महाराष्ट्र की सियासत को लेकर बड़ा फैसला आया है। चुनाव आयोग ने अजित पवार वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को ही असली एनसीपी करार दिया है। फैसला दिग्गज राजनेता और अजित के चाचा शरद पवार के लिए बड़ा झटका है। जानकारी के मुताबिक, छह महीने से अधिक समय तक चली 10 से अधिक सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने एनसीपी में विवाद का निपटारा किया और अजीत पवार के नेतृत्व वाले गुट के पक्ष में फैसला सुनाया। अब एनसीपी का नाम और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ अजित पवार के पास रहेगा।
शरद पवार के पास क्या विकल्प?
चुनाव आयोग ने अपने नए राजनीतिक गठन के लिए एक नाम का दावा करने और आयोग को तीन प्राथमिकताएं देने का एक बार का विकल्प प्रदान किया है। रियायत का उपयोग 7 फरवरी, 2024 को दोपहर 3 बजे तक किया जा सकता है।
एनसीपी का मामला क्या है?
बीते साल महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर हुआ, जब अजित पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी। पार्टी में फूट के बाद एनसीपी पर अधिकार पर चाचा-भतीजे आमने-सामने आ गए। अजित पवार गुट ने चुनाव आयोग में हलफनामा दायर किया। वहीं, शरद पवार खेमे ने भी चुनाव आयोग में एक कैविएट दायर कर अनुरोध किया कि पार्टी की लड़ाई के संबंध में कोई भी निर्देश पारित करने से पहले उनकी बात सुनी जाए। इसके बाद चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों के दस्तावेज जांचें और दलीलें सुनीं।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अब अजित पवार की पार्टी कहलाएगी। चुनाव आयोग ने अजित पवार वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को ही असली एनसीपी करार दिया है। छह महीने से अधिक समय तक चली 10 से अधिक सुनवाई के बाद आयोग ने एनसीपी में विवाद का निपटारा कर दिया है।
करीब 24 साल पहले बनी पार्टी में बहुत कुछ बदल चुका है। शरद पवार की बनाई एनसीपी अब उनकी पार्टी नहीं रह गई है। आइये जानते हैं एनसीपी कैसे बनी? अब तक कैसा रहा उसका प्रदर्शन? अभी क्या हुआ है।
सोनिया गांधी की खिलाफत बनी एनसीपी के गठन की वजह
एनसीपी का गठन 10 जून 1999 को शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर किया था। इसके बनने के पीछे एक बड़ा सियासी घटनाक्रम है। दरअसल, सोनिया गांधी ने जब राजनीति में कदम रखा और उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने तैयारी शुरू हुई तो शरद पवार समेत कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया।
इसके बाद, कांग्रेस ने पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। तीनों नेताओं ने मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई। पवार एनसीपी के अध्यक्ष चुने गए। पीए संगमा और तारिक अनवर पार्टी महासचिव बनाए गए।
पहले ही चुनाव में मिली बड़ी सफलता
एनसीपी को महाराष्ट्र में अपनी सबसे बड़ी चुनावी सफलता मिली। अक्तूबर 1999 में राज्य विधानसभा के चुनाव में एनसीपी तीसरे स्थान पर रही। पार्टी ने 223 सीटों में से 58 सीटों पर जीत हासिल की। जिस कांग्रेस से बगावत करके पवार ने एनसीपी बनाई उसी के साथ गठबंधन करके राज्य में सरकार बना ली।
इसके बाद 2004 में, केंद्र सरकार का हिस्सा बनने के लिए पार्टी यूपीए में भी शामिल हो गई। शरद पवार ने 2004-2014 तक यूपीए सरकार में मंत्री रहे।
उतार-चढ़ाव भरा एनसीपी का सफर
2004 के विधानसभा चुनावों में महाराष्ट्र में एनसीपी ने 124 सीटों पर चुनाव लड़ी। उसे 71 सीटों पर जीत मिली। हालांकि, 2009 के विधनानसभा चुनावों में पार्टी को 62 सीटों पर जीत मिली। 2007 के गोवा विधानसभा के चुनावों में, NCP ने तीन सीटों पर कब्जा किया। हालांकि, अगले विधानसभा चुनावों में उसे कोई सीट नहीं मिली।
राष्ट्रीय स्तर पर, पार्टी ने 1999 में लोकसभा में आठ सीटें और 2004 और 2009 चुनावों में नौ-नौ सीटें जीतीं। इस बीच, पार्टी को पूरे देश में एक छोटा और निश्चित वोट प्रतिशत मिलता रहा। 2004 में यह 1.8 प्रतिशत था जिसमें 2009 में लगभग 2 प्रतिशत तक थोड़ा सुधार हुआ। 2009 में पार्टी ने महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में 46 उम्मीदवार उतारे जिनमें से उसे 45 सीटों पर हार मिली।
पिछले साल छिना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
चुनाव आयोग ने अप्रैल 2023 में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस ले लिया। दर्जा छिनने की वजह 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन था। एनसीपी को नेशनल पार्टी का दर्जा गठन के अगले साल यानी 2000 में मिल गया था।
कई धड़ों ने समय-समय पर की बगावत
राष्ट्रीय स्तर पर एनसीपी को समय-समय पर बगावत भी झेलनी पड़ी। 2002 में केरल में एक समूह ने पार्टी से नाता तोड़ लिया और दूसरा गुट 2004 में छत्तीसगढ़ में इससे अलग हो गया। सबसे बड़ा झटका इसे संस्थापक पीए संगमा ने दिया, जिन्होंने 2004 में अपनी मेघालय इकाई अलग कर ली। बाद में वह पार्टी में लौट आए, लेकिन 2012 में संगमा ने हमेशा के लिए पार्टी को अलविदा कह दिया।
दरअसल, पवार ने यूपीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन दे दिया था। मुखर्जी के सामने संगमा भी खड़े थे, जो बड़े अंतर से हार गए। 2013 की शुरुआत में संगमा ने नेशनल पीपुल्स पार्टी बना ली।
जुलाई 2023 में महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर हुआ, जब अजित पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी। पार्टी में फूट के बाद एनसीपी पर अधिकार पर चाचा-भतीजे आमने-सामने आ गए। अजित पवार गुट ने चुनाव आयोग का रुख किया। वहीं, शरद पवार खेमे ने भी चुनाव आयोग में अपनी बात रखी। चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों के दस्तावेज जांचें और दलीलें सुनीं। चुनाव आयोग ने एनसीपी में विवाद का निपटारा किया और अजीत पवार के नेतृत्व वाले गुट के पक्ष में फैसला सुनाया। अब एनसीपी का नाम और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ अजित पवार के पास रहेगा।
कार्यकर्ता और नेता अजित पवार के साथ: प्रफुल्ल पटेल
प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ऐसा हो सकता है कि कल इस फैसले को शीर्ष अदालत या उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाए। लेकिन, इसमें हमें कुछ नहीं कहना है। हम चुनाव आयोग के फैसले का स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा, चुनाव आयोग का फैसला साबित करता है कि पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता और चुने हुए प्रतिनिधि अजित पवार के साथ हैं।
फैसला संविधान की भावना के खिलाफ: प्रियंका चतुर्वेदी
वहीं, चुनाव आयोग के फैसले पर शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, मैं बिल्कुल भी हैरान नहीं हूं। एक व्यक्ति जिस पर 70,000 करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया था। आज वह बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। अजीत पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं। यह संविधान की अनुसूची 10 की भावना के खिलाफ है।”
चुनाव आयोग का फैसला लोकतंत्र की हत्या: अनिल देशमुख
राकांपा नेता अनिल देशमुख ने कहा, “आज चुनाव आयोग ने शरद पवार की पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह अजित पवार को दे दिया है। इसी तरह का फैसला शिवसेना के मामले में भी लिया गया था। राकांपा की स्थापना शरद पवार ने की थी। वह वर्षों तक पार्टी के अध्यक्ष रहे। दबाव में चुनाव आयोग का फैसला लोकतंत्र की हत्या है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”