राजस्थान के जोधपुर लोकसभा सीट से पहली बार साल 2014 में संसद पहुंचे केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत केंद्र की मोदी सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को हासिल करने, जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं व समर्थकों से जुड़े रहने व अपनी बात को सरल व स्पष्ट तौर पर जनता तक पहुंचाने के कारण मारवाड़ क्षेत्र में लगातार लोकप्रियता हासिल कर रहे थे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मारवाड़ में अजेय कहे जाने वाले राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को चुनाव में शिकस्त देना व केंद्र की मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री का ओहदा हासिल करने से शेखावत की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता नजर आ रहा था। लेकिन पिछले कुछ सालों से पूर्व से लेकर पश्चिमी राजस्थान तक गजेंद्र गजेंद्र सिंह शेखावत का विरोध शुरू हो गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि व्यापक लोकप्रियता के बीच विरोध शुरू होने के क्या कारण हैं?
दूसरे कार्यकाल में पसरता शेखावत से असंतोष
2014 के लोकसभा चुनाव में जोधपुर लोकसभा सीट से पूर्व राजपरिवार से आने वाली कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी को हराकर सांसद बने गजेंद्र सिंह शेखावत को केंद्र सरकार में विशेष जिम्मेदारियां मिली। साल 2022 में इन्हें पंजाब चुनाव का प्रभारी भी बनाया गया। पंजाब में भाजपा की हार के कारण इनके नेतृव पर सवाल खड़े हुए और इनकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आता देखा गया। वहीं राजस्थान में वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया जैसे दिग्गज नेताओं से इनकी तकरार ने भी राजस्थान में राजपूत और जाट जाति से इनको पहली बार दूर किया। ऐसे ही विधानसभा चुनावों के दौरान शिव से वर्तमान निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी को बीजेपी से टिकट नहीं मिलने का कारण भी गजेंद्र सिंह को माना गया है, जिसके बाद पश्चिम राजस्थान (जैसलमेर, बाड़मेर) में इनको काफी विरोध का सामना करना पड़ा था।
विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान जैसलमेर, फलोदी, पोकरण आदि कई विधानसभा क्षेत्रों में लोगों ने काले झंडे दिखाकर गजेंद्र सिंह का विरोध किया था। रविंद्र सिंह का भाजपा से टिकट कटने के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गजेंद्र सिंह की पश्चिम राजस्थान (जोधपुर जैलसमेर, बाड़मेर) के राजपूतों से भी दूरी बढ़ी है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अविनाश कल्ला गजेंद्र सिंह शेखावत को “रण छोड़ “मानते हुए कहते है कि “गजेन्द्र सिंह दोनों ही चुनावों में मोदी लहर पर सवार होकर संसद तक पहुंचे है। आगे वे कहते है इनकी असली परीक्षा तो तब होती जब वो सरदारपुरा से गहलोत के सामने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करते। टिकट बंटवारे के दौरान सूरसागर, लोहावट, सरदारपुरा, शेरगढ़, पोकरण कई जगहों से इनका नाम सामने आ रहा था लेकिन इस दौरान अपने आपको साबित करने में असफल रहे और कहीं से भी टिकट लेने की मांग तक नहीं की। जबकि राजस्थान मीडिया में इनका नाम मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जा रहा था।”
अविनाश कल्ला गजेंद्र सिंह शेखावत के दूसरे कार्यकाल पर बात करते हुए कहते है कि “इन्हें दूसरे कार्यकाल में जब जल शक्ति मंत्री बनाया गया तो राजस्थान की जनता जो पानी की गंभीर समस्या से जूझती रही है, को पानी की समस्या के समाधान की अपेक्षा थी लेकिन गजेन्द्र सिंह उसे डिलीवर नही करवा पाए। कल्ला इससे शेखावत की लोकप्रियता के घटने का एक कारण मानते है।
मोदी से प्यार शेखावत से इनकार
बीते सोमवार को गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर के दौरे पर थे इस दौरान एक पोस्टर सामने आया जिसमें लिखा है “मोदी जी से प्यार शेखावत से इनकार”। यह उसी तरह से है जिस तरह से कभी राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में कहा जाता था “मोदी तुमसे बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं”। जानकारी के अनुसार यह पोस्टर जयपुर से जोधपुर आने वाले राजमार्ग पर बने वीर तेजाजी पुल के नीचे लगा है। गजेंद्र सिंह की इस पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है तो वहीं भाजपा के लोगों का कहना है कि ये काम विरोधियों ने किया है।
राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार आनंद चौधरी गजेंद्र सिंह के राजनीतिक उफान को बहुचर्चित संजीवनी घोटाले में उनका नाम आने के बाद से शांत होता मानते है। उनका कहना है कि संजीवनी घोटाले के बाद प्रदेश की कांग्रेस सरकार इन पर लगातार हमलावर रही जिसका असर इनके छवि पर देखा गया। गौरतलब है कि राजस्थान में संजीवनी क्रेडिट को -ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले में 1 लाख से ज्यादा निवेशकों का करीब 900 करोड़ रुपया डूब गया था। आरोप है कि इस सोसायटी के पहले प्रबंध निदेशक विक्रम सिंह जो कि इस घोटाले का मास्टर माइंड भी माना जाता है के संबंध गजेंद्र सिंह से थे।
इन तमाम बातों के बावजूद सामाजिक अध्येता विभांशु कल्ला कहते हैं “बढ़ते सामाजिक ध्रुवीकरण और नरेंद्र मोदी की मीडिया द्वारा निर्मित छवि के चलते जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर शेखावत को बहुत अधिक अड़चनों का सामना नहीं करना पड़ेगा।