अनिल कुमार
नई दिल्ली: आम चुनाव में जाने से पहले मोदी सरकार ने कांग्रेस को घेरने के लिए इकॉनमी का तीर चलाया है। इसने यूपीए के 10 वर्षों के शासन काल पर वाइट पेपर बुधवार को संसद में पेश किया। उसके जवाब में कांग्रेस ने मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते हुए ‘10 साल, अन्याय काल’ नाम से ब्लैक पेपर पेश किया। वाइट पेपर में इसमें कहा गया कि 2004 में वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने ज्यादा ग्रोथ की क्षमता वाली इकॉनमी अगली सरकार को सौंपी थी, लेकिन यूपीए के 10 वर्षों के शासन में महंगाई 10 प्रतिशत से ज्यादा हो गई, बहुत ज्यादा कर्ज बांटने से बैंकिंग सेक्टर बदहाल हो गया, ढुलमुल नीतियों से कारोबारी माहौल पर बुरा असर पड़ा और कई घोटालों से सरकारी खजाने को बड़ी चपत लगी।
श्वेत पत्र में कहा गया, ‘2014 में हमारी सरकार को बहुत खराब हालत वाली अर्थव्यवस्था मिली’ लेकिन मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में ‘कड़े फैसले’ किए ताकि भारत फिर से तेज ग्रोथ की राह पर आ सके। वहीं, 57 पेज के इस ब्लैक पेपर में कांग्रेस ने सिलसिलेवार ढंग से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की। इसमें सामाजिक न्याय, महंगाई, बेरोजगारी, किसान, महिलाओं जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने को कोशिश की। पीएम ने हाल ही में देश में जो चार जातियां- महिला, युवा, किसान और गरीब गिनाई हैं, कांग्रेस ने उन्हीं को आधार बनाते हुए सरकार की नीतियों को लेकर निशाना साधा।
सुधार के बाद टॉप-5 में पहुंचे
मोदी सरकार ने श्वेत पत्र में कहा, ‘यूपीए के इकनॉमिक मिसमैनेजमेंट के चलते मॉर्गन स्टैनली ने भारत को दुनिया की 5 सबसे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में शामिल कर दिया। लेकिन 2014 के बाद हुए सुधारों के चलते इंडिया अब टॉप 5 अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाने लगा है।’ अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2014 से पहले के आर्थिक हालात पर श्वेत पत्र पेश करने की बात की थी ताकि ‘पिछली गलतियों से सबक सीखे जा सकें।’ 59 पेज के श्वेत पत्र में कहा गया कि ‘यूपीए सरकार को हेल्दी इकॉनमी मिली थी, जो रिफॉर्म्स के लिए तैयार थी, लेकिन उसने अपने 10 वर्षों में इसे नॉन-परफॉर्मिंग बना दिया। 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी, तब इकॉनमी 8% के रेट से बढ़ रही थी, इंडस्ट्री और सर्विसेज सेक्टर की ग्रोथ 7 प्रतिशत से ज्यादा थी और एग्रीकल्चर सेक्टर की ग्रोथ 9% से अधिक थी।’
श्वेत पत्र के तीर
- यूपीए शासन में औसत महंगाई दर 8% से ज्यादा थी
- मोदी शासन में ऐवरेज एनुअल इंफ्लेशन 5% पर
- UPA शासन में सरकारी बैंकों का NPA बढ़ा
- 2011 से 2013 के बीच डॉलर के मुकाबले रुपया 36% गिरा
- 2013 में विदेशी मुद्रा भंडार 6 महीने के इंपोर्ट लायक ही रह गया था
- 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार 303 अरब डॉलर, जनवरी 2024 में 617 अरब डॉलर पर
- 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट का भारत पर बुरा असर नहीं पड़ा था
- 2008 के बाद लक्ष्यहीन राजकोषीय पैकेज ने समस्या खड़ी कर दी
श्वेत पत्र में महंगाई पर क्या?
श्वेत पत्र में महंगाई के मुद्दे पर कहा गया कि ‘2008 में ग्लोबल फाइनैंशल क्राइसिस के बाद किसी भी तरह ऊंची इकनॉमिक ग्रोथ हासिल करने के लिए मैक्रोइकनॉमिक बुनियाद को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया। वित्त वर्ष 2010 से 2014 के बीच ऐवरेज एनुअल इंफ्लेशन दोहरे अंकों में थी। वित्त वर्ष 2004 से 2014 के बीच ऐवरेज एनुअल इंफ्लेशन 8.2% थी।’ इससे तुलना करते हुए मोदी सरकार ने कहा, ‘हमने राजकोषीय अनुशासन पर जोर दिया। 2016 में सरकार ने आरबीआई को यह जिम्मा दिया कि महंगाई को 2 से 6 प्रतिशत के दायरे में रखा जाए। FY14 से FY23 के बीच ऐवरेज एनुअल इंफ्लेशन घटकर 5% पर आ गई।’
बैकिंग सेक्टर का बताया हाल
मोदी सरकार ने बैंकिंग सेक्टर को लेकर भी यूपीए पर तीर चलाए। श्वेत पत्र में कहा गया, ‘बैंकिंग संकट यूपीए सरकार की कुख्यात विरासत थी। वाजपेयी सरकार बनने के समय सरकारी बैंकों के ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स 16% पर थे। जब इसने शासन छोड़ा, तब आंकड़ा 7.8% था, लेकिन सितंबर 2013 में रिस्ट्रक्चर्ड लोन सहित यह रेशियो 12.3% हो गया। इसमें बड़ा हाथ इस बात का था कि यूपीए सरकार ने सरकारी बैंकों के कर्ज बांटने में राजनीतिक दखलंदाजी की।’ मोदी सरकार ने यूपीए पर बैड लोन का आंकड़ा कम करके दिखाने का आरोप भी लगाया।
यूपीए शासन के दौरान रुपया कमजोर
श्वेत पत्र में कहा गया कि विदेशी कर्ज पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण यूपीए शासन के दौरान रुपया कमजोर हुआ और 2011 से 2013 के बीच डॉलर के मुकाबले 36% नीचे आ गया। यूपीए शासन में विदेशी मुद्रा भंडार घटने का हवाला देते हुए कहा गया कि सितंबर 2013 के अंत तक फॉरेक्स रिजर्व ‘लगभग 6 महीनों के इंपोर्ट का इंतजाम करने लायक ही रह गया था और यह मार्च 2004 के स्तर से 17% कम हो गया था।’ श्वेत पत्र में मोदी सरकार के बारे में कहा गया, ‘मार्च 2014 में जो विदेशी मुद्रा भंडार 303 अरब डॉलर पर था, वह जनवरी 2024 में 617 अरब डॉलर पर पहुंच गया। भारत का एक्सटर्नल सेक्टर अब कहीं ज्यादा सुरक्षित है।’
‘2008 का पैकेज बना समस्या’
श्वेत पत्र में कहा गया कि यूपीए सरकार ने 2008 के ग्लोबल फाइनैंशल क्राइसिस से निपटने के लिए जो राजकोषीय पैकेज दिया था, वह अपने आप में एक समस्या बन गया। ‘इस क्राइसिस का हमारी इकॉनमी पर बुरा असर नहीं पड़ा था। FY2009 में इंडिया की ग्रोथ घटकर 3.1% हो गई, लेकिन तेजी से रिकवर होकर FY2010 में 7.9% हो गई थी। इसलिए लक्ष्यहीन राहत एक साल के बाद भी जारी रखने की कोई जरूरत नहीं थी।’ यूपीए सरकार पर ‘फिस्कल मिसमैनेजमेंट’ का आरोप लगाते हुए कहा गया कि इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट पर ध्यान नहीं दिया गया। ‘2जी घोटाले और पॉलिसी पैरालिसिस के चलते एक कीमती दशक भारत के टेलीकॉम सेक्टर के हाथ से चला गया।’ अपनी उपलब्धियां गिनाते हुए मोदी सरकार ने श्वेत पत्र में कहा, ‘पिछले 10 वर्षों पर नजर डालते हुए हम संतोष के साथ कह सकते हैं कि पिछली सरकार ने जो चुनौतियां छोड़ी थीं, हम उनसे सफलतापूर्वक पार पा चुके हैं। भारत को 2047 तक विकसित देश बनाना है। यह हमारा कर्त्तव्य काल है।’