कांग्रेस नेता सोनिया गांधी राज्यसभा जाएंगी। पार्टी ने उन्हें राजस्थान से अपना उम्मीदवार बनाया है। लंबे अरसे बाद ऐसा हो रहा है जब नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य राज्यसभा जाएगा। सोनिया से पहले नेहरू-गांधी परिवार के सिर्फ दो सदस्य ही राज्यसभा सदस्य रहे हैं। दोनों ही महिलाएं थीं। इनमें से एक पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। दूसरी महिला नेता के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे।
आइये जानते हैं नेहरू-गांधी परिवार के कब कौन राज्यसभा पहुंचा? इंदिरा गांधी ने किस वक्त और कितनी बार राज्यसभा का प्रतिनिधित्व किया? इंदिरा के अलावा नेहरू-गांधी परिवार की किस महिला सदस्य ने राज्यसभा का प्रतिनिधित्व किया? सोनिया गांधी का सियासी सफर कैसा रहा है? सोनिया के राज्यसभा पहुंचने की राह कितनी आसान या मुश्किल है?
नेहरू-गांधी परिवार के कब कौन राज्यसभा पहुंचा?
अब तक सिर्फ दो मौके ऐसे आए हैं जब नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य राज्यसभा पहुंचे। पहला मौका 1962 में आया था। जबकि दूसरा मौका 1964 में आया था। 1962 में नेहरू-गांधी परिवार से संबंध रखने वाली उमा नेहरू राज्यसभा सदस्य बनी थीं। उमा का कार्यकाल 1962-1963 में रहा था। वहीं, 1964 में इंदिरा गांधी राज्यसभा पहुंची। इंदिरा गांधी 1964 से 1967 तक राज्यसभा सदस्य रहीं। दोनों नेताओं ने राज्यसभा में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया था। इंदिरा जब पहली बार प्रधानमंत्री बनीं, उस वक्त वह राज्यसभा की ही सदस्य थीं। 1967 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने रायबरेली सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी।
1967 के बाद इंदिरा लगातार लोकसभा का चुनाव जीतती रहीं और निचले सदन में पहुंचती रहीं। 1977 की जनता लहर में जब इंदिरा को रायबरेली से हार मिली तो उन्होंने कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से उप-चुनाव जीता और एक बार फिर लोकसभा पहुंच गईं। 1980 में जब इंदिरा फिर से प्रधानमंत्री बनीं तो वह आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से सांसद थीं। 1980 में इंदिरा को मेंडक के साथ रायबरेली सीट पर भी जीत मिली थी।
उमा नेहरू कौन थीं?
राज्यसभा पहुंचने वाली नेहरू-गांधी परिवार की दूसरी सदस्य उमा नेहरू को भी जान लेते हैं। उमा नेहरू पंडित जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई शामलाल की पत्नी थीं। उमा का जन्म मार्च 1884 में आगरा में हुआ था। उमा के पोते अरुण नेहरू राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे थे। उमा और शामलाल के दो बच्चे हुए श्याम कुमारी और आनंद। अरुण नेहरू आनंद के बेटे थे।
उमा पहली और दूसरी लोकसभा में सीतापुर सीट से सांसद रही हैं। 1962 में वह राज्यसभा की सदस्य बनी थीं। राज्यसभा सचिवालय की ओर से 2003 में जारी किताब वुमन मेंबर्स ऑफ राज्यसभा में बताया गया है कि उस वक्त के जितनी भी महिलाएं राज्यसभा पहुंची उनमें उमा सबसे उम्रदराज महिला थीं। 1962 में जब वह राज्यसभा की सदस्य बनीं उस वक्त उनकी उम्र 78 साल थी। उमा स्वतंत्रता संग्राम के वक्त भी काफी सक्रिय रही थीं। उन्होंने महिला क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 1926 में ऑल इंडिया वुमन्स कांफ्रेंस (एआईडब्ल्यूसी) बनाई थी। इस संगठन से जुड़ी और भी महिलाएं बाद में राज्यसभा सदस्य बनी थीं। इनमें राजुकमारी अमृत कौर, लक्ष्मी एन. मेनन, नंदिनी सत्पथी और अमु स्वामीनाथन जैसे नाम शामिल थे। हालांकि, एक साल बाद ही अगस्त 1963 में उमा नेहरू का निधन हो गया।
सोनिया गांधी। – फोटो : सोशल मीडिया
सोनिया गांधी का सियासी सफर कैसा रहा है?
सोनिया 1999 से लगातार लोकसभा चुनाव जीतती रही हैं और इसकी सदस्य बनी हुई हैं। 1999 में सोनिया उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचीं। इसके बाद 2004 में उनके बेटे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति में कदम रखा। राहुल अमेठी सीट से चुनाव मैदान में उतरे और सोनिया रायबरेली सीट से चुनाव मैदान में उतरीं। रायबरेली वही सीट थी जहां से कभी सोनिया की सास इंदिरा गांधी चुनाव लड़ा करती थीं। 2004, 2009, 2014 और 2019 में लगातार चार बार रायबरेली सीट से सोनिया लड़ीं और जीतीं। इस चुनाव से पहले सोनिया राज्यसभा जा रही हैं। इससे यह तय हो गया है कि 57 साल बाद नेहरू-गांधी परिवार को कोई सदस्य राज्यसभा जाएगा।
सोनिया के लिए राज्यसभा चुनाव की राह कैसी है?
राज्यसभा के लिए राजस्थान से कुल तीन सदस्य चुनकर जाने हैं। 200 सदस्यों वाली राजस्थान विधानसभा के विधायक इसके लिए वोट करेंगे। कांग्रेस ने यहां से सिर्फ सोनिया को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा अगर तीन उम्मीदवार उतारती है तो चुनाव की नौबत आएगी। वहीं, भाजपा की ओर से दो उम्मीदवार उतराने पर सोनिया का निर्विरोध राज्यसभा पहुंचना तय हो जाएगा।
अगर चुनाव में तीन से ज्यादा उम्मीदवार हुए तो क्या होगा?
इस चुनाव में लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह वोट नहीं पड़ते। यहां विधायकों को वरीयता के आधार पर वोट डालना होता है। विधायकों को चुनाव आयोग की ओर से एक विशेष पेन दी जाती है। उसी पेन से उम्मीदवारों के आगे वोटर को नंबर लिखने होते हैं। एक नंबर उसे सबसे पसंदीदा उम्मीदवार के नाम के आगे डालना होता है। ऐसे दूसरी पसंद वाले उम्मीदवार के आगे दो लिखना होता है। इसी तरह विधायक चाहे तो सभी उम्मीदावारों को वरीयता क्रम दे सकता है। अगर आयोग द्वारा दी गई विशेष पेन का इस्तेमाल नहीं होता तो वह वोट अमान्य हो जाता है। इसके बाद विधानसभा के विधायकों की संख्या और राज्यसभा के लिए खाली सीटों के आधार पर जीत के लिए आवश्यक वोट तय होते हैं। जो उम्मीदवार उस आवश्यक संख्या से अधिक वोट पाता है वह विजयी घोषित होता है।
ये आवश्यक संख्या कैसे तय होती है?
इसे समझने के लिए राजस्थान का उदाहरण लिया जा सकता है। यहां विधायकों की कुल संख्या 200 है। वहीं, कुल तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहा है। हर एक सदस्य को राज्यसभा पहुंचने के लिए कितने विधायकों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए इसके लिए एक तय फॉर्मूला है। यह फॉर्मूला यह है कि कुल विधायकों की संख्या को जितने राज्यसभा सदस्य चुने जाने हैं, उसमें एक जोड़कर विभाजित किया जाता है।
इस बार यहां से तीन राज्यसभा सदस्यों का चुनाव होना है। इसमें एक जोड़ने से यह संख्या चार होती है। अब कुल सदस्य 200 हैं तो उसे चार से विभाजित करने पर 50 आता है। यानी राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनने के लिए उम्मीदवार को 51 प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी। अगर विजेता का फैसला प्रथम वरीयता के वोटों से नहीं होता तो उसके बाद दूसरी वरीयता के वोट गिने जाते हैं। कांग्रेस के राजस्थान में कुल 73 विधायक हैं। अगर सभी अपना प्राथमिक वोट सोनिया गांधी को देते हैं तो सोनिया आसानी से राज्यसभा पहुंच जाएंगी।