटायरमेंट से ठीक 2 साल पहले फर्जीवाड़ा करने वाले को सजा सुनाई गई है।
आज से लगभग 40 साल पहले 19 साल की उम्र में सत्यनारायण वैष्णव नाम के शख्स की पुलिस आरक्षक के पद पर नौकरी लगी थी। अब नौकरी से रिटारमेंट के महज 2 साल पहले कोर्ट ने उन्हें 10 साल की सजा सुनाई है। नौकरी लगने के 23 साल बाद उनके जाति प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत सामने आई थी। नौकरी के साथ-साथ कोर्ट केस भी चलता रहा। पुलिस डिपार्टमेंट में उन्होंने अपनी पूरे नौकरी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कर ली। अब कोर्ट ने सत्यनारायण को मानते हुए सजा सुनाई है।
जानें क्या है पूरा मामला
सरकारी सिस्टम से धोखाधड़ी के मामले में कोर्ट ने तीन दिन पहले सजा सुनाई है। 10 साल की सजा के साथ अर्थदंड भी लगाया है। दरअसल, 60 साल के सत्यनारायण वैष्णव इंदौर के लक्ष्मीपुरी इलाके में रहते हैं। 19 साल की उम्र में वो आरक्षक को पोस्ट में भर्ती हुए थे। नौकरी लगने के 23 साल बाद 2006 में ग्वालटोली थाना में उनके फजी जाति प्रमाण के जरिए पुलिस की नौकरी करने की शिकायत मिली थी।
शिकायत के अनुसार, सत्यनारायण वैष्णव ने कोरी समाज का फर्जी जाति प्रमाण पत्र लगवाकर सरकारी नौकरी हासिल की थी, जबकि उनके पिता और भाई ब्रह्मण हैं। सत्यनारायण ने जो जाति प्रमाण पत्र नौकरी लगने के लिए लगाया था उसकी कॉपी लेकर मामले की जांच की गई थी। पता चला कि उसमें आरोपी ने अपनी जाती कोरी बताई थी। गवाहों के बयान के बाद ये साबित हुआ कि सत्यनारायण वैष्णव फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे थे। इसके बाद सत्यनारायण पर 2006 में केस दर्ज किया गया। पुलिस ने करीब 7 साल मामले की जांच की। फिर 2013 में जांच पूरी हुई और कोर्ट में चालान पेश किया गया। फिर कोर्ट में ट्रायल चला और अब जाकर इस केस में फैसला आया है।