किसानों का दिल्ली कूच, बैरिकेट्स तोड़ने पोकलेन, जेसीबी एवं बख्तरबंद गाड़ियां
सनत जैन
एमएसपी पर केंद्र सरकार का प्रस्ताव, किसान संगठनों ने खारिज कर दिया है। किसान संगठनों और सरकार के बीच की चौथी वार्ता विफल हो जाने के बाद किसान संगठन दिल्ली जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। किसान संगठनों का कहना है, कि सरकार एमएसपी कानून को लेकर किसानों को गुमराह कर रही है। किसानों ने हरियाणा सरकार द्वारा बनाए गए सभी गतिरोध को तोड़ने के लिए अपनी ओर से व्यापक इंतजाम कर लिए हैं।
किसान संगठनों की ओर से बैरिकेट्स को तोड़ने के लिए पोकलेन, जेसीबी मशीन, अश्रु गैस के गोलों से बचने के लिए बड़े इंतजाम किए हैं। किसान बड़ी संख्या में बॉर्डर पर एकत्रित हो गए हैं। सरकार के सुरक्षा इंतजामों और सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर, दिल्ली जाने की तैयारी किसानों ने सीमा पर कर ली है। किसानों ने जिस तरह की तैयारी की है, उस तैयारी को देखते हुए यह कहा जा सकता है, हरियाणा की सीमा पर सुरक्षा बलों और किसानों के बीच टकराव होना तय है। किसान जैसे ही आगे बढ़ते हैं। अश्रु गैस के गोले सुरक्षा बल बड़ी संख्या में दाग रहे हैं। जहां किसान खड़े होते हैं, वहां अश्रु गैस के गोले ड्रोन से गिराये जा रहे हैं। सरकार ने किसानों के इस आंदोलन की गंभीरता से नहीं समझा। जिसके परिणाम स्वरूप सुरक्षा कर्मियों और किसानों के बीच टकराव रहा है। किसानों ने बार-बार कहा है, कि वह शांतिपूर्ण आंदोलन करना चाहते हैं। किसान दिल्ली जाना चाहते हैं। सरकार ने दिल्ली जाने के रास्ते में अवरोध खड़े किए हैं। हरियाणा सरकार अवरोध हटाकर उन्हें शांतिपूर्वक दिल्ली जाने का मार्ग दे। किसान इस बात से नाराज हो गए हैं, कि हरियाणा बॉर्डर में सुरक्षा बलों द्वारा जो अश्रु गैस के और केमिकल गोले छोड़े जा रहे हैं, वह काफी घातक हैं। रबड़ की बुलेट से किसानों को घायल किया जा रहा है। सीमा पर लड़ाई के दौरान जिन हथियारों का उपयोग सीमा सुरक्षा बल के जवान करते हैं। उन हथियारों का प्रयोग सरकार ने किसानो के ऊपर है। चौथे दौर की वार्ता विफल होने के बाद किसान संगठन राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट हो गए हैं। किसान और सुरक्षा बल के जवान, अब आर पार की लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में हैं। किसान संगठनों द्वारा शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए जिस तरह की रणनीति बनाई गई है। वह सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। किसान संगठनों ने 11 बजे बैरियर तोड़कर दिल्ली जाने का आह्वान किया था। सभी सीमाओं पर बड़ी संख्या में किसान एकजुट हैं। किसानों ने पिछले दो दिनों में सिंधु बॉर्डर पर पोकलेन, डोजर, जेसीबी मशीने एकत्रित की हैं। ड्रोन से जो अश्रु गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं। उनसे निपटने के लिए किसानों ने व्यापक इंतजाम किए हैं। किसान संगठनों ने दिल्ली कूच करने के लिए बुजुर्गों और महिलाओं का जत्था भी सबसे आगे रखने की तैयारी की है। सरकार यदि सीमा पर कोई कार्यवाही करे, आंदोलन को बदनाम करने के लिए कोई भी कोशिश सरकार करना चाहे, तो सरकार नहीं कर पाए। किसान संगठन कह रहे हैं, कि हमारी निर्वाचित सरकार है। आंदोलन को रोकने के लिए क्या यह बुजुर्गों और महिलाओं पर गोली चलाएगी? किसान संगठन हर हाल में एमएसपी कानून, किसानो की कर्ज माफी, और पिछले आंदोलन में जो किसान मारे गए थे। उनके परिवार से एक आदमी को सरकारी नौकरी और मुआवजा की मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार ने जब मौके की इस हालत को देखा, तब पांचवें दौर के बातचीत की पेशकश कर दी। इस पेशकश का, किसानों के ऊपर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। किसान संगठनों का कहना है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में एमएसपी कानून बनाने का वायदा किया था। मोदी जी ने किसानों की आय दो गुना करने की बात कही थी। सरकार ने पिछले आंदोलन में किसानों से जो लिखित वायदे किए थे। वह वायदे भी सरकार ने पूरे नहीं किए। सरकार ने पिछले चार दौर की जो वार्ता किसानों के प्रतिनिधियों से की है। उसमें भी किसानों को धोखा देने के लिए, टाइम पास करने के लिए, सरकार बैठक का नाटक कर रही है। अविश्वास सरकार और किसानों के बीच में इतना बढ़ गया है, कि जब तक सरकार की ओर से ठोस पहल नहीं होगी। तब तक,किसान संगठन सरकार पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है। निश्चित रूप से 10 साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केन्द्र में शासन है। केंद्र और कई राज्यों में डबल इंजन की सरकारें हैं। पिछले आंदोलन में जो वायदे किसानों के साथ सरकार ने किए थे। उनको पूरा करने के लिए सरकार ने कोई काम ही नहीं किया। अभी भी सरकार जो प्रस्ताव लेकर आ रही है। उसमें भी बट, किंतु, परंतु की बहानेबाजी है। सरकार आश्वासन देकर आंदोलन खत्म करना चाहती है। किसान संगठन अपनी मांगों को मनवाये बिना घर लौटने के लिए तैयार नहीं है। बहरहाल वर्तमान स्थिति को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने किसानों से सभी मांगों पर वार्ता करने की पेशकश की है। सरकार किसी भी हालत में किसानों को दिल्ली नहीं आने देना चाहती है। किसान अध्यादेश के माध्यम से कानून लागू करने की बात कर रहे हैं। वहीं सरकार एमएसपी पर कानून बनाने से बच रही है। जिसके कारण किसानों का आंदोलन किस ओर जाएगा, यह कहना मुश्किल है। जिस तरीके के हालात हरियाणा की सीमा पर देखने को मिल रहे हैं। उसमें किसान सरकार के ऊपर अब भारी पड़ते हुए दिख रहे हैं। किसानों ने साफ कह दिया है, वह एमएसपी पर कानून के बिना घर वापस नहीं लौटेंगे। किसानो की आक्रामकता को देखते हुए केंद्र सरकार हतप्रभ है। सरकार के रणनीतिकार अब इस आंदोलन को अब गंभीरता से ले रहे हैं। देखना होगा, कि क्या रास्ता सरकार निकालती है।