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रामायण और महाभारत एक काल्पनिक साहित्य:रामायण की ऐतिहासिक पड़ताल

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रामायण और महाभारत एक काल्पनिक साहित्य रचना है, न कि कोई इतिहास की गाथा. पर हम यह भी जानते हैं कि कोई भी रचना वगैर वस्तु केन्द्रित नहीं हो सकती है अर्थात्, कल्पना की उड़ान भी वस्तु की तुलना में ज्यादा ऊंची नहीं उड़ सकती. यही कारण है कि रामायण और महाभारत की कोई भी ऐतिहासिक तथ्य सीधे तौर पर नहीं मिल सकी. पर इतिहास खुद को हमेशा साबित करता है, चाहे वह कल्पना की कितनी भी उंची उड़ान क्यों नहीं हो. विगत दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही इसी एक जानकारी को हम यहां अपने पाठकों को देना चाहेंगे. सोशल मीडिया व्हाट्सअप के द्वारा वायरल हो रही इस तथ्य को शब्दशः यहां लिख रहा हूं:

‘‘जिस मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चक्रवर्ति सम्राट अशोक के वंशज मौर्य वंश के बौद्ध सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की हत्या उसी के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र-शुंग ने धोखे से कर दी थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था.

उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया था. पुष्यमित्र-शुंग, बौद्धों पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था.
पश्चिम क्षेत्र पर यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था. राजा मिलिंद बौद्ध-धर्म के अनुयायी थे. जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र-शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया. पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र-शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया. इसके बाद पुष्यमित्र-शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन-धर्म के अनुयायियों के बीच शरण ली.

जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया. पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर-पश्चिम की ओर धकेल दिया.

इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र-शुंग ने अपने समर्थकों के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया. पुष्यमित्र-शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया. अयोध्या अर्थात, बिना युद्ध के बनायी गयी राजधानी.

राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र-शुंग ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, भगवाधारी बौद्ध भिक्षु का सर (सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएं इनाम में दी जायेंगी.

इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम हुआ. राजधानी में बौद्ध भिक्षुओं के सर आने लगे. इसके बाद कुछ चालाक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राएं ले लेते थे. राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे हैं तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा, बौद्ध-भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था. इसके बाद बौद्ध-भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा देता था.

राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओं के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात ‘सरयू’ हो गया.

इसी ‘सरयू’ नदी के तट पर पुष्यमित्र-शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ लिखी थी, जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र-शुंग और रावण के रूप में मौर्य सम्राट का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था.

इतना ही नहीं रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र-शुंग की इसी अयोध्या में ‘सरयू’ नदी के किनारे हुई.

बौद्ध भिक्षुआंे के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए. तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा कि ‘‘इन बौद्ध विहारों का क्या करे कि आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षों में यह क्या थी ?’’

तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरों में बदल दिया और इसमें अपने पूर्वजों व काल्पनिक पात्रों को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकानें खोल दी.

ध्यान रहे उक्त ब्रह्द्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नहीं था और ना ही इस तरह की संस्कृति थी. वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की जो परंपरा है यह परम्परा पुष्यमित्र-शुंग के बौद्ध-भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है.

पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी ‘सच्ची रामायण’ नामक पुस्तक लिखी है जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर 412/1970 में वर्ष 1970-1971 व सुप्रीम कोर्ट में 1971 -1976 के बीच केस अपील नम्बर 291/1971 चला. जिसमें सुप्रीम-कोर्ट के जस्टिस पी0 एन0 भगवती, जस्टिस वी0 आर0 कृष्णा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनांक 16.9.1976 को निर्णय दिया की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य वैध हैं.

सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि ‘रामायण’ नामक देश में जितने भी ग्रन्थ हैं वे सभी काल्पनिक हैं और इनका पुरातात्विक कोई आधार नहीं है अर्थात् फर्जी है.’’

प्रस्तुत तथ्य के आलोक में रामायण और महाभारत साहित्य की रचना का समय और तथ्य सही प्रतीत होती है क्योंकि अयोध्या की पुरातात्विक विभाग द्वारा करवाई गई खुदाई से वहां जीवन का अवशेष भी इसी समय से मेल खाता है. अयोध्या के से प्राप्त पहली शताब्दी के एक शिलालेख में पुष्यमित्र-शुंग के एक वंशज का उल्लेख है. पर्याप्त उत्खनन और अन्वेषण के बाद भी हम वर्तमान अयोध्या को गुप्तकाल से पूर्व कहीं भी राम के साथ नहीं जोड़ सकते. शेष आस्था पर विषय है, जिसका इतिहास के किसी भी तथ्य से कोई मेल नहीं और पुष्यमित्र बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में ‘‘राम’’ के रूप में अमर हो गया और बौद्ध बृहद्रथ मौर्य ‘‘रावण’’ के रूप में कुख्यात हो कर इतिहास में दर्ज हो गया. राम और रावराा जैसे काल्पनिक पात्र, जो बाल्मीकि के कल्पना की उपज थी ठीक वैसे ही थे जैसे विभिन्न रचनाकारों के द्वारा रचित काल्पनिक पात्र रोमियो-जुलियट, हीर-रांझा, लैला-मजनू, देवदास आदि जैसे जीवन्त पात्र.

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