डॉ. संदीप सिंहमार
भारत देश में सरकारी अर्थव्यवस्था की असली धुरी खेती व किसानी को माना जाता है। किस जहाँ देश के लोगों का पेट भरने का काम करता है। वहीं अपनी आजीविका भी खुद चलता है। आत्मनिर्भर भारत में भी किसानों का महत्वपूर्ण योगदान है। पर वर्तमान में भारत देश का किसान परेशान चल रहा है। किसी और वजह से नहीं बल्कि अपनी मांगों को लेकर। किसानों की मांगे केंद्र सरकार से हैं। जबकि सामना हरियाणा सरकार से हो रहा है और मसला सुलझने की आस में आंदोलन से जुड़ा पूरा मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में लंबित है।
हरियाणा व केंद्र सरकार ने किसानों का मसला सुलझाने का आश्वासन दिया हुआ है। इसी मामले को लेकर किसान व सरकार दोनों संकट में फसे हुए हैं। किसानों की वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या दिल्ली तक पहुँचना है,पर हरियाणा सरकार किसानों को रास्ता देने के लिए तैयार नहीं है। पर संकट में हरियाणा सरकार व केंद्र सरकार भी है क्योंकि अगले माह ही केंद्र के चुनाव घोषित होने की संभावना है। ऐसे वक्त में जब चुनाव नजदीक हो तो किसानों को नाराज़ भी नहीं किया जा सकता। इसी बीच केंद्र सरकार ने एक विज्ञापन जारी कर किसानों से सवाल किया कि जब उनकी फसल पहले से ही एमएसपी पर खरीदी जा रही है और किसानों के लिए विभिन्न प्रकार की जनकल्याणकारी योजनाए चलाई जा रही है
तो फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं? दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि उन्हें सिर्फ एमएसपी नहीं चाहिए बल्कि एमएसपी पर केंद्र कानून बनाए, ताकि उन्हें भविष्य में इस कानून के तहत फसलों के भाव मिलते रहें। इसके साथ-साथ किसान पूर्व में दिल्ली में हुए किसान आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के लिए मुआवजा व सरकारी नौकरी की मांग कर रहे हैं। साथ ही किसानों के लिए पेंशन की भी एक मांग है। हो सकता है किसानों की मुख्य मांग एमएसपी की केंद्र सरकार पूरी भी कर दे,क्योंकि चुनावी माहौल है,पर सभी मांगे पूरी नहीं हो सकती। किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्रियों की समिति के साथ किसानों की दो दौर की असफल वार्ता भी हो चुकी है।
पर फिलहाल सरकार या किसान कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं है। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है,जिनका इस पूरे मामले में कोई कसूर भी नहीं है। पहले की तरह किसान आंदोलन की शुरुआत चाहे पंजाब के किसानों ने की हो लेकिन वर्तमान में अब पंजाब के किसानों को हरियाणा के किसानों का भी साथ मिल गया है। इतना ही नहीं किसानों को अब हरियाणा की खापों का भी समर्थन मिल गया है। एक दिन पहले ही खापों के नेता भी किसानों के समर्थन में पंचायत कर चुके हैं। रविवार को भी हरियाणा के खेड़ी चौपटा में खापों व किसानों की पंचायत चल रही है। इसके बाद किसान व खाप नेता पंजाब के बॉर्डर की तरफ कूच कर सकते हैं। ऐसा हुआ तो आंदोलन चाहे दिल्ली की तरफ ना बढ़ सके लेकिन पंजाब-हरियाणा का बॉर्डर जंग का मैदान बन सकता है।
खेड़ी चौपटा में समपन्न हुई पंचायत के बाद किसान व खाप नेताओं ने पंजाब बॉर्डर की तरफ रूख करने का फैसला ले लिया है। इससे पहले शनिवार को किसानों ने पंजाब के किसानों के समर्थन में ट्रैक्टर रैली निकालकर सरकार को चेताया था। यदि हरियाणा के किसान शंभु बॉर्डर व खनौरी बॉर्डर की ओर चल पड़े तो हरियाणा सरकार को अब दोनों तरफ बैरिकेडिंग करनी पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में हरियाणा सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वहीं 11 फरवरी से लगातार इंटरनेट बंद होने से भी लोग परेशान हो गए है। यह भी एक नया आंदोलन का रूप बन सकता है। इन सभी स्थितियों को समझते हुए सरकार को किसानों के साथ साकारात्मक बातचीत कर इस मामले का हल निकालना चाहिए ताकि किसान, सरकार व आम जनता परेशानी से बाहर निकल सकें।