शैलेन्द्र प्रताप पुष्कर
‘मिडिल-क्लास’ का होना भी किसी वरदान से कम नही है। कभी बोरियत नहीं होती…जिंदगी भर कुछ न कुछ आफत लगी ही रहती है।
मिडिल क्लास वालों की स्थिति सबसे दयनीय होती है। न इन्हें तैमूर जैसा बचपन नसीब होता है न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा…फिर भी अपने आप में उलझते हुऐ व्यस्त रहते हैं। मिडिल क्लास होने का भी अपना फायदा है…चाहे BMW का भाव बढे या AUDI का या फिर नया i-phone लांच हो जाए, फर्क नही पड़ता।
मिडिल क्लास लोगों की आधी जिंदगी तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को रोकने में ही चली जाती है। इन घरो में पनीर की सब्जी तभी बनती है जब दूध गलती से फट जाता है और मिक्स-वेज की सब्ज़ी भी तभी बनती है जब रात वाली सब्जी बच जाती है।
इनके यहाँ फ्रूटी,कॉल्ड ड्रिंक एक साथ तभी आते हैं जब घर में कोई बढ़िया वाला रिश्तेदार आ रहा होता है।
मिडिल क्लास वालों के कपड़ों की तरह खाने वाले चावल की भी तीन वेराईटी होती हैं : डेली, कैज़ुअल और पार्टी वाला।
छानते समय चायपत्ती को दबा कर आखिरी बून्द तक निचोड़ लेना ही मिडिल क्लास वालों के लिये परम सुख की अनुभूति होती है। ये लोग रूम फ्रेशनर का इस्तेमाल नही करते बल्कि सीधे अगरबत्ती जला लेते हैं।
मिडिल क्लास भारतीय परिवार के घरों में Get together नही होता, यहां ‘सत्यनारायण भगवान की कथा’ होती है। इनका फैमिली बजट इतना सटीक होता है कि सैलरी अगर 31 के बजाय 1 को आये तो गुल्लक फोड़ना पड़ जाता है।
मिडिल क्लास लोगों की आधी ज़िन्दगी तो “बहुत महँगा है” बोलने में ही निकल जाती है। इनकी “भूख” भी होटल के रेट्स पर डिपेंड करती है। दरअसल महंगे होटलों की मेन्यू-बुक में मिडिल क्लास इंसान ‘फूड-आइटम्स’ नहीं बल्कि अपनी “औकात” ढूंढ रहा होता है।
इश्क-मोहब्बत तो अमीरो के चोचलें हैं, मिडिल क्लास वाले तो सीधे “ब्याह” करते हैं। इनके जीवन में कोई वैलेंटाइन नहीं होता क्योंकि “जिम्मेदारियां” जिंदगी भर बजरंग-दल सी पीछे लगी रहती हैं।
मध्यम वर्गीय दूल्हा-दुल्हन भी मंच पर ऐसे बैठे रहते हैं मानो जैसे किसी भारी सदमे में हो। अमीर शादी के बाद हनीमून पे चले जाते हैं और मिडिल क्लास लोगो की शादी के बाद टेंन्ट-बर्तन वाले ही इनके पीछे पड़ जाते है। मिडिल क्लास बंदे को पर्सनल बेड और रूम भी शादी के बाद ही अलॉट हो पाता है।
मिडिलक्लास बस ये समझ लो कि जो तेल सर पे लगाते हैं वही तेल मुंह पर भी रगड़ लेते हैं।
एक सच्चा मिडिल क्लास आदमी गीजर बंद करके तब तक नहाता रहता है जब तक कि नल से ठंडा पानी आना शुरू ना हो जाए। रूम ठंडा होते ही AC बंद करने वाला मिडिल क्लास आदमी चंदा देने के वक्त नास्तिक हो जाता है और प्रसाद खाने के वक्त आस्तिक।
दरअसल मिडिल-क्लास तो चौराहे पर लगी घण्टी के समान है, जिसे लूली-लगंड़ी, अंधी-बहरी, अल्पमत-पूर्णमत हर प्रकार की सरकार पूरा दम से बजाती है। मिडिल क्लास को आजतक बजट में वही मिला हैं जो अक्सर हम मंदिर में बजाते हैं। फिर भी हिम्मत करके मिडिल क्लास आदमी पैसा बचाने की बहुत कोशिश करता हैं लेकिन बचा कुछ भी नहीं पाता। हकीकत में मिडिल मैन की हालत पंगत के बीच बैठे हुए उस आदमी की तरह होती है जिसके पास पूड़ी-सब्जी चाहे इधर से आये चाहे उधर से, उस तक आते-आते खत्म हो जाता है।
मिडिल क्लास के सपने भी लिमिटेड होते हैं। “टंकी भर गई है, मोटर बंद करना है, गैस पर दूध उबल गया है, चावल जल गया है…इसी टाईप के सपने आते हैं। दिल में अनगिनत सपने लिए बस चलता ही जाता है चलता ही जाता है।.