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किसान आंदोलन की वजह से अकाली और बीजेपी गठबंधन होने की संभावनाएं एक बार फिर खत्म

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नई दिल्ली। दिल्ली को चौतरफा घेरकर बैठे किसान अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए हैं। आज केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच बैठक भी होना है। कोशिश की जा रही है कि ये आंदोलन किसी तरह खत्म कराया जाए। इसी बीच किसान और सुरक्षा बलों के बीच झड़पों की खबरें भी आ रही हैं। इधर आंदोलन चल रहा है उधर पंजाब में सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। बीजेपी और अकाली दल के बीच तीन कृषि कानून एक बड़ा मुद्दा बने थे और इसके चलते ही उनका लंबे अरसे से चला आ रहा गठबंधन टूट गया था।

माना जा रहा है कि किसान आंदोलन के फिर शुरू होने के चलते ही अकाली और बीजेपी गठबंधन होने की संभावनाएं एक बार फिर खत्म होती दिख रही है। हालांकि गठबंधन होगा या नहीं, इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। बीजेपी ने गांव गरीब किसानों को लाभ पहुंचाने वाली अपनी छवि बनाने की काफी कोशिशें की लेकिन किसान आंदोलन ने इसको बड़ा झटका लगा है। बीजेपी लगातार डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रही है और इसीलिए केंद्रीय मंत्रियों की लगातार किसानों के साथ बातचीत भी हो रही है। देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस पर सहमति बन पाती है या नहीं, क्योंकि किसान आंदोलन 2024 लोकसभा चुनावों पंजाब की सियासत में अहम हो सकता है।


केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में जब साल 2021 में किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन किया था तो उसमें आम आदमी पार्टी शासित अरविंद केजरीवाल सरकार ने भी उनका समर्थन किया था। इसके चलते ही पंजाब में आप के लिए एक खास माहौल बना था और इसका बड़ा फायदा उसे 2022 के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला। आप की एकतरफा जीत हुई थी और भगवंत मान सीएम बने थे। कुछ ऐसा ही एक बार फिर हो रहा है। पंजाब सरकार किसानों के इस आंदोलन में उन्हें समर्थन दे रही है और उनकी मांगों को वाजिब भी ठहरा रही है।पिछले आंदोलन से तुलना करें तो इसमें पहचान की राजनीति का असर देखने को मिल रहा है।

जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिहं पंढेर की लीडरशिप में दो किसान यूनियट धरना प्रदर्शन करक रही है और आंदोलन पहले से ज्यादा संगठित लग रहा है लेकिन इसमें इस बार ताकत की कमी लग रही है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर किसान संगठनों ने इससे खुद को अलग कर लिया है। बलबीर सिंह राजेवाल, राकेश टिकैत गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे नेताओं ने किसानों को समर्थन तो दिया है लेकिन वे मार्च में सीधे शामिल नहीं हो रहे हैं। पिछली बार किसानों को अलग-अलग क्षेत्र के लोगों का समर्थन भी नहीं मिल रहा है।
बीजेपी के खिलाफ पहले दिखा था गुस्सा?
किसान आंदोलन का असर पिछली बार बीजेपी के खिलाफ लोगों के गुस्से के तौर पर देखने को मिला था। पंजाब में बीजेपी जो कभी 30 प्रतिशत तक वोट ले आती थी, उसे 2022 विधानसभा चुनावों के दौरान 18 प्रतिशत ही वोट मिले थे, जबकि आप ने 42 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाकर सत्ता हासिल की थी। बीजेपी की हालत इतनी खराब थी कि वह पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को साथ लाकर भी महज दो ही सीटें जीत पाई थी, कैप्टन साहब खुद अपनी सीट गंवा बैठे थे।

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