अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

कई सवाल छोड़ गया नीतीश कुमार का पाला बदल

Share

प्रभात कुमार, प्रदेश महासचिव, राष्ट्रीय जनता दल (किसान प्रकोष्ठ)

आज एक बार फिर आपके सामने इस पर्चे के माध्यम से उपस्थित हूं. कारण बिहार में घटित ताजा राजनीतिक घटनाक्रम है. दिखने में तो यह घटनाक्रम बिहार का है, लेकिन इसके परिणाम पूरे देश की राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं और करेंगे. और यही कारण है इस पर्चे के माध्यम से आपके सामने रूबरू हैं.

8 अगस्त 2022 में बनी महागठबंधन की सरकार को 17 महीने में ही नीतीश कुमार ने गिरा दिया. यह सरकार नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ आने पर बनी थी और उनके ही अलग होने से गिर गयी. इसके साथ ही कई सवाल छोड़ गई. नीतीश पहले भी (NDA के साथ) मुख्यमंत्री थे, फिर NDA का साथ क्यों छोड़ा ? फिर जब वे महागठबंधन के साथ आये तो फिर से मुख्यमंत्री ही बनाये गए लेकिन वे फिर से पाला बदलकर NDA में क्यों चले गए ?

नीतीश बाबू इन सवालों पर कहते हैं उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा था. उनका जवाब सिरे से हास्यास्पद है क्योंकि पिछली सरकार काम तो लगातार करते रही थी, जैसा वे हर मंच से कहते भी रहते थे और यह सच भी है कि कई क्षेत्रों (सड़क-पानी-बिजली) में उन्होंने काफी सराहनीय काम किया है. लेकिन क्या सिर्फ इससे ही लोगों के जीवन स्तर में वांछित बदलाव लाये जा सकते हैं ? इसके लिए जरूरी है उनके पारिवारिक आमदनी में बढ़ोतरी कराना. और यह नौकरी या रोजगार उपलब्ध करा कर ही संभव है.

कई और ऐसे काम जो इन तथाकथित विकास कार्यों से भी कहीं ज्यादा जरूरी थे, जो वे अपने 17 साल के कार्यकाल में नहीं कर पाए. इसे इन जरूरी कार्यों के प्रति उनकी निश्चेतना या इच्छाशक्ति का अभाव कहा जा सकता है. इन कार्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार प्रमुख थे. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनका योगदान सिर्फ भवनों के निर्माण तक ही सीमित रहा. सच कहें तो उनकी रुचि शिलापट्ट वाले कार्यों में ही ज्यादा रही.

अगर पुलिस भर्तियों को छोड़ दें तो सहयोगी दल के भारी दबाव पर उन्होंने बहाली भी सिर्फ संविदा वाली ही की, जिसे अस्थायी और कम पारिश्रमिक का रोजगार ही कहा जा सकता है. इससे बेरोजगारों को तात्कालिक रोजगार तो मिला, लेकिन उनके मौन शोषण का सिलसिला भी शुरू हो गया है.

2005 में सत्तासीन होने के बाद इन्होंने घोषणा की थी कि अब किसी नौजवान को रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन 17 सालों में नौजवानों का इंतजार के साथ-साथ बाहर जाकर काम करने की मजबूरी भी बढ़ती गयी. मतलब रोजगार के अवसर चाहे वह सरकारी नौकरी हो या असंगठित क्षेत्र की मजदूरी, लगातार कम होते गए.

अपने इस लंबे कार्य काल में इन्होंने स्कूल और अस्पताल के भवन खूब बनवाये लेकिन योग्य शिक्षकों और डाक्टरों की पर्याप्त संख्या के अभाव में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं बदतर होती गईं.

किसानों की फसल का उचित मूल्य दिलाने की असली जगह बाजार समितियों (APMC) को तो उन्होंने सत्तासीन होने के पहले ही साल में खत्म कर दिया था. फिर उन्होंने इसके लिए पैक्स को जिम्मेदारी दी जो भ्रष्ट्राचार की एक नई प्रयोगशाला साबित हुई और किसान अपने फसल दलालों और आढ़तियों के हाथों बेचने को आज भी मजबूर हैं.

आमलोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, खेती, सरकारी कार्यों में अवैध वसूली (भ्रष्टाचार) आदि से जुड़ी समस्याओं में हो रही लगातार वृद्धि के प्रति हमारी पार्टी ‘राष्ट्रीय जनता दल’ और हमारे नेता श्री तेजस्वी प्रसाद यादव जी काफी संजीदा थे. और अंततः वर्ष 2020 की विधानसभा चुनावों में पढ़ाई, कमाई, दवाई, सिंचाई, सुनवाई का नारा दिया. यह नारा आमजन के सरोकारों की समग्रता का द्योतक है.

श्री तेजस्वी जी ने घोषणा की थी कि अगर वे मुख्यमंत्री बने तो इस नारे के इर्द- गिर्द ही विकास का ताना-बाना बुना जाएगा. इसमें भी उन्होंने अपनी घोषणाओं में नौकरी और रोजगार को प्राथमिकता देते हुए वादा किया था कि पहली कैबिनेट में 10 लाख सरकारी नौकरी के लिए वैकेंसी निकाली जाएगी.

उनकी इस घोषणा को सत्तारूढ़ विपक्षी पार्टियां जदयू और भाजपा ने उपहास करते हुए कहा था कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा ? राज्य के युवाओं में श्री तेजस्वी जी की इस घोषणा से एक अप्रतिम उत्साह का प्रवाह हुआ और उनकी सभाओं में इन उत्साहित युवाओं की अपार भीड़ ने जदयू-भाजपा को सदमे में ला दिया था. और इस हताशा में वे लोग भी 19 लाख रोजगार देने की बात करने लगे.

इसके बावजूद तेजस्वी जी की सभाओं में भीड़ बढ़ती ही गयी, तब इनलोगों ने महागठबंधन और राजद को सत्ता से दूर रखने के लिए वोटों की चोरी करने जैसा कुत्सित षडयंत्र रचा और हमलोगों को सत्ता की हनक का दुरुपयोग कर, सत्ता की दहलीज पर रोक लिया गया. कुल वोटों में मात्र 12768 का अंतर रहा था. हमने विपक्ष में बैठना स्वीकार किया परंतु जनता निराश थी. उनके नौकरी के सपने चूर चूर हो रहे थे.

इसी बीच जदयू, भाजपा से अंदरूनी कलह से त्रस्त होकर महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव लेकर आई और काफी मंथन के बाद हमलोगों ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. क्योंकि इसे हमारे नेता तेजस्वी जी राज्य के लोगों खासकर युवाओं की आकांक्षाओं को जीवंत करने का अवसर के रूप में देख रहे थे. अंततः हम सरकार में सहभागी बने और हमारे नेता तेजस्वी जी जनता से किये अपने वादे के अमल में पूरी तन्मयता से लग गए.

सबसे पहले शिक्षकों की बंपर और अभूतपूर्व बहाली निकाली गई. मात्र 70 दिनों में डेढ़ लाख से भी ज्यादा शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरित किया गया. इसके साथ ही अन्य विभागों में भी रिक्तियां ढूंढ ढूंढ कर नियुक्ति की प्रक्रिया आरंभ की गई. 17 महीने के छोटे से कार्यकाल में चार लाख से भी ज्यादा लोगों को सरकारी नौकरी दी गयी.

अभी स्वास्थ्य विभाग में डाक्टरों, नर्सों तथा अन्य के लाखों पद रिक्त पड़े हैं. पशुपालन विभाग में सृजित पदों में 40% से ज्यादा डाक्टरों के पद खाली हैं. बिहार में 5000 पशु अस्पताल होने चाहिए जबकि यहां मात्र 1137 ही हैं, इनमें भी नए पदों का सृजन किया जाना बाकी था. ये तो कुछ छोटे उदाहरण हैं.

इसी तरह सचिवालय से लेकर जिलों तक में लाखों रिक्तियां पड़ी हैं जिन्हें हमारे नेता भरने के लिए लगातार प्रयासरत थे. नीतीश जी कहते हैं हमें काम नहीं करने दिया जा रहा था ! सच्चाई तो यह है कि उनसे उनकी उम्र से ज्यादा काम कराया जा रहा था.

इतना ही नहीं ! तेजस्वी जी ने जातीय सर्वे (गणना) भी करवाया जो आरक्षण के 75% विस्तार का आधार बना. बिहार में नई खेल पॉलिसी, टूरिज्म पॉलिसी, I T पॉलिसी लायी. सरकार में रहते इन्होंने नियोजित शिक्षकों की राज्यकर्मी के दर्जे की चिरप्रतीक्षित मांग को पूरा किया. टोला सेवक, विकास मित्र, तालीमी मरकज, शिक्षा मित्र आदि के मानदेय में बढ़ोतरी करवाई.

17 सालों से लाखों नौकरियों पर कुंडली मार कर बैठी भाजपा जदयू बिहार के युवाओं के साथ कितना बड़ा छल कर रही थी, ये बात अब जगजाहिर हो चुकी है. फिर भी उपरोक्त सारे कार्यों के लिए नीतीश जी अपनी पीठ थपथपा रहे हैं. आप सरकार के मुखिया थे तो क्रेडिट मिलना ही चाहिये, लेकिन मुख्यमंत्री तो आप 2005 से हैं फिर अबतक ये सब क्यों नहीं हो रहा था ?

सत्ता परिवर्तन का यह खेल देश की राजनीति को कैसे प्रभावित करेगी ?

वर्ष 2014 में सत्तारूढ़ होने के बाद फासीवादी भाजपा लगातार देश की संवैधानिक संस्थानों पर काबिज होकर उसके भगवाकरण में लगी है. वह धार्मिक उन्माद को आगे कर शिक्षा, रोजगार, महंगाई, जल, जंगल, जमीन के मुद्दों को गौण करती जा रही है. सरकारी नौकरियां समाप्त कर आरक्षण के सवाल को ही खत्म करने पर आमादा है. बैंकों और महाजनों के कर्ज में फंसकर पिछले 10 सालों में 1,50,000 से भी ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की जबकि पूंजीपतियों के 26 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए गए.

किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए संघर्षरत हैं वहीं दूसरी तरफ बड़े पूंजीपतियों को कॉरपोरेट टैक्स में प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रूपये की छूट दी जा रही है. नई बिजली नीति, श्रम कानून में संशोधन, पुलिस को गिरफ्तारी का अधिकार देने, UAPA संशोधन कानून, NRC लागू करने सरकार के विरोध को राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में लाने जैसे दमनकारी नीतियों से सरकार आमलोगों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है.

ऐसे में भाजपानीत केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकना अब जरूरी हो गया है. इस महत्वपूर्ण कार्य का बीड़ा उठा कर विपक्षी पार्टियों की गोलबंदी में लगे नीतीश कुमार बीच में ही कंधा छिटका कर भाग खड़े हुए और उसी भाजपा से जा मिले. इसके पीछे उनकी चाहे जो मजबूरी रही हो पर उन्होंने देश की तमाम समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के साथ बहुत बड़ा छल किया है.

ऐसे में वक़्त की मांग है कि इस अप्रत्याशित घटना हताश हुए बिना दुगनी ताकत से भाजपा की INDIA गठबंधन को तोड़ने की साजिश का मुंहतोड़ जवाब दें. हमारे नेता तेजस्वी जी ने कहा है कि जो झंडा नीतीश जी फेंककर भाग गए वो हम संभाल लिए हैं और इसे बुलंद करेंगे.

अतः आप सभी लोगों से आग्रह और प्रार्थना है साथियों कि हम तेजस्वी जी के इस मुहिम का हिस्सा बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर उनके हाथों को मजबूत करें और आने वाले 2024 लोकसभा चुनावों में इस भाजपानीत सरकार को उखाड़ फेंकने के इस आखिरी मौके को हाथ से न जाने दिया जाये.

  • सम्पर्क नं. : 8809544944, 9386020166
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें